कानपुर के "प्रताप" गणेश शंकर विद्यार्थी को भुला दिया 

कानपुर के

स्वतंत्र प्रभात 

आज की युवा पीढ़ी शायद गणेश शंकर विद्यार्थी जी और उनके समाचार पत्र "प्रताप" को भूलने लगी है या उनको यह इतिहास पढ़ाया नहीं गया। शायद पत्रकार जगत में भी पुराने जो लोग हैं वो ही गणेश शंकर विद्यार्थी जी को ठीक से जानते हैं। लेकिन जो लोग ठीक से जानते हैं उनके अंदर विद्यार्थी जी के लिए बहुत सी आदर और सम्मान है। वैसे भी पत्रकारिता  एक बहुत ही कठिन विषय है जिसे कुछ लोग  सरल समझते हैं , लेकिन विद्यार्थी जी ने जिस समय में प्रताप प्रेस लगाकर "प्रताप" समाचार पत्र का प्रकाशन किया था वह अपने आप में एक साहसी कदम था। विद्यार्थी जी के प्रताप समाचार पत्र ने अंग्रेजी हुकूमत को चैन से नहीं रहने दिया था। विद्यार्थी जी का जीवन बहुत ही छोटा रहा लेकिन उन्होंने जितना जीवन जिया वह देश को समर्पित किया। महात्मा गांधी जी भी गणेश शंकर विद्यार्थी जी को बहुत मानते थे और अक्सर उनके पास आया करते थे।
 
कानपुर का गंगा मेला हो और गणेश शंकर विद्यार्थी जी का जिक्र न हो तो यह बहुत ही निंदनीय बात है। लेकिन अब लग रहा है कि धीरे-धीरे लोग गणेश शंकर विद्यार्थी जी के त्याग बलिदान और उनके समाचार पत्र "प्रताप" को भूलने लगे हैं। विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 में इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में अपनी ननिहाल में हुआ था और महज़ 40 वर्ष की उम्र में 25 मार्च 1931 में कानपुर में उनकी मौत हो गई। उन्होंने हिंदी भाषी समाचार पत्र "प्रताप" का प्रकाशन 1913 में कानपुर से शुरू किया और 1931 तक उन्होंने इसका संपादन किया। 
 
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद विद्यार्थी जी पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी के साथ रहे और उन्होंने उनकी पत्रिका "सरस्वती" से पत्रकारिता के गुण सीखे और 1913 में उन्होंने अपने अखबार का प्रकाशन शुरू कर दिया। इस समय देश गुलामी के आगोश में था। विद्यार्थी जी समेत तमाम क्रांतिकारियों का मन विचलित था। उन्होंने तय किया था कि वह अपने अखबार के माध्यम से ही लोगों में स्वतंत्रता की अलख जगाएंगे। और देश को आजाद कराकर मानेंगे। अखबार के प्रकाशन के साथ ही गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था की और रुख कर लिया, वह छात्र नेता बन गए। वह कांग्रेस के आंदोलनों में सक्रिय हो गए और अंग्रेजी हुकूमत के अफसरों के अत्याचारों के खिलाफ अपने समाचार पत्र "प्रताप" में निर्भीक होकर लिखने लगे।
 
 विद्यार्थी जी ने अपने समाचार पत्र "प्रताप" का प्रकाशन साप्ताहिक रुप में शुरू किया था जिसे 1920 में दैनिक समाचार पत्र कर दिया। अब "प्रताप" प्रतिदिन छपने लगा था। गणेश शंकर विद्यार्थी स्वयं तो पत्रकारिता के पुरोधा थे ही लेकिन उन्होंने कई अन्य लोगों को भी अपने साथ जोड़ा और उनको लेखन की प्रेरणा दी। उस समय में किसी दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन कोई छोटी बात नहीं थी। लेकिन विद्यार्थी जी की दृढ़ता ने उस समाचार पत्र को ऐसी पहचान दिलाई कि स्वयं महात्मा गांधी भी उससे प्रभावित हुए नहीं रह सके। इसी दौरान उन्होंने कई पुस्तकों का प्रकाशन भी किया। विद्यार्थी जी अपनी लेखनी से स्वतंत्रता आंदोलन में कूदे और पांच वार जेल गए लेकिन "प्रताप" का प्रकाशन बंद नहीं हुआ। विद्यार्थी जी का जीवन बहुत छोटा रहा और महज़ 40 वर्ष की उम्र में कानपुर के साम्प्रदायिक दंगों में 25 मार्च 1931 में उनकी हत्या कर दी गई। विद्यार्थी जी स्वभाव के बहुत ही सरल थे लेकिन अपनी लेखनी में वह जरा भी पीछे नहीं हटते थे।
 
गणेश शंकर विद्यार्थी जी का वह प्रताप समाचार पत्र ही था जिसने दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे महात्मा गांधी की महत्वत्ता को समझाया था। विद्यार्थी जी आंदोलनकारियों के विषय में प्रतिदिन लिखकर लोगों को जागरूक करते थे। चन्द्रशेखर आजाद की मुलाकात भगतसिंह से गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने ही कानपुर में कराईं थी। जिसके कारण अन्य क्रांतिकारी भी आंदोलन से जुड़ते चले गए। 1916 में महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक लखनऊ कांग्रेस के बाद प्रताप प्रेस कानपुर आए थे।
 
गांधी जी गणेश शंकर विद्यार्थी को बहुत मानते थे। और उनसे बहुत ही प्रभावित रहे। कानपुर के स्वतंत्रता आंदोलन में जब अंग्रेजों की पुलिस क्रांतिकारियों को ढूंढती थी तो ये क्रांतिकारी "प्रताप" प्रेस भवन में ही छुपा करते थे क्योंकि प्रताप प्रेस भवन की बनावट ऐसी थी कि किसी को आसानी से नहीं पकड़ा जा सकता था। क्रांतिकारी उससे जुड़ी छतों के रास्ते से होते हुए। अंग्रेजी पुलिस की नजरों से ओझल हो जाते थे।
 
प्रताप प्रेस भवन आज भी कानपुर में बहुत ही जर्जर अवस्था में है जो कभी भी धराशाई हो सकता है। समय समय पर कानपुर के पत्रकारों ने इसके जीर्णोद्धार के लिए आवाज उठाई है लेकिन शासन और प्रशासन की निगाहों में यह बात अब तक समझ में नहीं आ सकी है। हम जब भी कानपुर के स्वतंत्रता आंदोलन की बात करेंगे उसमें गणेश शंकर विद्यार्थी और उनके समाचार पत्र "प्रताप" को भुलाया नहीं जा सकता है। कल ही कानपुर के ऐतिहासिक गंगा मेला में एक स्टाल ऐसा लगा जिसमें कानपुर के पत्रकार अतुल आक्रोश ने अन्य पत्रकार साथियों के साथ मिलकर शासन और प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए "बूट पॉलिश" कर मुहिम शुरू की है।
 
और इन पत्रकारों मृदुल कपिल, अतुल आक्रोश, जितेन्द्र सिंह, नीरज होस्टिंग, अनूप द्विवेदी, रंजना यादव, बिंद्र सिंह, प्रियंका मृदुल आदि का कहना है कि इस प्रताप प्रेस की ऐतिहासिक इमारत पर सरकार का ध्यान जाए और इसको राष्ट्रीय इमारत घोषित किया जाए जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी गणेश शंकर विद्यार्थी जी को भूले नहीं।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 
 
 

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel