इलेक्टोरल बॉन्ड हैं या हैं बसूली बॉन्ड?

इलेक्टोरल बॉन्ड हैं या हैं बसूली बॉन्ड?

स्वतंत्र प्रभात 
 (नीरज शर्मा'भरथल')
सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखते हुए 11 मार्च को एसबीआई की इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने की समय सीमा बढ़ाने की याचिका खारिज करते हुए आदेश जारी किए हैं कि बैंक 12 मार्च तक ही पूरी जानकारी चुनाव आयोग के सामने पेश करे और आयोग 15 मार्च तक पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाले। शीर्ष अदालत नें यह भी कहा था कि यदि बैंक कोर्ट के आदेशों का पालन नही करता है तो उन पर अदालत की अवमानना का केस चलाया जाएगा।
 
इस आदेश के अगले ही दिन बैंक ने पूरी जानकारी चुनाव आयोग के समक्ष पेश कर दी और 14 मार्च को पूरा ब्यौरा आयोग की वेबसाइट पर भी जारी कर दिया गया। दी गई जानकारी दो भागों में है। पहला भाग 336 पन्नों का है और उसमें तिथिवार बॉन्ड खरीदने वालों के नाम और बॉन्ड की राशि दर्ज है। जबकि दूसरा भाग 426 पन्नों का है। उसमें राजनीतिक दलों के नाम हैं और उन दलों ने कब कितनी राशि के इलेक्टोरल बॉन्ड कैश कराए उसकी विस्तृत जानकारी है परन्तु बैंक ने चुनाव आयोग को बॉन्ड के यूनिक कोड नहीं दिए गए हैं।
 
असल में हर चुनावी बॉन्ड पर एक यूनिक अल्फान्यूमेरिक सीक्रेट नंबर दर्ज है जिसे यूनिक कोड कहा जाता है। इसे केवल अल्ट्रा वॉयलेट लाइट में ही देखा जा सकता है। इसे चुनावी बॉन्ड की सुरक्षा के संबंध में लगाया जाता था। प्रत्येक इलेक्टोरल बॉन्ड पर दर्ज यूनिक अल्फान्यूमेरिक कोड के बिना किस संस्था या व्यक्ति का  बॉन्ड किस दल ने कैश कराया या यूं कहें किस बॉन्ड को किस पार्टी ने भुनाया इसकी जनकारी नही मिल सकती है।
 
इस कोड के बिना डोनर का पार्टी से मिलान करना असंभव होगा। यूनिक कोड की जानकारी के लिए एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। जिस पर फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने यूनिक कोड की पूरी जानकारी 18 मार्च तक उपलब्ध कराने का आदेश एसबीआई को दिया है। राजनीतिक दलों को गोपनीय चंदा देने वाली चुनावी बॉन्ड योजना में शीर्ष तीन खरीदारों ने कुल 2,744 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे हैं।
 
लॉटरी कंपनी फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विस ने सबसे अधिक 1,368 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे हैं। कंपनी का रजिस्टर्ड पता तमिलनाडु कोयम्बटूर का है। यह कंपनी 2022 में तब चर्चा में आई जब प्रवर्तन निदेशालय ने रेड कर  इसकी विभिन्न इकाइयों के 409 करोड़ की परिसंपत्तियां जब्त कर ली थी। दूसरे पायदान पर  हैदराबाद की मेघा इंजीनियरिंग व इन्फ्रास्ट्रक्चर इसने 966 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे थे। तीसरे नंबर पर मुंबई की कंपनी क्विक सप्लाई चेन है जिसने 410 करोड़ के बॉन्ड खरीदे। शीर्ष दस कंपनियों में वेदांता, हल्दिया एनर्जी, भारती एयरटेल, एस्सेल माइनिंग, वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन, केवेंटर फुडपार्क इंफ्रा और मदनलाल लि. के नाम हैं।
 
इनके अलावा स्टील किंग लक्ष्मी मित्तल, सुनील मित्तल की भारती एयरटेल, अनिल अग्रवाल की वेदांता, आईटीसी, महिंद्रा एंड महिंद्रा, स्पाइसजेट, इंडिगो, ग्रासिम इंडस्ट्रीज, पीरामल एंटरप्राइजेज, टोरेंट पावर,  डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स, अपोलो टायर्स, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुला वाइन, वेलस्पन, सन फार्मा, वर्धमान टेक्सटाइल्स, जिंदल ग्रुप, फिलिप्स कार्बन ब्लैक लिमिटेड, सीएट टायर्स, डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज, आईटीसी, केपी एंटरप्राइजेज, सिप्ला और अल्ट्राटेक सीमेंट आदि जैसी कंपनियों के नाम भी बांड खरीदने वालों की सूची में शामिल हैं। अब यदि बात करे सब से ज्यादा बांड खरीदने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विस इसका मालिक सैंटियागो मार्टिन है जिसने शुरुआती दिनों में म्यांमार में मजदूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण किया।
 
उसके बाद वो भारत आया और लॉटरी व्यवसाय शुरू करने लगा। उसने 1988 में कोयंबटूर में मार्टिन लॉटरी एजेंसीज लिमिटेड की स्थापना की थी। 2019 से 2024 के बीच मार्टिन की कम्पनियों पर ई.डी, सी.बी.आई, आई.टी के छापे पड़ते रहे हैं। मनी लॉन्ड्रिंग का मामले में भी इस पर जांच चल रही है। ईडी का सैंटियागो मार्टिन और उनकी कंपनियों पर आरोप है कि कंपनी ने अप्रैल 2009 से अगस्त 2010 तक पुरस्कार विजेता टिकटों के दावे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया है। इससे सिक्किम को ₹910 करोड़ का नुकसान पहुंचा। 2 अप्रैल 2022 को हुई छापेमारी में इसकी 409 करोड़ की चल संपत्ति जब्त की गई। इसके 5 दिन बाद ही इसकी कंपनी ने 100 करोड़ के इलेक्टोरल बांड खरीदे।
 
सोचने की बात है कि एक कंपनी पर छापेमारी कर उसकी संपत्ति जब्त की जा रही है और वो 100 करोड़ के बांड खरीद रही है, क्यों और किस लिए? बांड खरीदने वाली लिस्ट में ऐसी बहुत सी कम्पनिया है जिन पर पिछले दिनों रेड हुई  और छापों के बाद उन्होनें बांड खरीदे। क्या यह बांड राजनीतिक दलों द्वारा लोगो को डरा कर धन बसूलने के और चुपचाप सेटिंग करने का जरिया थे? क्या राजनीतिक दल बॉन्ड के जरिए अपना बसूली का धंधा चला रहे थे?
 
बांड खरीदने से पहले या बाद में किसी कंपनी को कितने सरकारी लाभ के काम या ठेके मिले? सरकारी ऐजंसियों की किसी पर छापेमारी के बाद उसने कितने बांड खरीदे और किस दल ने वे बांड भूनाए? आने वाले दिनों में यदि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच करवाता है तो ये इलेक्टोरल बॉन्ड कई दलों के लिए गले की फांस बन उनका चुनावी समीकरण बिगाड देगा।
 
 

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