
भाजपा का ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक ‘ के सहारे अगले चुनाओं में महिलाओं के वोटों पर नज़र
अगले 5 राज्यों व 2024 के लोकसभा चुनाओं की की तैयारियों में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने महिला आरक्षण का बड़ा दांव चला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण से संबंधित नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश किया। लोकसभा में लंबी चर्चा के बाद ये विधेयक पारित हो गया है। विधेयक के पक्ष में 454 वोट पड़े जबकि इसके विरोध में केवल दो वोट पड़े। विपक्षी कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों ने कुछ आपत्तियों, कुछ सुझावों के साथ बिल के समर्थन में मतदान किया, ऐसा नहीं लगता कि राज्यसभा में भी कोई बाधा आएगी। मोदी सरकार के इस कदम को 2024 चुनाव से पहले मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है। वहीं, जानकार इसे पांच राज्यों के चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं।
दरअसल महिला आरक्षण बिल भाजपा के कोर एजेंडे में रहा है। अटल बिहारी सरकार के समय भी इसे पास कराने की कोशिश की गई थी, लेकिन तब बहुमत नहीं होने की वजह से यह अटक गया। मोदी सरकार में भी लंबे वक्त से इसे लागू करने की मांग उठ रही है।भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के चुनावी घोषणापत्र में भी महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था। चर्चा इस बात की है कि भाजपा अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए इस बिल का सहारा ले सकती है।
गौरतलब है कि लोकसभा से पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। विधानसभा चुनाव में लगभग दो महीने का समय बचा है। मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ और राजस्थान तक यात्राओं की सियासत चल रही है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस राज्य सरकार की लोक लुभावन घोषणाओं के सहारे सत्ता छीनने की कोशिश में है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी परिवर्तन यात्राओं के जरिए सत्ता में वापसी की। मध्य प्रदेश में सीएम शिवराज जन आशीर्वाद यात्रा पर निकले हैं तो कांग्रेस भी जनाक्रोश यात्रा निकाल रही है।
राजनीतिक विश्लेषक बताते है कि लोकसभा चुनाव में अभी करीब छह महीने का समय बचा है और शीतकालीन सत्र में करीब दो महीने का। सरकार का फोकस अगर बस लोकसभा चुनाव ही होता तो ये बिल शीतकालीन सत्र में लाया जाता। तब तक समय चक्र की चाल चुनाव और तारीख की दूरी थोड़ी और कम कर चुकी होती। लेकिन सरकार ये बिल विशेष सत्र में लेकर आई जो बताता है कि निगाहें भले ही 2024 पर हों, निशाना पांच राज्यों के चुनाव हैं।
अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि राज्यों के चुनाव में ऐसा क्या है कि मोदी सरकार को महिला आरक्षण के जरिए एजेंडा सेट करना पड़ रहा है? ये समझने के लिए भाजपा और कांग्रेस की रणनीति के साथ ही नेतृत्व की चर्चा जरूरी है। भाजपा के लिए चुनावी राज्यों में कई चुनौतियां हैं। मध्य प्रदेश में सत्ता में रहकर भी पार्टी मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं बता पा रही है। छत्तीसगढ़ में साढ़े चार साल तक भाजपा नेताओं की निष्क्रियता के साथ राजस्थान में वसुंधरा राजे की पार्टी की परिवर्तन यात्रा से दूरी को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस जहां सत्ता में है, वहां लोकलुभावन योजनाओं के सहारे माहौल बनाने की रणनीति पर अमल शुरू कर दिया। पार्टी जहां विपक्ष में है, वहां स्थानीय समस्याओं के साथ ही महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया, प्याज और टमाटर की कीमतें याद दिलाई जाने लगीं।
कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में महिलाओं पर फोकस कर 500 रुपये में गैस सिलेंडर और हर महीने 1500 रुपये देने की गारंटी का कार्ड भी चल चुकी है। महिला मतदाता भाजपा की ताकत रही हैं और इस वोट बैंक में सेंध का परिणाम पार्टी कर्नाटक नतीजों में देख चुकी है। इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक कर्नाटक चुनाव में 44 फीसदी महिलाओं ने कांग्रेस को वोट किया तो वहीं भाजपा के पक्ष में 33 फीसदी महिला मतदाताओं ने।
इसका इम्पैक्ट उत्तर प्रदेश के नतीजों से ऐसे समझा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की बड़ी जीत के बाद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके लिए खासतौर पर महिला मतदाताओं का धन्यवाद किया था। उत्तर प्रदेश चुनाव में इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक 48 फीसदी महिला मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था वहीं सपा को 32 फीसदी महिलाओं के वोट मिले थे। महिला मतों में ये 16 फीसदी की लीड आधी आबादी के नजरिए से देखें तो करीब 8 फीसदी पहुंचती है जो बड़ा अंतर है।
जानकारों का कहना है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस का स्थानीय समस्याएं उठाना, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार की ओर से लगातार लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान भाजपा के लिए मुसीबत बन रहा था। कांग्रेस की रणनीति चुनाव लोकलाइज करने की रही है और भाजपा शायद समझ रही है कि ऐसा हुआ तो उसकी संभावनाएं कमजोर होंगी। यही वजह है कि चुनावी राज्यों में पार्टी सनातन विवाद से लेकर जी 20 की सफलता तक की बात कर रही है, किसी को मुख्यमंत्री फेस बनाने से बचते हुए चुनाव अभियान को प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लाने की कोशिश कर रही है। महिला आरक्षण सीधे-सीधे महिलाओं से जुड़ा है ही, राज्यों से भी जुड़ा है। ऐसे में विरोधियों के लिए भाजपा पर ये आरोप लगाना भी मुश्किल होगा कि पार्टी राष्ट्रीय मुद्दे के सहारे राज्य चुनाव में वोट मांग रही है। महिला आरक्षण के दांव को महंगाई की वजह से महिलाओं की भाजपा को लेकर नाराजगी दूर करने की कोशिश भी बताया जा रहा है।
चुनाव आयोग के 2019 के डेटा के मुताबिक भारत में कुल 91 करोड़ मतदाता में महिला वोटर्स की संख्या करीब 44 करोड़ है। आयोग के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनाव में वोट डालने के मामले में पुरुषों मुकाबले महिलाएं आगे रहीं। आयोग के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2019 में 67.02 प्रतिशत पुरुष और 67.18 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था। तमिलनाडु, अरुणाचल, उत्तराखंड और गोवा समेत 12 राज्यों में महिलाओं वोटरों ने अधिक मतदान किया। वहीं बिहार, ओडिशा और कर्नाटक में दोनों के वोट करीब-करीब बराबर पड़े। इन 12 राज्यों में लोकसभा की करीब 200 सीटें हैं। भाजपा को तमिलनाडु, केरल छोड़कर बाकी के राज्यों में पिछले चुनाव में बंपर जीत मिली थी।2014 में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों ने अधिक मतदान किया था। आयोग के मुताबिक पुरुषों के 67।09 तो महिलाओं के 65. 63 वोट पड़े थे। हालांकि, बिहार, उत्तराखंड, तमिलनाडु जैसे राज्यों में महिलाओं के वोट अधिक पडे़।
2019 में भाजपा की प्रचंड जीत के पीछे महिला वोटरों की मुख्य भूमिका मानी गई। सीएसडीएस के मुताबिक 2019 में भाजपा को कुल 37 प्रतिशत वोट मिले, जबकि उसे वोट देने वाली महिलाओं में से 36 फीसदी के वोट मिले। कांग्रेस को सिर्फ 20 प्रतिशत महिलाओं का समर्थन मिला। महिलाओं के 44 प्रतिशत वोट अन्य पार्टियों को मिले। अन्य पार्टियों में तृणमूल, बीजू जनता दल, बीआरएस और जेडीयू को सबसे अधिक महिलाओं का वोट मिला।
सीएसडीएस के मुताबिक गुजरात में भाजपा को कुल 62 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए, जबकि उसे महिलाओं के 64 प्रतिशत वोट मिले। इसी तरह बिहार, असम, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में भाजपा के मिले कुल वोट में महिला मतदाताओं की संख्या अधिक था। उत्तर प्रदेश में भाजपा को कुल 49 प्रतिशत वोट मिला, लेकिन यहां उसे वोट देने वाली महिलाओं में से 51 फीसदी के वोट मिले। तमिलनाडु और महाराष्ट्र में भाजपा को दोनों के बराबर वोट मिले। जिन राज्यों में भाजपा को महिलाओं के अधिक वोट मिले, वहां पार्टी ने बंपर जीत दर्ज की। उदाहरण के लिए- गुजरात में भाजपा को सभी 26 सीटों पर जीत मिली। इसी तरह बिहार में पार्टी ने 16, ओडिशा में 10 और असम में 9 सीटों पर जीत हासिल की।
महाराष्ट्र में भाजपा ने 23 सीटों पर जीत दर्ज की। यहां उसके गठबंधन सहयोगी शिवसेना को 18 सीटों पर जीत मिली थी।2014 के चुनाव में भी भाजपा को महिलाओं का समर्थन जमकर मिला था। सीएसडीएस के मुताबिक 2014 में 29 प्रतिशत महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में वोट डाले थे। उस साल भाजपा को कुल 31 प्रतिशत वोट मिले थे। 2009 के मुकाबले यह बहुत ही बढ़ी बढ़ोतरी थी। 2009 में 18 प्रतिशत महिलाओं का वोट ही भाजपा को मिला था। इस बिल आने के बाद भाजपा पहले कई ज्यादा महिलाओं के वोट पाने की उम्मीद में इस को मास्टर स्ट्रोक के रूप में मान रही है ।
अशोक भाटिया,
वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार
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