संसद के विशेष सत्र पर रहस्य का पर्दा
संसद का विशेष सत्र तब बुलाया जा रहा है तब देश के ऊपर कोई संकट नहीं है ।
देश की पहली सरकार है जो राजनीति को छायावाद के युग में ले आयी है । देश की संसद का विशेष सत्र शुरू होने वाला है लेकिन विपक्ष को तो छोड़िये केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों तक को पता नहीं है कि इस विशेष सत्र की कार्यसूची क्या है ? ये पहली सरकार है जो बाकायदा क्लास लगाकर अपने मंत्रियों से कहती है कि उन्हें संसद के बाहर किस विषय पर बोलना है और किस विषय पर नहीं।
सरकार के इस छायावाद के पीछे क्या उद्देश्य है ,ये समझना बहुत मुश्किल है। संसद का विशेष सत्र गणेश चतुर्थी के दिन आयोजित किया गया है । ये भी पहली बार हो रहा है कि देश में संसद का कोई सत्र अवकाश के दिन आयोजित किया जा रहा हो। गणेश चतुर्थी उत्तर भारत का सबसे बड़ा त्यौहार है ,किन्तु सरकार ने इस बात को ताक पर रख दिया और विशेष सत्र के लिए नए संसद भवन के श्रीगणेश के लिए इसी दिन को तय किया। देश की अनेक राजनीतिक पार्टियों ने सरकार के इस फैसले पर सवाल भी किया । आलोचना भी की ,लेकिन देश की मजबूत और निर्भीक सरकार अपने फैसले से एक इंच भी नहीं डिगी।
संसद का विशेष सत्र तब बुलाया जा रहा है तब देश के ऊपर कोई संकट नहीं है । कोई ऐसा कारण नहीं है जिसके लिए इस सत्र को आहूत किया गया । विपक्ष ने या किसी और दल ने संसद का विशेष सत्र आहूत करने की मांग भी नहीं की । देश में जी-20 समूह की बैठक की तैयारियां भी चल रहीं हैं ,फिर भी संसद का विशेष सत्र आहूत किया जाना और उसकी कार्यसूची को अब तक सार्वजनिक न किया जाना पूरे मामले को रहस्यमय बना रहा है। सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या है जो सरकार देश से छिपा रही है ?
संसदीय इतिहास के इस खुफिया विशेष सत्र को लेकर कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है, और महंगाई, भारत-चीन सीमा विवाद, और मणिपुर जैसे 9 मुद्दों पर चर्चा की मांग की है। विशेष सत्र 18 सितंबर से 22 सितंबर तक चलेगा। पहले दिन का कामकाज पुरानी बिल्डिंग में होगा, लेकिन दूसरे दिन से सभी सांसद नए भवन में बैठेंगे।इस विशेष सत्र में पहला अवसर होगा जब विपक्ष एक नयी शक्ल में संसद पहुंचेगा । विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए में शामिल 28 में से 24 दल संसद के विशेष सत्र में शामिल होंगे। विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार पहली बार बिना एजेंडा बताए संसद का विशेष सत्र बुला रही है। किसी भी विपक्षी दल से न तो सलाह ली गई और न ही जानकारी दी गई है।जाहिर है की सरकार विपक्ष के एजेंडे पर नहीं बल्कि अपने खुफिया एजेंडे पर काम करेगी और इसी को लेकर संसद का विशेष सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ेगा । सरकार चाहती भी यही है कि संसद के हंगामे के बीच वो अपनी खुफिया कार्यसूची पर ध्वनिमत से प्रस्तावों यानि विधेयकों को पारित करा ले।
राजनीति को रहस्य की चादर में लपेटने वाले देश के भाग्यविधाताओं के मन में क्या है ये जानना अब किसी ज्योतिषी,किसी बाबा-वैरागी के बूते की भी बात नहीं है। सरकार किन विषयों को विशेष सत्र में लेकर देश को चौंकाना चाहती है ये राम जी भी नहीं जानते होंगे। सरकार को इतनी गोपनीयता बरतने की क्या जरूरत आन पड़ी ये भी समझ से परे है। कभी -कभी लगता है कि जैसे देश की सरकार बहुमत की सरकार न होकर पीसी सरकार के जादू का तम्बू है। जिसमें होने वाले करतब को केवल जादूगर ही जानता है। जादूगर चौंकाता भी है और मनोरंजन भी करता है । सरकार इसमें से क्या करना चाहती है ,ये मोहन भागवत जी ने भी इंगित नहीं किया।
संसद के विशेष सत्रों की एक परम्परा रही है कि स्तर आहूत करने की घोषणा के साथ ही संसदीय कार्यमंत्री संसद की कार्यसूची को भी सार्वजनिक करते है। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि विपसखि दल भी अपनी-अपनी तैयारी कर लें ,इस बार विपक्ष को भरोसे में लिया ही नहीं गय। सरकार के हिसाब से विपक्ष भरोसे में लेने के लायक है ही नहीं। जिस देश में विपक्ष का इतना मान-मर्दन हो रहा हो उस देश में लोकतांत्र कि क्या दशा होगी,आप कल्पना कर सकते हैं ? अब विपक्ष केवल विपक्ष न होकर सरकार को एक शत्रु सेना दिखाई दे रही है। विपक्ष से सब कुछ छिपाने का और क्या मकसद हो सकता है । विपक्ष की ताकत सीमित है । विपक्ष सरकार को गिरा नहीं सकता। संसद के पिछले सत्र में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान ये साबित हो चुका है ,लेकिन सरकार है कि विपक्ष से भयभीत है।
संसद के विशेष सत्र से पहले मंत्रीमंडल की बैठक में प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल के सदस्यों को जिस तरह से ' क्या करें और क्या न करें ' की हिदायतें दीं हैं उससे लगता है कि कुछ न कुछ ' घल्लू-घारा ' होने वाला है। प्रधानमंत्री जी ने अपने मंत्रियों से कहा है कि वे जी -20 समूह की बैठक और ' इंडिया बनाम भारत ' के विवाद पर कुछ न बोलें।मोदी ने मंत्रियों को सनातन धर्म विवाद पर बोलने की छूट दी। लेकिन कहा कि आपका जवाब मुद्दे पर आधारित होना चाहिए, संविधान किसी भी धर्म की अपमान की इजाजत नहीं देता।मजे की बात ये है कि सनातन धर्म की असुरक्षा का कोई मुद्दा अभी देश में है ही नहीं। एक पिद्दी से नेता उदयनिधि के ब्यान को लेकर भाजपा और सरकार खामखां हौआ खड़ा कर रही है। प्रधानमंत्री जिस तरह से मंत्रिमंडल की बैठक बुला कर प्रबोधन कर रहे हैं उसी तरह यदि विपक्ष के साथ बभी बैठक कर संसद का विशेष सत्र बुलाते तो कितना अच्छा होता ? लेकिन प्रधानमंत्री जी को को कुछ अच्छा करना ही नहीं है तो आप या हम या देश का विपक्ष क्या कर सकते हैं ?
देश को रहस्य के अँधेरे में छोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आसियान-इंडिया समिट और ईस्ट एशिया समिट में शामिल होने के लिए इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता पहुंच गए हैं। उनका ये दौरा सिर्फ 9 घंटे का है। इस रहस्य को सरकार और सरकारी पार्टी भाजपा मिलकर गहरा कर रहे है। भाजपा ने प्रधानमंत्री के इस दौरे से जुड़ा एक कार्ड शेयर किया। जिसमें 'प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत' लिखा नजर आ रहा है।इससे पहले राष्ट्रपति भवन में विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के समान में आयोजित भोज के लिए जारी निमंत्रण पत्र में भी ' भारत ' का इस्तेमाल किया है। इस पर कांग्रेस ने कहा, सरकार को ब्रिटिश शासन से कोई समस्या है तो उन्हें तुरंत राष्ट्रपति भवन छोड़ देना चाहिए। और जरूरत पड़े तो उसे गोले से उड़ा दो।दरअसल ये एक गैर जरूरी मुहीम है। अभी इसकी कोई आवश्यकता नहीं है । ये सरकार और सरकारी पार्टी के गुप्त एजेंडे का एक हिस्सा है। इसके सहारे देश को मूल मुद्दों से अलग कर अपनी नाकामियों को छिपाया जा सकता है। अब ' तेल देखिये और तेल की धार देखिये 'शायद कुछ सुराग मिल जाए।
राकेश अचल
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