घुंघट हो या हिजाब गरिमा का सार्वजनिक उल्लंघन

घुंघट हो या हिजाब गरिमा का सार्वजनिक उल्लंघन

भारतीय समाज में सदियों से महिलाएँ अपने अस्तित्व और सम्मान के लिए संघर्ष करती रही हैं। पितृसत्तात्मक समाज में उम्मीद थी कि अब महिलाओं को सम्मान मिलेगा, लेकिन हाल की घटना ने एक साथ कई प्रतिष्ठित पुरुषवादी चेहरों का सच उजागर कर दिया।
 
हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। पटना में आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र वितरण के एक सरकारी कार्यक्रम में, जब नवनियुक्त महिला डॉक्टर मंच पर अपना पत्र लेने आईं, तो नीतीश कुमार ने उनके चेहरे से हिजाब (या निकाब) खींचकर नीचे कर दिया। वीडियो में साफ दिखता है कि मंच पर मौजूद अन्य लोग, जिन्हें सभ्य कहा जाता है, हँसने लगते हैं।
 
कुछ लोग इसे सुरक्षा कारणों से जोड़कर बचाव कर रहे हैं और कहते हैं कि मुख्यमंत्री शायद पहचान सत्यापित करना चाहते थे। लेकिन सवाल यह है कि क्या इसके लिए किसी महिला की व्यक्तिगत पसंद और गरिमा का सार्वजनिक उल्लंघन जायज है? 
 
कल्पना कीजिए, अगर उस महिला डॉक्टर की जगह मंच पर हँसने वाले पुरुषों की बेटी, बहू या पत्नी होती, तो क्या उन्हें हँसी आती? शायद नहीं, क्योंकि वे अपनी महिलाओं की गरिमा समझते हैं। दूसरी कल्पना कीजिए: अगर महिलाओं से भरे मंच पर कोई महिला नेता पुरुष को सम्मान दे रही होती और इसी तरह का व्यवहार करती, तो क्या प्रतिक्रिया होती?
 
सबसे पहले, यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री सचिवालय में था, जहाँ सुरक्षा की सख्त व्यवस्था होती है। नियुक्ति पत्र लेने वाले हर व्यक्ति की आईडी, नाम और फोटो पहले से सत्यापित होते हैं। महिला सुरक्षाकर्मी कपड़ों की जाँच करती हैं। अगर कोई खतरा होता, तो महिला को मंच पर पहुँचने ही नहीं दिया जाता। पहचान पुष्टि के लिए हिजाब हटाने की जरूरत नहीं थी, उन्हें इशारे से या अलग से कहा जा सकता था। खुद हाथ बढ़ाकर खींचना बदतमीजी ही है।
 
दूसरे, यह महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक अधिकार का मामला है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता देता है, अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार और अनुच्छेद 21 सम्मानजनक जीवन का अधिकार। घूँघट हो या हिजाब, महिला को छूना या खींचना अपराध है। सार्वजनिक मंच पर ऐसा व्यवहार निजता का हनन है।
 
तीसरे, सत्ता में बैठे व्यक्ति से अधिक संवेदनशीलता की उम्मीद होती है। नीतीश कुमार महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं। बिहार में लड़कियों की शिक्षा और साइकिल योजना उनके क्रेडिट पर हैं। लेकिन यह घटना उन दावों पर सवाल उठाती है। मंच पर हँसते लोग और मुख्यमंत्री का व्यवहार महिलाओं के प्रति पुरुषों की तुच्छ सोच दर्शाता है। 
 
और तो और, एनडीए के एक सहयोगी मंत्री ने इस घटना पर बचाव करते हुए बेहद घटिया बयान दिया – "नकाब ही तो खींचा है, इतना हो गया... कहीं और छू देते तो क्या होता?" यह बयान हंसते हुए दिया गया, जो महिलाओं के प्रति घोर असंवेदनशीलता और पुरुषवादी मानसिकता को पूरी तरह उजागर करता है। ऐसे शब्द न केवल अपमानजनक हैं, बल्कि समाज में महिलाओं की गरिमा को और कमजोर करते हैं।
 
यह न केवल एक महिला का अपमान है, बल्कि पूरे समाज को गलत संदेश देता है। समाज में महिलाओं की गरिमा और स्वतंत्रता का सम्मान हर हाल में जरूरी है। सत्ता का दुरुपयोग कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता। केवल तभी हम सचमुच एक सशक्त और समावेशी समाज की ओर बढ़ सकेंगे।

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