नवम्बर में भारत बनेगा दुनिया का सबसे बड़ा हीरा व्यापार केंद्र
लोग यूँही गुजरातियों को पूर्ण खानदानी व्यापारी का तमगा नहीं देते। वे अपने अनुभवों के आधार पर जानते हैं कि अवसर का तुरंत लाभ और आपदा में अवसर खोजने में गुजराती का कोई जबाव नहीं है। वह जहां भी होता है, जिस जगह भी होता है अपने लिए जगह बना ही लेता है। और अगर गुजराती गुजरात में ही हो तो फिर सोने में सुहागा की कहावत को चरितार्थ कर देता है। आज दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति से लेकर दुनिया का सबसे बड़ा सोलर इनर्जी पार्क के साथ अनेक विश्व रिकार्ड गुजरात के नाम हो चुके हैं और अब नवम्बर में प्रधान मंत्री द्वारा सूरत के ‘डायमंड एक्सचेंज’ के औपचारिक उद्घाटन के बाद दुनिया के सबसे बड़े व्यापार केंद्र और विश्व के सबसे बड़े कार्यालय भवन का रिकार्ड भी गुजरात बनाने जा रहा है।
संसार के सबसे बड़े एक परिसरीय कार्यालय भवन का खिताब भी अब सूरत को मिल चुका है। सूरत में चार वर्ष की अथक मेहनत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा ‘डायमंड एक्सचेंज’ बनकर तैयार हो चुका है। इसने अमेरिका के पेंटागन परिसर को पीछे छोड़ दिया है। यह अब दुनिया का सबसे बडा भवन परिसर बन गया है। अभी तक दुनिया की सबसे बड़ी ‘ऑफिस बिल्डिंग’ का खिताब अमेरिका के रक्षा विभाग के मुख्यालय भवन पेंटागन के नाम रहा है। गुजरात के सूरत में विश्व की सबसे बड़ी ऑफिस बिल्डिंग का निर्माण हुआ है। इस इमारत को ‘हीरा व्यापार केंद्र’ के रूप में विकसित किया गया है। यह बिल्डिंग बाहर से जितनी आकर्षक और सुंदर है अंदर से उतनी ही शानदार भी है।
इस ‘अभी और अधिक विनिर्मिति क्षेत्र परिसर’ को तैयार करने में चार साल का समय लगा है। अभी तक विनिर्मित इस बिल्डिंग का फ्लोर स्पेस 70.1 लाख वर्ग फिट का है। इस परिक्षेत्र का औपचारिक उद्घाटन नवंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों से किया जाएगा। यह भवन बाहर से जितना आकर्षक और मनोहर है अंदर से भी उतना ही सुख सुविधाओं से परिपूर्ण भवन क्षेत्र भी है। इसे विश्व के डायमंड कैपिटल की ओर तेजी से बढ़ते सूरत में 'वन स्टॉप डेस्टिनेशन' के रूप में बनाया गया है। बता दें कि सूरत में दुनिया के 90 फीसदी से अधिक हीरे तराशे जाते हैं। इसमें नौ आयताकार बिल्डिंग्स है जो सभी एक सेंट्रल स्पाइन से जुड़ी हुई हैं।
अपनी मेहनत और अपार व्यापार बुद्धि के चलते गुजरातियों ने पहले बम्बई जो अब मुंबई कहलाता है को और फिर उसके बाद सूरत को हीरा व्यापार का हीरा कैसे बनाया, विभिन्न श्रोतो से प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रंखला इस प्रकार बनती है
विश्व में कुल उत्पादन के 99% प्राकृतिक हीरे अफ्रीका की खदानों से निकलते हैं और डीबियर्स जैसी तमाम बड़ी कंपनियां उन अनगढ़ हीरों को एंटवर्प में बैठे बड़े बड़े यहूदी दलालों के माध्यम से गुजरात में तराशने और पॉलिश करने के लिए भेजती थी, परिष्कृत होकर, फिर गुजरात के सूरत से वह हीरा यानी कच्चा हीरा पॉलिश होकर वापस एंटवर्प के यहूदी दलालों के पास जाता था, और फिर वहां से वे जगमगाते हीरे सम्पूर्ण विश्व के बाजारों में बिकने के लिए पंहुच जाते थे।
सूरत के विश्वपटल पर आने से पहले पूरे विश्व में दो शहर डायमंड के सबसे बड़े केंद्र थे। एक बेल्जियम का एंटवर्प और दूसरा रूस का ब्लोड़ीबोस्टक। इन दोनों जगहों पर पूरी तरह से यहूदी व्यापारियों का सम्पूर्ण हीरा व्यापार पर एकछत्र कब्जा था। स्मरणीय है कि यहूदी व्यापार के मामले में सबसे बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं। इन्होंने अपना एक व्यापारिक संबंधों का ऐसा अभेद्य किला बना दिया था कि दूसरे किसी को भी हीरा उद्योग में टिकने ही नहीं देते थे। इनका नेटवर्क जर्मनी, इजराइल, रूस से लेकर अमेरिका के न्यूयॉर्क तक फैला हुआ था। एक समय हालात ऐसे थे एंटवर्प में बैठा यहूदी अपरिष्कृत हीरे लेकर गुजरात के सूरत में पॉलिश करवाता था और वापस उन हीरों को ऊंचे दामों पर उन्ही कंपनियों को बेच देता था।
इस पूरी प्रक्रिया में एंटवर्प में बैठा यहूदी दलाल बगैर किसी मेहनत मजदूरी के 20 से 25 प्रतिशत तक का लाभ कमा लेता था और सूरत में हीरा पालिश करने वाली कंपनियों को मात्र 4 से 5 प्रतिशत तक ही लाभ मिल पाता था। सूरत के एक हीरा पॉलिश की यूनिट चलाने वाले सेवंतीभाई शाह, जो गुजरात के बनासकांठा जिले के थरा गांव के रहने वाले थे, उन्हें भी यह देखकर बड़ा दुख होता था हम इतनी मेहनत और मजदूरी करते हैं, हमें सिर्फ चार से 5 प्रतिशत मुनाफा मिलता है, लेकिन एंटवर्प में बैठा यहूदी बिना किसी मेहनत के 20 से 25 प्रतिशत कमा लेता है।
बहुत सोचविचार के बाद उन्होंने एंटवर्प जाकर वहां पर हीरे की दलाली करने की सोची, मगर उन्हें उनके शुभ चिंतकों ने कहा कि यहूदी बिजनेस में इतने माहिर होते हैं कि उन्हें टक्कर देना आसान काम नहीं है और ऊपर से अफ्रीका से लेकर अमेरिका, रशिया, बेल्जियम, ब्रिटेन पूरी दुनिया में उनका अपना एक नेटवर्क है। उसको छेद पाना आपके अकेले बस की बात नहीं है।
मगर सेवंतीभाई शाह नहीं माने. उन्होंने कहा कि मेरे पास मेरी मेहनत, मेरा पुरुषार्थ, मेरी ईमानदारी और मेरी विश्वसनीयता रहेगी। उसके बाद सेवंती भाई शाह ने एंटवर्प में अपना एक ब्रांच ऑफिस शुरू किया और वह डीबियर्स के मालिकों को यह समझाने में सफल रहे कि आप हीरे किसी कंपनी को देते हैं वह हमसे पॉलिश करवाती है। 5 प्रतिशत मुनाफा हम कमाते हैं, 20 प्रतिशत मुनाफा वह दलाल कमाता है। इस तरह आपको 25 प्रतिशत का नुकसान होता है। आप अपना अपरिष्कृत हीरा मुझे दीजिए. मैं परिष्कृत करके सिर्फ 15 प्रतिशत में वापस कर दूंगा लेकिन मेरे पास बहुत बड़ी पूंजी नहीं है, मेरे पास विश्वसनीयता और वचनबद्धता है, मेरी ईमानदारी है। आप मुझ पर विश्वास करके यह काम शुरू कर सकते हैं।
आपको सीधे सीधे 10 प्रतिशत का लाभ होगा। हीरा उद्योग में जहां करोड़ों का काम होता है वहां 10 प्रतिशत बहुत मायने रखता है। डीबियर्स के मालिक यह बात समझ गए और उन्होंने सेवंती भाई को शुरू में कम और फिर भरपूर हीरा पालिश के लिए देना शुरू कर दिया। सेवंती भाई शाह ने भी पूरी ईमानदारी से कार्य किया और बहुत अच्छे तरीके से हीरा पॉलिश करके उन्हे देते रहे। इससे गुजरातियों की साख बन गयी। सेवंती भाई ने अन्य बन्धु बांधवों को वहां बुलाया और फिर तो कमाल ही हो गया। धीरे धीरे हालत ऐसे बनते गए कि आज आप एंटवर्प चले जाइए, एक भी यहूदी आपको नजर नहीं आएगा। सारा हीरा उद्योग गुजराती व्यापारियों ने कब्जा कर लिया है। अब यहूदी उन्हीं गुजरातियों के यहां नौकरी करते नजर आ रहे हैं। मजे की बात यह है कि एंटवर्प में जाने पर आपको ऐसा लगेगा कि जैसे आप गुजरात आ गए हैं।
वहां पर आपको दाबेली की दुकानें दिखेंगी, ढोकला और खम्मन बिकता हुआ नजर आएगा। हर गली मुहल्ले और मोड़ पर आपको गुजराती रेस्टोरेंट मिलेंगे और हर तीसरा व्यक्ति आपको गुजराती बोलता मिलेगा। यही हाल ब्लोड़ीबोस्टक का भी हो गया है, गुजराती व्यापारियों ने ब्लोड़ीबोस्टक से यहूदियों से पूरा हीरा उद्योग छीन लिया है और वही यहूदी आज गुजराती व्यापारियों के यहां नौकरी कर रहे हैं। अब पूरा गुजराती समाज सूरत को ‘हीरा हब’ के रूप में विकसित कर रहा है जिसमें राज्य और केंद्र सरकार खुले दिल से साथ दे रहे हैं।
- राज सक्सेना

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