भोले के सुगम और दुर्गम दर्शन

भोले के सुगम और दुर्गम दर्शन

भोले के सुगम और दुर्गम दर्शन


सावन का महीना भोले की भक्ति का महीना   है लेकिन काशी में भोले के दर्शन अब सुगम नहीं रहे .दुर्गम हो गए हैं. काशी अब पहले वाली काशी नहीं है .अब ये काशी बाबा विश्वनाथ की नहीं बल्कि किसी और  की काशी है. काशी में बाबा विश्वनाथ से पूछे बिना मंदिर के सीईओ सुनील कुमार वर्मा ने बाबा के दर्शनों के रेट बढ़ा दिए हैं .अब्बल तो ये रेट निर्धारण का अधिकार सुनील को किसने दिया है और फिर ये बढ़ाये क्यों गए हैं ?

काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए आम दिनों में 500  रूपये,सोमवार को 750 ,मंगला आरती में 1000 ,सोमवार की मंगला आरती 2000  सोमवार को विशेष श्रृंगार के दर्शन के लिए 20  हजार रूपये देना होंगे .सुगम दर्शन का आठ है की आप बिना कतार में लगे सीधे गर्भगृह में पहुँच सकते हैं .दुनिया के तमाम देशों में भगवान के दर्शनों पर शुल्क नहीं लिया जाता किन्तु भारत में हिंदुत्व के ठेकेदार भगवान के नाम पर कमाते हैं .उन्हें अधिकार है कि वे भगवान के जरिये कैसे कमाएं और कितना कमाएं .हमारे अपने महाकाल के दर्शन भी इसी तरह होते हैं,इसलिए हम रेल में बैठे-बैठे ही उनके हाथ जोड़ लेते हैं .

भारत में ही आप किसी गुरुद्वारा में जाइये कोई दर्शन शुल्क नहीं है.किसी गिरजाघर में जाइये,कोई दर्शन शुल्क नहीं है. किसी जैन मंदिर में जाइये,कोई दर्शन शुल्क नहीं है ,किस मस्जिद में नमाज पढ़ने जाइये कोई शुल्क नहीं ,लेकिन किसी मंदिर में जाइये तो वहां दर्शन शुल्क है .हिन्दुओं के भगवान आम आदमी के भगवान नहीं हैं शायद. इसीलिए वे अपने दर्शनों का शुल्क वसूल करते हैं .भगवान ने अपने भक्तों की श्रेणियां बना रखीं हैं .भगवान ने बनाई है तो उनके सेवकों ने बना ली हैं और भगवान चुपचाप देखते रहते हैं .

हिन्दू मंदिरों के बाहर पंडा राज चलता है. मंदिर के बाहर से लेकर भीतर वे अपने जजमानों को मूढ़ते हैं .दक्षिण के मंदिर में जाइये या उत्तर के , पूरब के ,में जाइये या पश्चिम के मंदिर में ,ये एजेंट आपको हर जगह मौजूद मिलेंगे .और तो और गया में पिंडदान करने जाइये तो वहां भी ये मौजूद हैं .भक्तों की मदद  के लिए इनकी सेवाएं होती हैं ,लेकिन सेवा शुल्क के साथ .जितना बड़ा मंदिर ,उतना बड़ा शुल्क .हर मंदिर में बैठा देवता आम आदमी से पहले ख़ास आदमी को दर्शन देने के लिए विवश है क्योंकि उसके प्रबंधकों ने ख़ास आदमी से धन जो वसूल कर लिया होता है .भगवान के प्रबंधक फिल्म अभिनेताओं के प्रबंधकों जैसे आते हैं. वे ही तय करते हैं की भगवान कब और किसे और कितनी देर दर्शन देंगे .

संयोग से मै अपने  देश के और विदेशों के तमाम प्रमुख मंदिरों में भक्त की हैसियत से ही नहीं एक पर्यटक की हैसियत से गया हूँ ,इसलिए जो लिख रहा हूँ अनुभव के आधार पर लिख रहा हूँ .दुनिया में न मस्जिद में वीआपी होता है और न गुरुद्वारे में गिरजाघर में भी कोई वीआईपी नहीं होता है.मस्जिद में तो होता ही नहीं है .हाँ जैन मंदिर में थैलियां देखकर आम और ख़ास आदमी हो जाता है .यहां का विधि -विधान अलग है ,लेकिन उसे लूटमार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता .केवल हिंदुओंके मंदिर ऐसे हैं जहां आम आदमी की मुसीबत है .उसे देव् दर्शन के लिए घंटों तक कतारों में खड़ा होना पड़ता है .

आप देखेंगे की हिन्दू मंदिरों में चढ़ावा दूसरे धर्म के पूजाघरों के मुकाबले सबसे ज्यादा आता है ,इतना कि उसे गिनने के लिए मशीनों की मदद लेना पड़ती है,फिर भी भगवान के भोजन और श्रृंगार  के लिए अतिरिक्त आमदनी की जरूरत पड़ती है और ये जरूरत ही दर्शन शुल्क का असल कारण है. देवता तो देवता, हमारे यहां फकीरों के मंदिरों में भी शुल्क की व्यवस्था है क्योंकि प्रबंधकों ने पाषाण शिला पर बैठने वाले फकीरों की प्रतिमाओं   को बैठने के लिए स्वर्णजटित सिंघासन जो बनवा दिए हैं. 

बेचारा हिन्दू ' हरि को भजे सो हरी को होई ' के फार्मूले पर यकीन करता है लेकिन जब मंदिर पहुंचता है तो वहां के प्रबंध देखकर ठगा सा रह जाता है .एक सनातनी हिन्दू के नाते देव् दर्शन मुझे भी प्रिय है. लेकिन मै देव् दर्शन के लिए जब रुपया खर्च नहीं कर पाता तो सुगम दर्शनों के बजाय दुर्गम दर्शनों को चुनता हूँ और कभी-कभी कभी तो मंदिर के शिखर पर फहराते ध्वज को प्रणाम करके   भी मन को समझा लेता हूँ. मन मानता नहीं है लेकिन उसे मनाना पड़ता है .

हमारे   गांव के मंदिरों में देव् दर्शन का कोई शुल्क नहीं लगता.वहां विग्रहों की पूजा हम बेखटके कर सकते हैं. कोई गरीब-अमीर और वीआईपी नहीं होता ,लेकिन बड़े शहरों में ये सब नहीं है .बड़े शहरोंमें गरीब,अमीर और वीआईपी सब होते हैं और सबके लिए इंतजाम करना पड़ता है भगवान को. भगवान के नाम पर इन पूजाघरों में लंगर चलते हैं और इसके लिए धन चाहिए .भगवान तो खेती करते नहीं,उद्योग चलते नहीं सो ऐसे लोगों से धन शुल्क के रूप में ले लेते हैं .

हिन्दू मंदिरोंमें शुल्क  की प्रथा भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका तक में है. अमेरिका में भगवान शिव का जलाभिषेक करने   के लिए कम से कम 11  डालर लगते हैं .लोग देते भी हैं लेकिन दर्शन के कोई पैसे नहीं लगते. दर्शन के पैसे तो भारत में ही लगते हैं. चीन में भी बौद्ध मंदिरों में दर्शन और पूजा निशुल्क है .एशिया के छोटे-बड़े देशों में मुझे कहीं देव् दर्शन के लिए पैसा नहीं देना पड़ता ,लेकिन अपने ही देश में मेरे लिए ये सुविधाएं नहीं हैं .और शायद हो भी नहीं सकतीं .आखिर भव्यता,दिव्यता के लिए पैसा तो चाहिए .

हमारे अध्येता  मित्र चुन्नीलाल बता रहे थे कि योरोप में धर्मकर्म के  लिए सरकार फंड जुटाती है ,लेकिन हमारे यहां सरकार मंदिर बनाने के लिए रथ यात्राएं  करती है. चन्दा जुटाती है .अदालत जाती है ,लेकिन केवल हिन्दू धर्म के लिए दूसरे धर्मों से उसे कोई लेना देना नहीं है .उसे क्या किसी को कोई लेना देना नहीं है. वैसे सरकारों को किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए .लेकिन हमारे यहां है .और ये अच्छी बात है .हम कहने भर को धर्म निरपेक्ष हैं ,जबकि हकीकत में हम धर्म सापेक्ष हैं .हमारी धर्म सापेक्षता हर चीज पर भारी पड़ती है .

बहरहाल मै पूजाघरों में शुल्क की बात कर रहा था. मेरा मुद्दा न महगाई है ,न भ्र्ष्टाचार ,न राष्ट्रपति चुनाव है और न पूर्व उप राष्ट्रपति पर लगे जासूसी के आरोप .मुझे किसी दूसरे मुद्दे से कुछ लेना -देना ही नहीं है, ' हुईए वही जो राम रची राखा ' .डालर के मुकाबले रुपया लुढ़के ,हमें क्या ? जेहि विधि राखे राम,तेहि विधि रहिये .राम जी चाहते हैं तभी तो सब कुछ हो रहा है ,हम खामखां किसी और को क्यों कोसें ? लेकिन भगवान   से हमारी एक ही विनती है कि वे हम आदमियों की तरह निरीह बने न रहें .अपने दर्शनों को निशुल्क करने के लिए कोई जुगत बैठाएं .अपने प्रबंधकों को स्वप्न में आकर निर्देश दें .अन्यथा हमारी कौन सुनने वाला है ?

  राकेश अचल  

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