बाबरी मस्जिद से बाबर तक ​​​​​​​

बाबरी मस्जिद से बाबर तक ​​​​​​​

बाबरी मस्जिद से बाबर तक ​​​​​​​


राकेश अचल 

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के कटघरही गांव में रहने वाला बाबर,कोई मुगल सम्राट नहीं था ,लेकिन भाजपा का समर्थक   होने की वजह से उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़े .बाबर का कसूर सिर्फ इतना था कि वो योगी आदित्यनाथ की जीत पर मिठाई बाँट रहा था .मुहल्ले-पड़ौस के लोगों को बाबर का मिठाई बांटना अच्छा नहीं लगा ,लेकिन बाबर ने जय श्रीराम का नारा और बुलंद कर दिया ,बदले में लोगों ने उसे इतना पीटा कि उसकी जैरे इलाज अस्पताल में मौत हो गयी .सरकार ने अपने समर्थक कोई इस कुर्बानी की कीमत मात्र दो लाख रूपये लगाईं .


बाबर की मौत एक मामूली सी घटना है ,इसलिए इस पर लिखना अपना समय बर्बाद करने जैसा है ,लेकिन मै इस पर लिख रहा हूँ क्योंकि ये वारदात मेरे लिए बाबरी मस्जिद गिराए जाने की वारदात से कम नहीं है .पिछले दिनों में मैंने अपने लेख में कहा था कि सियासत ने घर-घर मोदी को पहुँचाने की जल्दबाजी में नफरत के बीज अब घरों के भीतर बो दिए हैं .बाबर की मौत इसी नफरत का नतीजा है .ये नफरत एक दिन में पैदा नहीं हुई .इसे पनपने में बरसों लगे तीस साल में नफरत का ये पौधा वटवृक्ष बन चुका है और अब जो स्थिति है आपके सामने है .

लोकतंत्र में चुनावों में हार-जीत एक स्वाभाविक प्रक्रिया है ,भले ही इसके पीछे प्रबंधन हो या जालसाजी .अब इससे कोई ज्यादा ख़ास फर्क नहीं पड़ता और न पड़ना चाहिए क्योंकि  अब प्रबंधन और जालसाजी सियासत का अभिन्न अंग बन चुकी है .फर्क तो इस बात से pad रहा है कि सियासत ने घर-घर में नफरत की दीवार खड़ी कर दी है. पहले सियासत में समर्थक होते थे ,कलिकाल में भक्त होने लगे हैं .समर्थक और भक्तों में भेद है .समर्थक जान हथेली पर लेकर नहीं चलते ,लेकिन भक्त चलते हैं और वे ही बाबर की मौत मारे जाते हैं .बाबरी मस्जिद गिराने या बाबर की हत्या होने से नफरत कम नहीं होती और -और बढ़ती है .बढ़ती ही जाती है .मुआवजा भी इस नफरत की आग की ठंडा नहीं कर सकता .

मामला रामकोला थानाक्षेत्र के कटगरही गांव का है. बाबर के भाई चंदे आलम के मुताबिक  जब 10 मार्च को चुनाव के नतीजे आए, तो भाजपा के जीतने की खुशी में बाबर आलम ने गांव में मिठाई बंटवाई. इस वजह से उसके पड़ोसी नाराज थे. तनाव बरकरार रहा. लेकिन बात बढ़ गई 20 मार्च को. जब अपनी दुकान से लौटने के बाद बाबर ने ‘जय श्रीराम’ का नारा लगा दिया. पट्टीदार गुस्सा गए. हमला कर दिया. बाबर हमले में घायल हुए और उन्हें उसके बाद जिला अस्पताल ले जाया गया, वहां से लखनऊ भेज दिया गया. लखनऊ में इलाज के दौरान बाबर की मौत हो गई. आरोप है कि,अजीमुल्लाह, आरिफ, ताहिद, परवेज ने बाबर पर हमला किया.

बाबर की पत्नी फातिमा के मुताबिक  हमलावरों में  महिलाएं भी शामिल थीं ,वे भी  बाबर को पीट रही थीं. जान बचाने के लिए बाबर छत पर चढ़ गया. लेकिन पड़ोसी वहां भी पहुंच गए और बाबर को वहां से नीचे फेंक दिया.

बाबर की मां जैबुन्निशा ने कहा कि छत से गिरे बाबर को रामकोला सीएचसी में भर्ती कराया गया, जहां से जिला अस्पताल और फिर लखनऊ रेफर कर दिया गया. लखनऊ में इलाज के दौरान बाबर की मौत हो गई.ये संयोग ही समझिये कि बाबर को मार डालने वाले उसकी अपनी बिरादरी के ही नहीं उसके अपने रिश्तेदार हैं ,अन्यथा आग और फ़ैल सकती थी .अब मुख्यमंत्री जी का निर्देश आया है इसलिए मामले की गहन जांच की जाएगी ,लेकिन क्या ये जांच इस बात के सूत्र पकड़ पाएगी कि जफरत के ये बीज किसने और कब बोये जो जानलेवा साबित हुए ?

राजनीति में बाबरी मस्जिद का गिराया जाना एक इतिहास है ,बाबर कि मौत इतिहास नहीं बन पायेगी ,क्योंकि बाबर एक लघुतम प्यादा था सियासत का .सियासत में बाबर ही नहीं मरते लेकिन बाबर भी मरते हैं .सियासत बाबर को अपना समार्थक बनाने में तो कामयाब रही लेकिन उसकी जान बचाने में कामयाब नहीं रही .राजनीति का काम बाबरों   की जान बचाना है भी नहीं .नफरत की राजनीति बाबरों की दुश्मन है ,ये मै नहीं कहता तारीख कहती है ,यदि इस बात में सच्चाई न होती तो तय मानिये कि कुशीनगर का बाबर न मरता .सियासत को बाबर कि मौत से सबक लेना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि नफरत की खेती तत्काल प्रभाव  से बंद हो जाये .नफरत एक जहर है और जहर अपना काम करता है .

योगी आदित्यनाथ या भाजपा की जीत पर मिठाई बांटना कोई अपराध नहीं है. यदि मै किसी का समर्थक   हूँ तो मै जरूर मिठाई बांटूंगा.बाबर ने भी मिठाई ही तो बांटी थी लेकिन उसे पता नहीं था कि उसके हाथ में जो मिठाई थी उसमें कहीं न कहीं जहर भी था .क्या कारण था कि जिस मुहल्ले में बाबर भाजपा का समर्थक था लेकिन उसके रिश्तेदार भाजपा के समर्थक नहीं थे .कायदे से बाबर क्या उसकी पूरी बिरादरी को भाजपा का समर्थक होना चाहिए था .लेकिन इसकी जांच कोई नहीं करेगा.

बाबर कि मौत 'मोबलिंचिंग' की एक फ़ाइल बनकर रह जाएगी,क्योंकि ये कोई कश्मीर फाइल का मसाला नहीं है .जबकि केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं पूरे  देश में सियासत के जरिये नफरत फ़ैलाने की साजिश की अपनी एक अलग पौशीदा फ़ाइल है .इसे भी खोला  जाना चाहिए. जनता को हकीकत बताई जाना चाहिए ,किन्तु ये काम करे कौन ? विवेक अग्नहोत्री तो ले-देकर एक ही है हमारे पास .
 

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