स्वच्छता : लक्ष्य एवं उपलब्धियां

स्वच्छता : लक्ष्य एवं उपलब्धियां

स्वच्छता : लक्ष्य एवं उपलब्धियां


कृष्ण कुमार 

असल सवाल यह है कि भारत सरकार ने तमाम ज्वलंत मुद्दों में से स्वच्छता को फोकस क्यों किया? दरअसल विश्व का 60 फीसदी लोग खुले में शौच भारत में करते हैं। इसका मूल कारण यह है कि यहां जनसंख्या का दबाव है। भारत एक विकासशील देश है। पिछले दो दशक में शहरीकरण तेजी से बढ़ा है। बता दें कि देश की कुल जनसंख्या का 28 फीसदी शहरों में लोग रहते हैं। शहरों के सीमांत पर झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की तादाद ज्यादा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें तो विश्व में सबसे अधिक बच्चे डायरिया से यहां मरते हैं। भारत तेजी से विकासशील से विकसित देशों के समकक्ष खड़ा होने के लिए आगे बढ़ रहा है। इन्हीं सब कारणों से भारत सरकार ने स्वच्छता को फोकस किया है। 2014 में नई सरकार आई। 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की 145 वीं जयंती पर स्वच्छ भारत अभियान नामक नेशनल फ्लैगशिप कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में झाड़ू लगाकर नई चेतना का संचार कर दिया। देखते ही देखते यह एक आंदोलन का रूप धारण कर लिया। हर राज्य के मुख्यमंत्री, सरकारी कार्यालयों में अधिकारी आदि ने इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए साफ सफाई शुरू कर दिया और झाड़ू थाम लिया। अंततः परिणाम यह हुआ कि यह आंदोलन आम आदमी का आंदोलन बन गया। लोगों में चेतना इस तरह जागी की अखबारों में यह खबर पढ़ने को मिलने लगी कि जिस घर में शौचालय नहीं, उस घर में लोग शादी विवाह से कतरा रहे हैं। यानी स्वच्छता एक स्टेटस बन गया।

इधर सरकार भी लोगों की जागरूकता और दिलचस्पी को समझ गई। संसद में स्वच्छता अभियान के लिए अलग से बजट पारित किया गया। पूरे देश में 5 साल में यानी 2014 से 2019 तक गांधी जयंती के 150वीं जन्म दिवस तक दो करोड़ शौचालयों का निर्माण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। लोगों को अपने घरों में शौचालय बनवाने के लिए एक निर्धारित मापदंड के तहत धनराशि प्रदान की गई। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वच्छता अभियान से उत्साहित होकर बालिका विद्यालयों में बालिकाओं की संख्या बढ़ गई। शौचालय नहीं होने की वजह से लाखों अभिभावक बालिकाओं को विद्यालय भेजने से परहेज करते थे।

उल्लेखनीय है कि स्वच्छता विषय संविधान के अनुसार राज्य का विषय है परंतु केंद्र सरकार ने इसे नेशनल फ्लैगशिप कार्यक्रम में शामिल करते हुए राज्यों के लिए बजट आवंटित किया। स्वच्छता अभियान का 6 साल पूरा हो चुका है। सच्चाई है कि जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था वह शत-प्रतिशत पूरा नहीं हो पाया परंतु इतने कम समय में जो उपलब्धियां हासिल हुई है वह काफी मायने रखती है। इस अभियान की तारीफ हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किया है और कहा है कि भारत में स्वच्छ भारत अभियान की वजह से 5 वर्ष से कम बच्चों की डायरिया से मौतों की संख्या में कमी आई है।

ऐसा नहीं है कि इससे पहले की सरकारें स्वच्छता पर ध्यान नहीं दिया। यह पूर्व का ही निर्मल भारत अभियान का मॉडिफाई मॉडल है परंतु पहले के अभियानों में आज की तरह जनचेतना जागृत नहीं हुई थी। इसका कारण यह है कि पहले की अपेक्षा देश में शिक्षित एवं साक्षर लोगों की संख्या बढ़ रही है। और साक्षरता ही किसी क्रांति का जड़ होता है। नई सरकार ने तमाम ज्वलंत मुद्दों में से इस मुद्दे को चुना और गंदगी हटाओ आंदोलन का नारा दिया।

उल्लेखनीय है कि इस आंदोलन से लगभग पचास हजार लोगों को रोजगार का अवसर प्राप्त हुआ। स्वच्छता का संबंध सिर्फ शौचालय से नहीं है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि से भी है। सिर्फ चार महानगरों की गंदगी को जोड़ें तो सोलह बिलियन गंदे पानी प्रतिदिन नदियों में गिरती हैं। इसके खतरनाक अंजाम सामने आ रहे हैं। आने वाले समय में जल विषय सबसे बड़ी समस्या होगी।

हाल ही में ब्रिटेन के ग्लासगो में कोप -26 अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन हुआ। अंतरराष्ट्रीय मंच पर फैसला लिया गया कि 2050 तक कार्बन उत्सर्जन 1.5 अंक तक सीमित रखना है अन्यथा पूरी मानवजाति खतरे में होगी। वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ने से अंटार्कटिका पिघल गई है एवं तटीय देश डूब रहे हैं। दिल्ली में हाल ही में रोक के बावजूद जिस तरह लोगों ने पटाखे छोड़े हैं उससे प्रदूषण का स्तर 400 अंक से अधिक हो गया है। रात्रि में तो कहीं-कहीं 1000 अंक से अधिक हो गया है। विश्व के टॉप प्रदूषित शहरों में दिल्ली का नाम शुमार हो गया है। इतनी खराब स्थिति हो गई कि सरकार द्वारा एक अलग प्रकार का लॉकडाउन लगाया गया। आम जनता की ऐसी मानसिकता से स्वच्छता अभियान को धक्का लगा है।

दरअसल हमारे देश में किसी नियम कानून को बना देना ही काफी नहीं होता है। असल बात यह है कि कोई भी कानून या नियम या आदेश तभी लोकतंत्र में लागू हो पाता है जब उसको व्यापक जन समर्थन हासिल हो। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद लोगों ने पटाखे छोड़े और वायु स्वच्छता का मजाक उड़ाया। हमें स्वच्छता के हरेक पहलू पर ध्यान देना होगा। शौचालय, जल, वायु सभी में स्वच्छता जरूरी है। इससे भी बड़ी बात यह है कि सोच का स्वच्छ होना जरूरी है।

हमारी भारतीय सोच सिंगापुर एयरपोर्ट पर मूंगफली खाता है। उसके छिलके बैग में रख लेता है और दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरते ही छिलके यत्र-तत्र फेंक देता है। इस सोच को बदलने की जरूरत है। जिस दिन यह सोच बदल जाएगी भारत विश्व गुरु बन जाएगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं और कार्मिक मंत्रालय द्वारा पुरस्कृत लेख है। लेखक कार्मिक मंत्रालय, भारत सरकार, नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी हैं)

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