माधवराव सिंधिया आज कहाँ होते ?

माधवराव सिंधिया आज कहाँ होते ?

माधवराव सिंधिया आज कहाँ होते ?


राकेश अचल 

पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय माधव राव सिंधिया की आज 77  वीं जयंती है.ग्वालियर में उन्हें इस मौके पर कांग्रेसी कम भाजपाई ज्यादा शिद्दत से याद कर रहे हैं ,जबकि वे भाजपा में कभी नहीं रहे ,हालाँकि भाजपा उनके सामने ही जन्मी थी. सवाल ये है कि यदि आज वे जीवित होते तो क्या भाजपा में होते ?

माधवराव सिंधिया आजादी के बाद की भारतीय राजनीति का एक लोक-लुभावन चेहरा थे .भारतीय गणराज्य में विलीन हुई देश की पांच सौ से अधिक देसी रियासतों में दूसरी सबसे बड़ी ग्वालियर रियासत के मुखिया राजनीति में जिस ताजगी के साथ आये थे उससे कहीं ज्यादा सम्मान के साथ विदा भी हुए. वे एक विमान दुर्घटना में उस समय मारे गए जब यूपी में पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए जा रहे थे .उन्हें विदा करने देश के प्रधानमंत्री से लेकर देश की आधी से अधिक संसद ग्वालियर में मौजूद थी .

सिंधिया माधवराव की स्मृति में पिछले 21  साल से ग्वालियर में आयोजन किये जाते रहे हैं किन्तु भाजपा का कोई नेता इन आयोजनों में कभी शामिल नहीं हुआ.होता भी क्यों ,वे कोई भाजपा के नेता तो थे नहीं ?लेकिन ये पहला मौक़ा है जब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान माधवराव सिंधिया की जयंती पर विशेष रूप से ग्वालियर आ रहे हैं .ये उनकी शृद्धा है या विवशता इसका निर्णय आप खुद कर सकते हैं .लेकिन फिर वही सवाल की क्या माधवराव सिंधिया जीवित होते तो क्या वे भी भाजपा में होते ?

सिंधिया ने मात्र 26  साल की उम्र में गुना से 1971  में लोकसभा का चुनाव शायद जनसंघ के टिकिट पर लड़ा था 77  और   .1980  में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में वे निर्दलीय चुनाव लड़े और 1984  में वे कांग्रेस में शामिल हो गए 1996  में कांग्रेस से बाहर किये गए किन्तु १९९८ में वापस कांग्रेस में आ गए और जीवनपर्यन्त कांग्रेस में रहे .कांग्रेस से उन्हें निकला गया था ,वे खुद नहीं निकले थे बावजूद वे भाजपा में नहीं गए .उन्होंने मप्र विकास कांग्रेस के टिकिट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता था .उन्होंने लोकसभा  के कुल  9 चुनाव लड़े और सभी जीते भी .

सिंधिया की सियासत केवल सिंधिया ही जान सकते हैं ,दूसरा कोई नहीं . माधवराव सिंधिया की माँ राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी पहले कांग्रेस में थीं लेकिन एक बार कांग्रेस से उनकी अनबन हुई तो वे कांग्रेस का दुपट्टा छोड़कर जो गयीं तो फिर कभी वापस  नहीं लौटीं .राजमाता के पौत्र आज के केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी दो साल पहले कांग्रस का दुपट्टा उतार फेंका और भाजपा में शामिल हो गए .फिर वो ही सवाल की यदि आज माधवराव सिंधिया जीवित होते तो वे क्या करते ? क्या वे भी भाजपा में शामिल हो गए होते ?

माधवराव सिंधिया ,राजमाता सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया में फर्क क्या है आखिर ? एक ही परिवार के इन तीन दिग्गजों में एक ही फर्क है और वो ये कि माधवराव सिंधिया राजनीति में अजेय रहे. उनके हिस्से में जीवनपर्यन्त पराजय नहीं आयी ,जबकि राजमाता विजयाराजे सिंधिया और उनके पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पराजय का स्वाद चखा है मुझे लगता है कि यदि माधवराव सिंधिया जीवित होते तो वे शायद ही भाजपा में जाते .इसकी वजह ये है कि उनमें सहने की शक्ति राजमाता और अपने बेटे के मुकाबले कहीं ज्यादा थी .

वे आपातकाल के समय  भले ही विदेश चले गए थे किन्तु वापस लौटे तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा और लगातार थामे रहे . पीव्ही नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्रित्व काल में कांग्रेस में अपमानित भी हुए,पार्टी से बाहर किये गए लेकिन उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया .सिंधिया की बहन बसुंधरा राजे और यशोधरा राजे ही नहीं मां राजमाता भी चाहतीं थीं कि वे कांग्रेस से निकाले जाने  के बाद भाजपा में शामिल हो जाएँ ,लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया .वे जानते थे कि भाजपा उनके चरित्र से ,व्यक्तित्व से मेल नहीं खाती हालाँकि भाजपा हर समय उनके लिए पलक पांवड़े बिछाये रही,यहां तक कि 1996  में जब वे कांग्रेस से बाहर किये जाने के बाद चुनाव लड़ रहे थे तब भाजपा ने अपना प्रत्याशी मैदान से हटा लिया था .

माधवराव सिंधिया वास्तव में एक अति लोकप्रिय नेता थे,वो तो उनका भाग्य उनके साथ नहीं था अन्यथा वे देश के प्रधानमंत्री भी हो सकते थे .वे यदि आज जीवित होते तो शायद वे आज कांग्रेस के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक होते ,क्योंकि उनकी पीढ़ी के तमाम  नेताओं में वे अकेले थे जो कांग्रेस नेतृत्व के नजदीक थे और कांग्रेस के बाहर भी उनकी सर्वग्राहिता थी ,

वे होते तो शायद ही किसी दबाब में आते .भाजपा सरकार के तोता,मेना उन्हें शायद ही भयभीत  कर भाजपा में शामिल होने के लिए मजबूर कर पाते .विकास के प्रति उनकी ललक बेमिसाल थी. वे सामंत  थे लेकिन उन्होंने अपने सामंत  को विजित कर लिया था .वे लोकसेवक के रूप में ही फबते थे .वे होते तो भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती होते ,संसद के बाहर भी और संसद  के बाहर भी .

देश की राजनीति में राजपथ  से लोकपथ पर आने वाले माधवराव सिंधिया ऐसे अपवाद थे जो विचारधारा के साथ आजन्म बंधे रहे .सिंधिया परिवार  के सदस्यों  के लिए राजनीति एक विवशता है लेकिन उन्होंने इस विवशता को अपनी कमजोरी बना लिया है .इस परिवार का कोई सदस्य  राजनीति में आये बिना जनता की सेवा करने का दुस्साहस कर ही नहीं सकता .बहरहाल माधवराव सिंधिया की लोकप्रियता के शिखर को छूना  उनके परिवार के किसी भी सदस्य के लिए कठिन  भले न  हो किन्तु बहुत  आसान  भी नहीं है. माधवराव सिंधिया के प्रति विनम्र श्रृद्धांजलि .
 

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