समाजिक नीरसता की ओर बढ़ता भारत

समाजिक नीरसता की ओर बढ़ता भारत

प्रशांत तिवारी की कलम से भारतीय समाज और उसमें बढ़ती नीरसता का बोलबाला पिछले कुछ दिनों में देखने को मिला जबकि इतिहास के पन्नों को उठा कर देखे तो भारतीय समाज ही भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिलवा चुका है. हमारा समाज विविधताओं में एकता का स्वरूप लिए विश्वस्तरीय पहुंच और पकड़ के लिए

भारतीय समाज और उसमें बढ़ती नीरसता का बोलबाला

प्रशांत तिवारी की कलम से

भारतीय समाज और उसमें बढ़ती नीरसता का बोलबाला पिछले कुछ दिनों में देखने को मिला जबकि इतिहास के पन्नों को उठा कर देखे तो भारतीय समाज ही भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिलवा चुका है.

हमारा समाज विविधताओं में एकता का स्वरूप लिए विश्वस्तरीय पहुंच और पकड़ के लिए जाना और पहचाना जाता है इतिहास गवाह है अनेकों सल्तनत को मिलाकर जम्मूद्वीप भारतवर्ष और आर्यावर्त जैसे व्यापक नाम शब्दों को समेटे अपने अलग अलग पहचान रखने वाला हमारा हिंदुस्तान कई आताताईयो  के आक्रमण और शासन को बर्दाश्त करते हुए भी अपनी सामाजिक उत्थान और भाईचारे को अब तक नहीं खोया.

भारत की सामाजिक आर्थिक राजनीतिक जैसे हर पहलुओं पर पिछले कुछ महीनों और दिनों से एक अलग चर्चा परिचर्चा शुरू हो गई है जिससे समाज भयभीत महसूस कर रहा है या ऐसा करवाया जा रहा है. दुनिया का एकमात्र ऐसा मुल्क जहां अलग-अलग जाति धर्म भाषा के लोग मिलकर भारतवर्ष को मजबूती देते हैं और एक दूसरे के त्यौहारों में शामिल होकर शुभकामनाएं देते हैं

आखिर ऐसे भारत और यहां के समाज को किसकी नजर लग गई है. जिससे समाज में प्रत्येक इंसान का नजरिया ही बदल चुका है पूरे देश में पिछले दिनों सामाजिक अस्थिरता का दौर भी देखने को व्यापक स्तर पर मिला. क्या भारतीय पूर्वजों को इन चीजों से कभी पाला नहीं पड़ा या कभी दुख नहीं हुआ जिसके चलते हमारे समाज में जो अब ताना-बाना  राजनीतिज्ञों के द्वारा बुना जा रहा है.

जब जब भी सामाजिक स्थिति में अस्थिरता देखने को मिला उसका दूरगामी परिणाम देश के साथ विश्व को भी देखने को मिला कुछ जानकारों और राजनीतिज्ञों ने तो इसका सीधा आरोप बाहरी ताकतों पर मढ़ दिया लेकिन क्या बाहरी ताकतें इतनी ताकतवर हो चुकी है कि आजादी के 70 साल बाद भी अपने मंसूबों में कामयाब होते दिख रहे है. जो हमारी आपसी भाईचारे और समाज में अस्थिरता उत्पन्न कर रहे हैं. यह कमजोरी अगर है तो इसे दूर करना हमारे जनप्रतिनिधियों और शासन सत्ता का काम है

चुनौतियां तो भारतीयों के लिए आजादी से पहले और आजादी के बाद भी रही लेकिन सामाजिक नीरसता तो आपसी तालमेल के लिए नासूर बन सकती हैं जिसका निराकरण करना बहुत ही अनिवार्य है हमारा लोहा दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकतें भी मानती हैं. लेकिन आपसी अस्थिरता कहीं गृह युद्ध की दशा और दिशा की ओर लेकर ना आगे बढ़ जाए जिसका ध्यान हर भारतीयों को रखना चाहिए कहीं हमारी सामाजिक अस्थिरता बाहरी मुल्कों के लिए ताकत ना बन जाए दुनिया के हर कोने में भारतीय मूल के लोगों का अपना एक अलग परचम है

जिसे हमेशा बरकरार रखने के लिए हर भारतीयों को आगे आना होगा आपसी नीरसता को दूर करते हुए सामाजिक अस्थिरता को भी खत्म करना कर्तव्य बन चुका है. आज हमारी सामाजिक नीरसता की ओर दुनिया के सैकड़ों देशों का नजर गड़ा पड़ा है और वे चाहते भी हैं कि हमारी कमजोरियों का फायदा उनको भरपूर मिले.

ऐसी स्थिति में हमारे विश्वस्तरीय राजनीतिज्ञों को भी सामाजिक नीरसता को रोकने पर पहल करना चाहिए. 

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