पितरों को पिंडदान करना सभी का कर्तव्य- पंडित गुलाबधर मिश्र।

पितरों को पिंडदान करना सभी का कर्तव्य- पंडित गुलाबधर मिश्र।

पिंडदान गंगा के किनारे, नदियों के किनारे, धार्मिक क्षेत्रों मे करते है। 


स्वतंत्र प्रभात 
 


संतोष तिवारी रिपोर्टर-

भदोही। पितृपक्ष के अंतिम दिन यानि अमावस्या को लोग अपने पितरों का बड़ी ही श्रद्धा से पिंडदान करते है। पितरों का पिंडदान करना सभी का कर्तव्य है। पितृ विसर्जन के पहले 14 दिन तक लोग अपने अपने पूर्वजों और पितरों को तिलांजलि देते है। और कोई धार्मिक कार्य नही करते, तेल साबुन इत्यादि नही लगाते तथा कई संयम नियम को मानते है। मान्यता है कि वर्ष के आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पूरा पितरों के लिए समर्पित है।

 और इस पक्ष में लोग पितरों को तिलांजलि, पिंडदान करके याद करते है और श्रद्धांजली देते है। पितृपक्ष के महत्व के बारे में पंडित गुलाबधर मिश्र ने बताया कि पितृपक्ष पितरों के लिए समर्पित है। इस पक्ष में  लोग अपने पूर्वजों को तिलांजलि देकर, पिंडदान करके अपने धर्म को निभाते है। यह पर्व पितरों को समर्पित पर्व है। और लोग बडे ही आस्था और श्रद्धा से पितरों का पिंडदान गंगा के किनारे, नदियों के किनारे, धार्मिक क्षेत्रों मे करते है। 

पंडित गुलाबधर ने बताया कि पिंडदान करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे प्रसन्न होते है। इसीलिए सभी को अपने पितरों का पिंडदान और जल तर्पण अवश्य करना चाहिए। पितृ विसर्जन पर्व के दिन लोगों को पिंडदान करके अपने पितरों को खुश करना चाहिए। 


क्योकि पितरों की आत्मा इसी दिन के इंतजार में लालायित रहती है। कहा कि इसका विवरण विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में भी है। कहा कि कुछ लोग अलग अलग तिथि को पिंडदान करते है। जबकि पितृ विसर्जन के दिन पिंडदान करना सबसे उत्तम है। क्योकि यह दिन पूरी तरह से पितरों के लिए समर्पित है।
 

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