पारस नाथ राय मनोज सिन्हा के अचानक बने पसंद

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1984 से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव में दिया था साथ

पारस नाथ राय की स्वच्छ छवि बनेगी जीत की बड़ी वजह


गाजीपुर।

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मैं हूं मनोज सिन्हा। जब जिसको चाहूंगा, गाजीपुर में सियासी हीरा बना दूंगा। यह मेरी सियासी ताकत है। इसमें किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करूंगा। क्योंकि मैंने गाजीपुर की सियासी बगिया को वर्ष 1984 से सींचा हूं। लहुरीकाशी की बगिया का मैं अकेले माली रहा हूं। तभी तो जाति के बंधन में फंसी गाजीपुर लोकसभा में तीन बार भाजपा को जीत दिलाई।

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सपा बसपा का शासन आया। कइयों ने पार्टी छोड़ी, मगर मेरा दिल कभी बदला नहीं। कल भी भाजपाई था और आज भी भाजपा हूं। भले ही शीर्ष नेतृत्व ने बेटे के टिकट पर सहमत नहीं हुआ, लेकिन मैंने जिसे चाहा वह टिकट लेकर गाजीपुर आ गया। कुछ ऐसा ही जम्मू एवं कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा के विषय में गंगा के तट पर बसी लहुरीकाशी के लोग सोचते हैं। जैसे ही पंडित मदन मोहन मालवीय इंटर कालेज के प्रबंधक एवं पुराने संघ के कार्यकर्ता पारसनाथ राय का नाम बीजेपी ने ऐलान किया तो हर कोई हैरान था। अचानक लोगों का ध्यान कश्मीर की वादियों में चला गया। तब पता चला कि पारसनाथ राय के हाथ में कमल का फूल कैसे आया। गाजीपुर का टिकट फाइनल होने पर भाजपा और संघ बैठक करके चुनाव की रणनीति बना रही है।

हालांकि मनोज सिन्हा के बाद टिकट के प्रबल दावेदार पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष बृजेंद्र राय ने पारसनाथ राय को टिकट मिलने पर नाराजती जताई। कहा कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व टिकट को लेकर पुर्नविचार करे। हम पुराने कार्यकर्ता हैं। मनोज सिन्हा के बाद सिंगल टिकट के दावेदार थे। कार्यकर्ता हमारे साथ हैं। फिर भी चौंकाने वाला फैसला कैसे आ गया। उधर पारसनाथ राय को टिकट मिलने के बाद अंसारी खेमे में खुशी का माहौल है। सभी ने कहा कि भाजपा ने एक तरह से सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी को वाक ओवर दे दिया।

पुराने संघ के कार्यकर्ता हैं पारस राय

मनिहारी ब्लाक के सिखड़ी निवासी पारसनाथ राय पुत्र स्व. उमाकांत राय को पार्टी ने प्रत्याशी घोषित किया है। पारसनाथ राय का जन्म 2 जनवरी 1955 को हुआ था। अगर पारसनाथ राय के सियासी पन्नों को पलटा जाए तो उन्होंने अपने जीवनकाल में एक भी चुनाव नहीं लड़ा। पारसनाथ राय लम्बे समय से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े थे। वह 1986 मे संघ के जिला कार्यवाह सहित विभिन्न पदों पर सफल दायित्व निर्वहन कर चुके हैं। वर्तमान समय में जौनपुर के सह विभाग सम्पर्क प्रमुख तथा क्रय विक्रय सहकारी समिति जंगीपुर के अध्यक्ष हैं। वह शबरी महिला महाविद्यालय सिखड़ी, पंडित मदन मोहन मालवीय इंटर कालेज तथा विद्या भारती विद्यालय के प्रबंधक हैं। वह उस समय से संघ के कार्यकर्ता रहे जब जिले में चुनिंदा लोग ही संघ से जुड़े रहे। शहर कोतवाली गाजीपुर ददरीघाट निवासी अरविंद राय कहते हैं कि पारस राय आमघाट में वर्ष 1984 में शाखा लगाते थे। हम लोग भी देखते थे। उनकी स्वच्छ छवि भाजपा को निश्चित तौर जीत दिलाएगी।

मनोज सिन्हा की पहली पसंद कैसे बने पारस राय

गाजीपुर लोकसभा के भाजपा प्रत्याशी पारसनाथ राय को लेकर हर कोई हैरान है। आखिर जिसका कभी नाम चर्चा में नहीं आया, वह कैसे उम्मीदवार बन गया। भाजपा ने 70 वर्षीय पारसनाथ राय पर कैसे भरोसा जताया। यह तमाम सवाल सत्ता और विपक्ष के लोग कर रहे हैं। साथ ही जब मनोज सिन्हा और उनके बेटे अभिनव सिन्हा का नाम चल रहा था तो उसमें पारस राय कैसे घुस गए।

इन तमाम सवालों का जवाब खोजने के लिए हमारी टीम ने भाजपा से लेकर विभिन्न सियासत दानों से सवाल पूछे। जवाब में यह आया कि मनोज सिन्हा चूंकि जम्मू एवं कश्मीर के एलजी हैं और वहां पर भी लोकसभा चुनाव प्रस्तावित है। वह कश्मीर को अच्छे ढंग से समझ गए हैं। चुनाव में भाजपा की मदद भी कर सकते हैं। गाजीपुर में उनकी बेहतर छवि पर किसी तरह का कोई दाग न आए, इसलिए भाजपा उन पर दाव लगाने से कतरा रही थी। साथ ही प्रधानमंत्री की पहली पसंद भी सिन्हा हैं। वह नहीं चाहते थे कि मनोज सिन्हा चुनाव लड़ें। उनका कार्यकाल अभी शेष है। जून में जब तीसरी बार नरेंद्र मोदी पीएम बनेंगे, तब सिन्हा को राज्यसभा भेजकर रेलमंत्री जैसा भारी भरकम विभाग सौंपा जाएगा।

जबकि उनके बेटे अभिनव सिन्हा सियासत में उतने मजे हुए खिलाड़ी नहीं हैं जितना होना चाहिए। वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में अभिनव मुहम्मदाबाद या फिर गाजीपुर सदर सीट से भाजपा उम्मीदवार हो सकते हैं। साथ ही अभी वह सियासत का ककहरा सीख रहे हैं। लेकिन जनता अभिनव को पसंद करने लगी थी। हालांकि सच्चाई मनोज सिन्हा को लेकर क्या है यह तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही जाने। मगर दोनों सिन्हा परिवार को भाजपा के ना कहने के बाद मनोज सिन्हा से गाजीपुर के लिए नाम मांगा गया। तब वर्ष 1984 से लेकर 2019 तक मनोज सिन्हा का चुनावी प्रबंधन संभालने वाले सिखड़ी निवासी एवं बीएचयू में सिन्हा के साथ पढ़े पारसनाथ राय पर अचानक सिन्हा का ध्यान चला गया। भरोसेमंद और दिन और रात सिन्हा का साथ निभाने वाले पारसनाथ राय का नाम प्रस्तावित कर दिया। तब अचानक शीर्ष नेतृत्व के पास पहुंच गया। चूंकि 70 वर्ष की उम्र पार कर चुके पारस राय अगला चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। इसलिए मनोज सिन्हा के लिए यह नाम बेहद सेफ समझ में आया।

अगर वह जीत भी जाएंगे तो मनोज सिन्हा की सियासत पर गाजीपुर में किसी तरह का खतरा नहीं बनेंगे। तभी तो आंख बंद करके मनोज सिन्हा ने हामी भर दी और दोपहर होते होते पारस राय का नाम चर्चा में आ गया। भाजपा के सीनियर नेता नरेंद्र नाथ सिंह कहते हैं कि पारस राय चुनाव प्रबंधन के माहिर हैं। उनके अनुभव का लाभ भाजपा को मिलेगा।

पारस राय से भी थे कई मजबूत उम्मीदवार

 गाजीपुर। सिखड़ी निवासी पारस राय को लेकर सियासी जगत में हलचल मच गई है। अधिकांश लोगों को उनके बारे में कुछ नहीं पता है। अचानक सीनियर हीरो बने पारस राय से भी मजबूत कई दावेदार भाजपा में थे, मगर उन्होंने मनोज सिन्हा का भरोसा नहीं जीत पाया था। पहला नाम बृजेश सिंह के भतीजे एवं विधायक सुशील सिंह का आ रहा था।

इसी तरह से एमएलसी विशाल सिंह चंचल पूर्व मंत्री विजय मिश्रा, जिला पंचायत अध्यक्ष सपना सिंह, पूर्व विधायक अलका राय, पूर्व विधायक सुनीता सिंह, प्रो. शोभनाथ यादव, विजय यादव, संतोष यादव, सानंद सिंह सहित कई नाम शामिल थे। सूत्रों की मानें तो इन नामों पर मनोज सिन्हा की टीम को भरोसा नहीं था। तभी पारस राय जैसे बुर्जुग हीरो को खोजकर भाजपा ने जीत का स्वाद चखने की तैयारी कर दी है। लेकिन बीजेपी कार्यकर्ता सोशल प्लेट फार्म पर चुनाव प्रचार नहीं करने का ऐलान तक कर दिया है। वह मनोज सिन्हा को खोज रहे हैं।

पारस के आने से अफजाल खेमे में खुशी की लहर

गाजीपुर। मनोज सिन्हा की जगह पारस राय को लोकसभा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद सपा उम्मीदवार एवं सांसद अफजाल अंसारी खेमे में खुशी की लहर है। सोशल प्लेट फार्म पर पारस राय को लेकर अच्छे कमेंट नहीं मिल रहे हैं। सभी एक सुर से कह रहे हैं कि अफजाल अंसारी सियासी का बड़ा नाम है। उनके आगे कहीं भी पारस राय नहीं टिक पाएंगे। ऐसे हालात में भाजपा ने एक तरह से अफजाल को वाक ओवर दे दिया है। गाजीपुर लोकसभा का सियासी गणित समझा जाए तो सपा पोलिंग वोट यादव और मुसलमान का तीन लाख लेकर चल रही हैं। साथ ही मुख्तार की मौत का सहानुभूति वोट भी अफजाल के खाते में जाता है। तभी तो बार बार अफजाल मनोज सिन्हा को चुनाव लड़ने के लिए चुनौती देते रहे हैं।

तो इस बार मंदिर में दर्शन करेंगे मनोज सिन्हा

गाजीपुर। पारस राय के नाम पर अकेले शीर्ष नेतृत्व के सामने जीत का दावा करने वाले एलजी मनोज सिन्हा क्या उन्हें जीताने के लिए मंदिरों में जाएंगे। यह सवाल अब विपक्ष भी उठाने लगा है। वर्ष 2022 के लोकसभा चुनाव में सातों विधानसभा सीटों पर अप्रत्यक्ष रूप से मनोज सिन्हा के ही पसंद के उम्मीदवार मैदान में आए थे। इसके बाद सिन्हा ने जमानियां से लेकर सैदपुर के मंदिरों में दर्शन पूजन करके अपने लोगों का कान फूंका था। हालांकि सिन्हा के कान फूंकने के बाद भी सातों सीटों पर भाजपा बुरी तरह से हार गई थी। तब सिन्हा पर भी सवाल उठे थे।

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