अतीत की स्मृतियों में खो गए स्वर्गीय रफी अहमद किदवई
मसौली बाराबंकी। जंगे आजादी में सब कुछ न्योछावर करने वाले स्वर्गीय रफी अहमद किदवई अब अतीत की स्मृतियों में खो गए हैं।
मसौली बाराबंकी। जंगे आजादी में सब कुछ न्योछावर करने वाले स्वर्गीय रफी अहमद किदवई अब अतीत की स्मृतियों में खो गए हैं।
Read More जनपद के समस्त रेलवे स्टेशन, बस अड्डों तथा मुख्य चौराहों के पास रैन बसेरों का संकेतक लगेंगे देश के इस सपूत की स्मृतियों को संजोने के प्रयास न प्रशासन की ओर से किए गए हैं न स्वयंसेवी संस्थाएं ही इस दिशा में आगे आई हैं। सादा जीवन उच्च विचार को जीवन में चरितार्थ करने वाले रफी अहमद किदवई के आदर्शो को आमजनों तक पहुंचाने के उत्तरदायी ट्रस्ट भी सिर्फ उनकी पुण्यतिथि और जयंती पर उनके स्मारक पर पहुंच कर उन्हें याद करने की औपचारिकता पूरी करता है।
जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर मसौली कस्बे में 18 फरवरी 1894 को इम्तियाज अली के घर जन्मे रफी अहमद किदवई शिक्षण के दौरान महात्मा गांधी के आह्वान को सुना और राष्ट्रीय आजादी में संघर्ष किया। अपनी असाधारण संगठन शक्ति ने उन्हें शीघ्र ही नेताओं की श्रेणी में पहुंचा दिया। किदवई आजादी की लड़ाई में बहुत बार गिरफ्तार हुए और अपनी जवानी के 10 वर्ष से भी ज्यादा समय जेल के भीतर गुजरा। इससे यह साबित होता है कि आजादी के प्रति उनमें कितनी तीव्र निष्ठा थी।
रफी अहमद किदवई उत्तर प्रदेश के राजस्व गृह और जेल विभागों के प्रभारी मंत्री के रूप में इतने सफल रहे कि स्वाधीन भारत की सबसे पहले सरकार में उन्हें केंद्रीय संचार मंत्री बनाया गया। केंद्रीय संचार मंत्री के रूप में उन्होंने जो संचार व्यवस्था का ढांचा तैयार करके देश को दिया। वह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। अंतर्देशीय पत्र भी इन्हीं की देन है।
1952 में केंद्रीय खाद्यमंत्री के रूप में उन्होंने देश में हरितक्रांति बीज बोया साथ ही खाद्यान्न कालाबाजारियों पर अंकुश लगाकर देश की खाद्य की स्थिति को अनिवार्य रूप से मजबूत बनाया। देश के इस सच्चे सपूत की 24 अक्टूबर को मृत्यु हो गई यद्यपि आज वह हमारे बीच नहीं है फिर भी वह जिंदा है। मसौली कस्बा में बनी संगमरमर की मजार उनकी स्मृतियों को ताजा कर रही है।

【 निधन पर गांव आए थे पं0 नेहरू 】
स्वर्गीय रफी अहमद किदवई के जनाजा में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू सम्मिलित हुए इनकी स्मृति में एक भव्य स्मारक बनवाने व ट्रस्ट की स्थापना की घोषणा की थी। कुछ समय बाद समाधि स्थल पर भव्य संगमरमर की मजार लाल पत्थरों से बनी। उस समय पार्क के रंगीन फूल और सीढि़यों के दोनों किनारों पर फौव्वारों से निकलता पानी और तैरती मछलियां लोगों के आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी लेकिन अब यह सब स्मृतियों में खो गए हैं। फौव्वारा दो दशक से टूटा पड़ा है। क्यारियों के रंगीन फूलों की महक अब नहीं है। बाग बगीचे नष्ट होते जा रहे हैं। मजार भी जीर्णशीर्ण हो चला है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जब मसौली आए तो उन्होंने कहा था कि रफी साहब नेकनियती की मिसाल है। गरीबों की सेव करना इनका पहला उद्देश्य हुआ करता था। ऐसे देशभक्त सपूत की स्मारक के जब भी लोग दर्शनार्थ आए वे फूलों की सड़क पर चलकर आए। इसी के दृष्टिगत मसौली चौराहा से स्मारक तक सड़क के दोनों और गुलमोहर के पेड़ लगवाए गए थे। कुछ ही दिनों में जब फूल खिलते और रात्रि के अंतिम प्रहर की हवायें वे फूल सड़क पर गिरते तो मानो लगता कि फूलों की सड़क है। कई सालों तक यह नजारा देखा गया। देखरेख के अभाव में वे गुलमोहर के वृक्ष एक एक कर नष्ट हो गए। कुछ अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए और यह सड़क स्मारक की तरह वीरान हो गई।
【 ट्रस्ट की स्थापना हुई 】
स्वर्गीय रफी अहमद किदवई की जन्मशती पर केंद्र सरकार की पहल पर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने एक विशेष पैकेज दिया। मसौली कस्बा का सर्वागीण विकास हो। इसके लिए करीब तीन करोड़ रुपयों की योजनाएं प्रस्तावित हुई। कुछ कार्य हुआ लेकिन वे योजनाएं परवान न चढ़ सकीं।
【 जयंती के अवसर पर होंगे विविध कार्यक्रम 】
स्वर्गीय रफी साहब की जयंती के मौके पर 18 फरवरी को स्मारक स्थल पर मिलाद शरीफ के साथ कार्यक्रम की शुरुआत होगी तथा स्कूली बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम के अलावा रफ़ी मेमोरियल इंटर कालेज में माल्यापर्ण के साथ कार्यकम आयोजित किये जायेंगे।

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