व्यवहार में सरलता ही परमात्म की साधना का मार्ग : आचार्यश्री

व्यवहार में सरलता ही परमात्म की साधना का मार्ग : आचार्यश्री

व्यवहार में सरलता ही परमात्म की साधना का मार्ग : आचार्यश्री पर्यूषण पर्व में आर्जव धर्म पर आचार्य श्री ने बताया सद्मार्ग ललितपुर। जीवन में सरलता होना व मान माया मायाचार कपट के अभाव को आर्जव धर्म बताते हुए आचार्य श्री आर्जव सागर महाराज ने कहा जिस आत्माके अन्दर आर्जव धर्म होता है वहां उस

व्यवहार में सरलता ही परमात्म की साधना का मार्ग : आचार्यश्री

पर्यूषण पर्व में आर्जव धर्म पर आचार्य श्री ने बताया सद्मार्ग

ललितपुर। जीवन में सरलता होना व मान माया मायाचार कपट के अभाव को आर्जव धर्म बताते हुए आचार्य श्री आर्जव सागर महाराज ने कहा जिस आत्माके अन्दर आर्जव धर्म होता है वहां उस आत्मा के प्रति सभी लोगों का पूर्ण विश्वास जागृत होता है। लोग उसे आदर्ष पुरूष मानते हैं पूर्ण विश्वास रहता है। उन्होने कहा संसारी प्राणी का जीवन माया की मूर्ति बना हुआ हैं वहुरूपियापना तो इसका स्वभाव बन गया है असलियत का पता लगाना मुश्किल हो गया है। परमात्म की साधना कराने का माध्यम आर्जव धर्म बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कभी कभी माता-पिता शिक्षक आदि के रूपर से कुछ कटुता का प्रयोग जव करते हैं तो उनकी उद्धार भावना में आन्तरिक पवित्रता दिखती है।
क्षेत्रपाल मंदिर परिसर में विराजमान आचार्यश्री आर्जव सागर महाराज ने पर्यूषण पर्व उक्त विचार रखते हुए कहा जो मन से कुटिली चिन्तन नहीं करता कुटिलता पूर्वक बोलता नहीं है न ही कुटिलता के कार्य करता है और अपने दोषों को भी नहीं छिपाता उसी को आर्जव धर्म बताया है। इसके पहले आज प्रात:काल आचार्यश्री एवं संघस्थ मुनिश्री महान सागर, मुनिश्री भाग्य सागर, मुनिश्री महत्त सागर, मुनिश्री विलोक सागर, मुनिश्री विवोध सागर, मुनिश्री विदित सागर, मुनिश्री विभोर सागर महाराज के समक्ष तत्वार्थ सूत्र का वाचन संघस्थ ब्र.ऋषिका दीदी द्वारा हुआ जिसमें अर्घ समर्पण प्रकाश चंद सतरवांस द्वारा किया गया।

जैन पंचायत ने आचार्य श्री को श्रीफल अर्पित कर श्रावकों से आग्रह किया कि वह घरों पर रहकर ही संयम साधना और पूजन विधान कर आत्म साधना के पर्व को मनाए। मध्यान्ह में आचार्य श्री ने संघस्थ मुनि को जैन धर्म का मर्म तत्वार्थ सूत्र के वाचन द्वारा बताया। पर्यूषण पर्व पर जैन मंदिरों में श्रद्धालुओं ने दर्शन कर पुण्र्याजन किया और करोना महामारी के प्रकोप के चलते सोशल डिस्टेंश के मध्य घरों में रहकर व्रत नियम के साथ आज उत्तम अर्जव धर्म की पूजन कर मंत्रों की जाप की। घरों में बैठकर वहुताय श्रावक उठा रहे हैं और व्यवस्थित ढंग से पूजन अर्चन कर रहे हैं। दयोदय पशुसंरक्षण केन्द्र गौशाला में विराजमान श्रमण मुनि सुप्रभ सागर ने ऑनलाईन साधना  उत्तम आर्जव धर्म को बताते हुए कहा परिणामों में सरलता ही आर्जव धर्म है जितना सरल अपने जीवन में हम बन पाएगे उतना ही परमात्मा के समीप हम होते जाएगे जो व्यक्ति पर पदउार्थो में रूचि रखते हैं वह संसार में भटकते हैं जिन्होने स्वयं अपने आप पर विश्वास किया वह संसार से मुक्त हो जाएगे। इसके पूर्व प्रात:काल मुनि श्री के सानिध्य में ऑनलाईन ध्यान कराया गया और ऑनलाईन समिचीन विकल्पों का समाधान मुनि श्री ने किया।

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संघस्थ मुनि श्री प्रणत सागर ने श्रावकों द्वारा की गई जिज्ञासाओं को रखा जिसका निर्देशन ब्रह्मचारी साकेत भैया ने किया। आदिनाथ मंदिर नईवस्ती में शिष्य मुनि विनिश्चल सागर महाराज ने कहा आर्जव धर्म में तीनों योगों की सरलता सहजता और सत्पुरूषार्थ को प्राप्त कर सकते हैं जव पूर्ण ़ऋजु विचार हो जाएगे आत्मिक शान्ति की अनुभूति होगी। जिस व्यक्ति में सरलता नहीं होती सहजता नहीं होती समस्त गुण होते हुए भी वह व्यक्ति गुणों से शून्य माना जाता है। मुनि श्री ने इसके पूर्व तत्वार्थ सूत्र का वाचन कर इसके महत्व को बताया। वाहुवलि नगर में विराजमान आचार्य आर्जव सागर महाराज की प्रभावक शिष्या आर्यिकाश्री प्रतिभामति और आर्यिका सुयोगमति माताजी ने आर्जव धर्म के लिए जीवन में सरलता का भाव बताया और कहा धर्म किसी स्वार्थ भावना के वशीभूत नहीं है। उन्होने श्रावको को बताया कि मन में सत्य के प्रति निष्ठा सत्य मार्ग पर चलने के लिए संकल्पित होना होगा तभी विचारों में निर्मलता आएगी।

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