श्रृद्धांजलि कल्याण सिंह कभी नहीं मरेंगे

श्रृद्धांजलि कल्याण सिंह कभी नहीं मरेंगे

कभी-कभी मुझे लगता है कि बाबूजी का राजनीति में पदार्पण ही अयोध्या की विवादित बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए हुआ था



एक कम नब्बे के कल्याण सिंह नहीं रहे|वे प्रखरतम राष्ट्रवादी स्वभाव के नेता थे |भौतिक रूप से वे भले ही अब हमारे बीच नहीं होंगे ,लेकिन उन्होंने अपने  जीवनकाल में अयोध्या  के विवादादित राम मंदिर के मामले में जो किया है ,वो कारनामा उन्हें कभी मरने ही नहीं देगा .राम मंदिर निर्माण का श्रेय  भले ही आज के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के खाते में चला जाये किन्तु राम मंदिर के लिए बाबरी ध्वंश  का जो काम बाबूजी यानि कल्याण सिंह ने किये वो प्रधान जी के काम से बड़ा काम था .

कभी-कभी मुझे लगता है कि बाबूजी का राजनीति में पदार्पण ही अयोध्या की विवादित बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए हुआ था .वे न यूपी के मुख्यमंत्री बनते और न अयोध्या में बाबरी इमारत के ध्वस्त करने का भाजपा का महा अभियान पूरा होता.|आजादी के पहले के 3  और आजादी के बाद के 15  मुख्यमंत्री जो काम नहीं कर सके वो बाबू कल्याण सिंह के कार्यकाल में पूरा हुआ .अगर बाबू कल्याण सिंह संविधान की शपथ का अनुपालन करते तो शायद विवादित इमारत कभी न गिरती ,लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी के घोषणापत्र और संघ के आदेश को शिरोधार्य करते हुए राम काज के लिए संविधान को एक तरफ रख दिया था.उन्होंने इस काम की नैतिक जिम्मेदारी भी ली ,सांकेतिक सजा के तौर पर जेल यात्रा भी की लेकिन न रुके और न झुके. .रुकना और झुकना जैसे उनके स्वभाव में था ही नहीं .

बाबूजी कल्याण सिंह से मेरी कुछ मुलाकातें हैं,मुझे कभी नहीं लगा कि वे कुशल प्रशासक ेहे होंगे ,किन्तु परिवार के एक मुखिया के रूप में उनकी जो ठसक थी वो ही सबसे महत्वपूर्ण थी .वे अपने इलाके में और अपनी पार्टी में लोकप्रिय थे ,शायद इसीलिए उन्हें बाबरी ध्वंस के बाद भी मायावती सरकार के पतन के बाद 1997  में भी दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया .उन्हें जिन परिस्थितियों में पदच्युत किया गया उस पर आज चर्चा प्रासंगिक नहीं है लेकिन उनके हटने के बाद उनका कोई भी उत्तराधिकारी निष्कंटक राज नहीं कर पाया,उलटे यूपी में एक बार फिर मायावती की सत्ता में वापसी हो गयी थी. कल्याण सिंह के बिना भाजपा को सत्ता में वापसी के लिए पूरे डेढ़ दशक तक प्रतीक्षा और संघर्ष करना पड़ा .

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धुन के पक्के कल्याण सिंह को जब भाजपा ने महत्व देने में आनाकानी की तो उन्होंने भाजपा से किनारा करने में भी बहुत देर नहीं लगाई .पांच साल बाद भाजपा ने जैसे तैसे उन्हें मना लिया लेकिन वे 2009  में एक बार फिर बिदक गए .उनके स्वभाव में ज तुनकमिजाजी थी वो हमेशा उनके आडे भी आयी और उसी की वजह से वे पूजे भी गए..वे जितनी जल्दी नाराज होते थे उतनी ही जल्दी मान भी जाते थे . 2014  में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के आने के बाद कल्याण सिंह को सम्मानित करते हुए राजयपाल बनाया गया ,जो उनके राजनीतिक जीवन का समापन था .

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कल्याण सिंह के बारे में यदि आप अतिश्योक्ति न माने तो मै कहूंगा की मुझे उनमें स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी जैसी वाक्पटुता,नजर आती थी. वे बाजपेयी की ही तरह लच्छेदार भाषण देते थे. मैंने उनकी सभाओं में उनके भाषणों का चुंबकत्व   अपनी आँखों से देखा है . श्री मुलायम सिंह की खांटी के मुकाबले के लिए कल्याण  सिंह से अधिक उपयुक्त कोई नेता भाजपा के पास था ही नहीं,ये भाजपा को सत्ता में वापस लाकर कल्याण सिंह ने प्रमाणित भी किया था .
जैसा की मैंने पहले ही कहा कि अपने एक कारनामे की वजह से राजनीति में कलयाण  सिंह कभी मरेंगे नहीं. मैंने उन्हें राम काज के लिए अपनी सरकार न्यौछावर करते हुए भी देखा और एक दिन की जेल की सजा काटकर जेल से मुस्कराते हुए बाहर निकलते भी देखा .कल्याण सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में जो किया वो शान से किया,उन्हें स्थापित होने के लिए अभिनय नहीं करना पड़ा,जोकर नहीं बनना पड़ा ,झूठ नहीं बोलना पड़ा .

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वे  जमीन से जुड़े नेता थे और हवा में कभी उड़े नहीं,उन्होंने दूसरों की हवाइयां खूब उड़ाईं .वे केवल लोधियों के नेता नहीं थे .वे सबके नेता थे .उनके समर्थक ज्यादा विरोधी कम रहे .कल्याण सिंह के ऊपर सब तरह के आरोप लगे लेकिन भ्र्ष्टाचार का कोई गंभीर आरोप मेरी याददास्त में नहीं लगाया गया .उनके ऊपर जातिवाद के वैसे आरोप नहीं लगाए गए जैसे की दुसरे भाजपा नेताओं पर चिपके हैं .कल्याण सिंह ने अपने इकलौते पुत्र के लिए भी जो रास्ता बन सकता था बना दिया लेकिन उसे वे कल्याण सिंह नहीं बना पाए .ये काम केवल कुदरत करती है. .एक जन नेता के रूप में वे सदा याद किये जायेंगे. मेरी विनम्र श्रृद्धांजलि

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