इस्राईल : मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन
बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व की इस्राईल सरकार ने अगस्त 2025 की प्रारंभ में फ़िलिस्तीन के ग़ज़ा शहर पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी देने तथा इस्राईल की सुरक्षा कैबिनेट द्वारा गत 8 अगस्त को इस योजना को अनुमोदित करने के बाद ग़ज़ा में नये सिरे से सैन्य अभियान शुरू कर दिया है। "गिडियन्स चैरियट्स II " नाम की इस कार्रवाई को अंजाम देने के लिये इस्राईल ने लगभग 60,000 रिज़र्व सैनिकों को बुलाया है जबकि 20,000 सैनिकों की सेवा अवधि बढ़ाई गयी है । इस कार्रवाई को ग़ज़ा शहर पर हमले के पहले चरण की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
इस्राईली योजना के अनुसार इस कार्रवाई में उत्तरी ग़ज़ा से हज़ारों फ़िलिस्तीनियों को दक्षिण की ओर विस्थापित किया जा सकता है। इसी उद्देश्य के साथ इस्राईल की सेना (आईडीएफ) ग़ज़ा सिटी के बाहरी इलाक़ों में प्रवेश कर चुकी है। हालांकि इस्राईल सरकार द्वारा इस कार्रवाई का मक़सद हमास को पूरी तरह से हथियारों से मुक्त करना,उसके नेताओं को ग़ज़ा से निर्वासित करना, हमास द्वारा बंधक बनाये गये शेष लोगों को मुक्त कराना तथाग़ज़ा पट्टी को पूरी तरह से हथियार-मुक्त बनाना बताया जा रहा है।

परन्तु विश्व इसे ग़ज़ा पर क़ब्ज़े के इस्राईली दुष्प्रयास के रूप में देख रहा है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने इस कार्रवाई को अवैध क़ब्ज़ा बताते हुये इसे तुरंत रोकने की मांग की है जबकि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे "अपमानजनक" बताते हुये कहा है कि यह कार्रवाई ग़ज़ा पर इस्राईली सैन्य क़ब्ज़े को मज़बूत करेगी। इस्राईल के सहयोगी देश अमेरिका व ब्रिटेन सहित अन्य देशों ने भी इस्राईल की इस कार्रवाई को अवैध बताते हुये इसपर गहरी चिंता जताई है। परन्तु इस्राईल की नेतन्याहू सरकार पूरे विश्व की चिंताओं को नज़रअंदाज़ करते हुये ग़ज़ा पर सैन्य नियंत्रण कर अपने इस अवैध क़ब्ज़े के मिशन पर आगे बढ़ती जा रही है। इस योजना के अंतर्गत इस्राईल, ग़ज़ा पर प्रमुख सुरक्षा नियंत्रण रखेगा, जिसमें सीमाओं, हवाई क्षेत्र और समुद्री पहुंच शामिल है।

उधर इस्राईल की सेना में भी इस योजना पर एक राय नहीं है। आईडीएफ़ के ही कई वरिष्ठ अधिकारी इस योजना का विरोध कर रहे हैं। उनका मत है कि यह योजना जहां पहले से ही युद्ध से जूझ रहे आईडीएफ़ के सैनिकों को थकाने वाली साबित हो सकती है वहीं इससे इस्राईल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग भी पड़ सकता है। केवल नेतन्याहू ही इस कार्रवाई को ज़रूरी समझ रहे हैं। दरअसल इस्राईल में नेतन्याहू की इस 'घातक समझ' को अतिवादियों के मध्य राजनीतिक लाभ हासिल करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
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दूसरी तरफ़ फिलिस्तीनियों में इस योजना को ग़ज़ा पर पूरी तरह से क़ब्ज़ा करने और फ़िलिस्तीनी राज्य की संभावना को नष्ट करने का प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। यूएन रिपोर्ट्स में इसे मानवीय आपदा बताया रहा है। क्योंकि इससे न केवल बड़ी संख्या में विस्थापन बढ़ेगा बल्कि इसमें काफ़ी लोगों की मौत भी हो सकती है और यह ग़ज़ा के बुनियादी ढांचे की तबाही भी बढ़ा सकता है । हमास ने तो तो इसे "नरसंहार" बताते हुये कहा है कि इससे युद्ध और भी लंबा चलेगा। जबकि फ़िलिस्तीन इसे इस्राईल की "विस्तारवादी" नीति के रूप में वर्णित कर रहा है जो वेस्ट बैंक में नए बस्तियों से जुड़ी हुई है।
ग़ौर तलब है कि ग़ज़ा सिटी में लगभग 5 लाख से अधिक फ़िलिस्तीनी रहते हैं जो हमास के विरुद्ध की जा रही इस्राईली सैन्य कार्रवाई के परिणाम स्वरूप पहले से ही भुखमरी और विस्थापन जैसे मानवीय संकट से जूझ रहे हैं। अब तो इस इलाक़े में अकाल के हालात बन चुके हैं। परन्तु इन्हीं हालात के बीच इस्राईल के रक्षा मंत्री इस्राईल कात्ज़ ने यह धमकी भी दे दी है कि यदि हमास ने हथियार छोड़ने और सभी बंधकों की रिहाई की शर्त नहीं मानी तो पूरे ग़ज़ा शहर को 'तबाह' कर दिया जाएगा।
ग़ज़ा पर सैन्य नियंत्रण को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही आलोचना और देश के भीतर ही इस योजना के भारी विरोध के बीच इस्राईल के रक्षा मंत्री द्वारा 'ग़ज़ा शहर को तबाह कर देने' जैसे ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान देने का सीधा सा अर्थ है कि ग़ज़ा को लेकर इस्राईल सरकार की मंशा ठीक नहीं है। पहले भी इस्राईल की सैन्य कार्रवाइयों में फ़िलिस्तीन के रफ़ाह और बेत हनून जैसे शहर बुरी तरह तबाह हो चुके हैं। इस समय केवल ग़ज़ा पट्टी में ही पांच लाख से अधिक लोग भुखमरी, अभाव और मौत जैसी भयावह परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। ग़ज़ा की लगभग एक तिहाई आबादी अर्थात लगभग 6 लाख 41 हज़ार लोग मानवीय संकट जैसे भयानक हालात का सामना कर सकते हैं।अनुमान है कि इन विषम परिस्थितियों में जून 2026 तक पांच साल से कम उम्र के 1.32 लाख बच्चों की जान "ख़तरे" में पड़ सकती है। ग़ज़ा में हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार सात अक्टूबर 2023 से लेकर अब तक यहां 62,192 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि "भुखमरी और कुपोषण" से ग़ज़ा में अब तक 271 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें 112 बच्चे शामिल हैं।
इन भयावह परिस्थितियों के मध्य इस्राइल की नेतन्याहू सरकार द्वारा बंधकों की रिहाई व हमास के निशस्त्रीकरण के नाम पर ग़ज़ा पर बलात क़ब्ज़े का प्रयास और ग़ज़ा शहर को 'तबाह' करने जैसी धमकी देना एक बार फिर इसी बात की तरफ़ इशारा कर रहा है कि पहले से ही फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़ा जमाये बैठा इस्राईल न केवल अपनी विस्तारवादी नीति पर अमल कर रहा है बल्कि 'ग्रेटर इस्राईल' के निर्माण के अपने दूरगामी लक्ष्य पर भी इसी रास्ते से आगे बढ़ रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही ईरान ने इसी इस्राईल को सबक़ सिखाया था और जब इस्राईल को ईरान की सैन्य कार्रवाई से अपने अस्तित्व पर ख़तरा मंडराते दिखाई देने लगा था तो आनन फ़ानन में युद्धविराम के लिये राज़ी हो गया था। वही इस्राईल जिसतरह फ़िलिस्तीनी के अकालग्रस्त बेघर बार व निहत्थों को ग़ज़ा से बेदख़ल करने की कोशिश कर रहा है और एक बार फिर किसी बड़े युद्ध की संभावना को मज़बूती दे रहा है उससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि इस समय पूरे विश्व में इस्राईल, ख़ासकर वहां की नेतन्याहू सरकार ही मानवता की सबसे बड़ी दुश्मन है।
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