योग में मानव जीवन मे आयी विकृतियों को,संस्कारो को बदलने की अभूतपूर्व क्षमता
मनुष्य का वर्तमान जीवन समस्याओं से संतप्त है। शायद ही कोई होगा जो समस्याओं से व्यथित न हो। समस्याएँ जीवन की पर्याय बन गई हैं। कभी बाहर की समस्या तो कभी भीतर की समस्या, कभी तन की तो कभी मन की, कभी रोग की तो कभी भोग की समस्या मानव को हर क्षण सताए हुए है यानी कभी कोई समस्या उसे परेशान किए हुए है तो कभी कोई उसे अपने में उलझाए हुए है। एक को वह सुलझा नहीं पाता कि दूसरी, तीसरी और इस तरह अनगिनत समस्याओं का उसके सामने एक ऊँचा अम्बार लग जाता है। एक प्रकार से समस्याओं ने उससे उसका सुख छीन लिया है और बदले में उसे चिन्ताएँ, कुण्ठाएँ, तनाव, उद्वेग व मानसिक द्वन्द्व आदि दे दिये हैं।
जिन विषयों के बारे में विज्ञान आज चुप्पी साधे हुए है उन सभी विषयों का सन्तोषप्रद समाधान योग के पास है। वास्तव में योग हर समस्या का समाधान है। यह व्यक्ति के तन और मन को स्वस्थ ही नहीं रखता है, अपितु व्यक्तित्त्व-विकास और रूपान्तरण दोनों का साधन भी है। योग अन्तरंग को अनन्त आनन्द से आप्लावित करने का एक सशक्त माध्यम है। यह मन का परिमार्जक है। किन्तु योग को समस्याओं का विसर्जक नहीं कहा जा सकता। जगत् और चैतन्य जब तक दोनों है तब तक समस्याएँ तो बनी रहेंगी। ये समस्याएँ हमारे चित्त को उद्वेलित न कर सकें, यह काम योग का है।
योग के आलम्बन से जीवन की प्रत्येक समस्या सहज व सहर्ष सुलझायी जा सकती है। यदि कोई यह कहे कि शरीर शक्तियों का खजाना है तो योग उस खजाने की चाबी है। वास्तव में योग जीवन के रहस्यमयी तथ्यों का अन्वेषक है, अनुभूत सत्य का उद्घाटक है। जहाँ यह विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का आधार है वहीं विज्ञान और पराविज्ञान के क्षेत्र में भी योग की अपनी एक पहचान है। विज्ञान मात्र बहिर्दृष्टि पर केन्द्रित है जबकि योग बहिर्दृष्टि के साथ-साथ अन्तर्दृष्टि की बात करता है। आदमी के पास यदि कोई समस्या नहीं होगी तो उसके सामने यही सबसे बडी समस्या होगी कि उसके पास कोई समस्या नहीं है।" सब कुछ पा लेने के बाद भी उसे तब भी बहुत कुछ पाने और करने को शेष रहेगा और वह है आत्म-जगत् ।
आत्म-जगत् का क्षेत्र अभी भी अधूरा है। आत्म-जगत् के क्षेत्र में उसे बहुत कुछ अभी भी अनुसंधान करना है। आत्म-सम्पदा-वैभव जहाँ बिखरे पड़े हैं उन्हें बाहर निकालना होता है। वास्तव में समस्याओं और दुःखों का जो आधार है वह है अन्तर्दृष्टि का विलुप्त होना। इस अन्तर्दृष्टि को उसे आज खोजना-खोलना है।योग में अनन्त शक्ति है। इसकी उपयोगिता असीम है पर, मानव की क्षमता सीमित है। मानव ने अपनी इस सीमित क्षमता के माध्यम से योग की इस अनंत शक्ति को परखने और पहचानने का प्रयास किया है। विदेशी धरती पर यह योग बहुत पहले मात्र सौंदर्य प्रसाधन का एक निमित्त था। मानव में इसको और अधिक गहराई से जानने-समझने की क्षमता बढ़ी तो यह चिकित्सा के क्षेत्र में स्वास्थ्य का मूलभूत आधार बना।मोदी ने विदेश में योग का शुभारंभ किया।उसके बाद विश्व योगदिवस मनाया जाता है।
दुनिया के अधिकांश देश योग विद्या के गुर सिख रहें है। प्राचीनकाल में समस्त बीमारियों योग से ही ठीक हुआ करती थीं। उस युग के लोगों का स्वास्थ्य योग मेरुदण्ड' पर टिका रहता था। लोग योग क्रियाओं में पारंगत थे। पुरातत्त्व विभाग इस सत्य को स्वीकारता है कि हमारे पूर्वज योग में निष्णात थे। बीच में योग विलुप्त हुआ और एक सीमित क्षेत्र अर्थात् योग, विद्या में प्रशिक्षित वर्ग के लोगों में कैद होकर रह गया।अब योग विश्वव्यापी हो गया है।
आज योग पुनः जन-जन का प्रिय विषय बनता जा रहा है। डॉक्टर, प्रशासक, शिक्षक, विद्यार्थी, रोगी, वैज्ञानिक, सामाजिक, राजनीतिज्ञ तथा सामान्य गृहस्थ भी अर्थात् प्रत्येक वर्ग की यह जुबान पर है। गाँव से लेकर नगर-महानगरों तक के लोग इस योग के बारे में अधिक से अधिक जानने-समझने की जिज्ञासाएँ रख रहे हैं। वर्तमान युग में आम लोगों की धारणा बनती जा रही है कि तनाव और अशान्ति को रोकने या समाप्त करने का यदि कोई उत्तम उपाय या साधन है तो वह है योग।
योग मानव जीवन में आयी विकृतियों को, संस्कारों में बदल सकने की अभूतपूर्व क्षमता रखता है। समाज में बढ़ते हुए अपराधों पर नियन्त्रण भी योग के द्वारा ही सम्भव है। यह योग अनेक दूषणों-प्रदूषणों से व्यक्ति को बचाता है। अमेरिकन डॉक्टर तो यहाँ तक कहने लगे हैं कि रोगोपचार की जितनी भी पद्धतियों हैं वे सब योग के बिना अपूर्ण हैं। इसी आधार पर पाश्चात्य देशों में तो कार्यालयों, स्कूलादि प्रायः सभी क्षेत्रों में योग का प्रशिक्षण दिया जाने लगा है। वहाँ के लोगों में योग के प्रति रुझान बढ़ रहा है। विदेशियों के भारत आने का प्रमुख कारण एक यह भी है कि वे योग के बारे में अधिक से अधिक जानकारी चाहते हैं क्योंकि वे इस बात से भलीभाँति परिचित हैं कि भारत योग का मूल केन्द्र रहा है।
भारत की यह एक अमूल्य निधि है किन्तु विडम्बना है कि जिस सम्पदा के विषय में जानने के लिए विदेशी लोग भारत आकर अपने को धन्य मानते हैं उसी सम्पदा के प्रति भारत के लोग जागरूक नहीं हैं। वे योग से हटकर भोग की दिशा में मटक रहे हैं।आज भारतवासी ही भारत को भूलते नजर आते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के नशे में झूमते नजर आते हैं।
मन के ये विकार जब मस्तिष्क में पहुँचते हैं तो तनाव-जैसी भयंकर बीमारी पैदा कर देते हैं। मस्तिष्क शरीर का एक महत्त्वपूर्ण और प्रमुख अवयव है। शरीर का सारा संचालन मस्तिष्क से हुआ करता है। अगर वह ठीक है तो शरीर के सारे अंग ठीक रहेंगे। यदि उसमें विकार आ गया तो पूरा का पूरा शरीर तंत्र विकारग्रस्त हो जाता है। मस्तिष्क की विकृति से बचने के लिए हमें योग साधना का सहारा लेना होता है, योगाभ्यास करना होता है।
इसकी एक विधि है शिथिलीकरण। यह एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। जिस प्रकार शरीर का शिथिलीकरण होता है उसी प्रकार मन की अवस्था यानी मूढ़ता का भी शिथिलीकरण होता है। इस प्रक्रिया से मूढ़ता को समाप्त किया जा सकता है। इसके समाप्त होने पर मन में जो विकृतियाँ हैं, विकार हैं, दोष हैं वे सब के सब मन से बाहर निकल जाते हैं और मन निर्मल बन जाता है।
कांतिलाल मांडोत

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