आत्मकथ्य कबीरा खड़ाबाजार में लिये लुआठी हाथ जो घर फूकें आपणा चले हमारे साथ।

आत्मकथ्य कबीरा खड़ाबाजार में लिये लुआठी हाथ जो घर फूकें आपणा चले हमारे साथ।

लखनऊ।
 
राजधानी लखनऊ के हम निशाने पर इस लिये हैं क्यूंकि  आप के सामने हैं, पास और फेल वह होता है जो परीक्षा देता है जिसे इन चीजों से वास्ता ही नहीं उसके लिए किसी नतीजे का क्या मतलब? जिन्हें परिसर की दीवारों की बदहाली नही दिखती वह आप से AC की पाइप अंदर करने के लिये नही कहता, जिन्हें परिसर में टहलने-घूमने में दिक्कत ना हो उसे  रास्तों के अतिक्रमण से शिकायत नही होगी,
 
जो तस्वीरों की हरियाली से मोहित होंगे उन्हें व्यवहार में  परिसर की हरियाली से क्या लेना-देना? जिनका परिवार यहाँ नही रहता उन्हें अपने फ्लैट में ऑफिस, कैंटीन, तय समय के लिये किराए पर कमरे उपलब्ध कराने में क्या हानि है,
 
अच्छे पैसे मिल रहे हैं ,यही जीवन का मूलमंत्र हैं, सफलता का पैमाना है,न वे आपसे  शिकायत करेंगें न आप नाराज होंगे, स्थितियों में सुधार हो ना हो इससे मतलब नहीं अब क्या करना है यह तय तो आपको करना है। आप जगे हैं या सो रहे हैं? जगना-सोना तो दिनचर्या है पर खुली आंखों से सोना ? निष्क्रियता है।

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