सोनभद्र ओबरा के ऐतिहासिक मनोरंजन क्लब बदहाली का शिकार, अब नशेड़ियों का अड्डा, जीर्णोद्धार की मांग तेज
ओबरा परियोजना के अधिकारी मौन, क्लब अपनी बदहाली पर आँसु बहा रहा है।
ओबरा परियोजना के क्लब नम्बर -4 का हाल
अजीत सिंह ( ब्यूरो रिपोर्ट)
अपनी पहचान ऊर्जा की राजधानी और उत्तर प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी नगर पंचायत के रूप में विख्यात ओबरा जहाँ सिंचाई विभाग, वन विभाग, तहसील और एक विश्वविद्यालय समेत कई इंग्लिश मीडियम स्कूल भी स्थित है अब अपने बदहाल मनोरंजन क्लबों के कारण चर्चा में है। ओबरा परियोजना द्वारा विशेष रूप से शादी-विवाह और पार्टियों जैसे सामाजिक आयोजनों के लिए बनाए गए ये क्लब अब अपनी रौनक खो चुके हैं और स्थानीय लोग इनके रखरखाव और सौंदर्यीकरण की जोरदार मांग कर रहे हैं।

ओबरा परियोजना के तहत बनाए गए क्लब नंबर एक, दो, तीन और चार में से कुछ तो पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं। जो बचे हैं उनकी हालत भी बेहद खराब है। इन क्लबों को कभी पंखे, साफ-सुथरे शौचालय और कुर्सियों जैसी सुविधाओं से लैस किया गया था ताकि यहाँ होने वाले आयोजनों में कोई कमी न रहे। हालाँकि आज की तारीख में ये सभी सुविधाएँ नदारद है और स्वच्छता के नाम पर तो यहाँ कुछ भी नहीं है।
विशेष रूप से क्लब नंबर चार, जिसे अवर अभियंता मनोरंजन केंद्र के रूप में भी जाना जाता है जिसकी स्थिति सबसे खराब है। इसके शौचालय इतनी गंदगी से भरे हैं कि कोई भी व्यक्ति अंदर जाने से कतराएगा और न तो पंखे की सुविधा है और न ही साफ-सफाई का कोई इंतजाम। यह जर्जर हालत में पड़ा क्लब अपनी पुरानी पहचान को धुंधला कर रहा है।
आपको बता दें कि ये क्लब अब नशेड़ी तत्वों का अड्डा बन चुका है। क्लब के आसपास के क्षेत्रों में शराब की खाली बोतलें बिखरी पड़ी मिलती हैं, जो यहाँ नशे के सेवन की पुष्टि करती हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि ओबरा परियोजना नई सुविधाओं के विकास पर ध्यान दे रही है, लेकिन पुराने और ऐतिहासिक महत्व वाले इन क्लबों की अनदेखी की जा रही है। इन क्लबों को देखने या उनकी मरम्मत कराने वाला कोई नहीं है।
पहले यहां बैठने की उचित व्यवस्था थी जहाँ पंखे काम करते थे और शौचालय भी स्वच्छ रहते थे। अब तो शौचालयों के अंदर पौधे उग आए हैं, दरवाजे टूट चुके हैं और न तो डेंटिंग-पेंटिंग हुई है और न ही कोई नियमित रखरखाव।
इन क्लबों ने अतीत में कई अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों की शादियों के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक और सामुदायिक कार्यक्रमों की मेजबानी की है। मंत्री से लेकर संतरी तक कई गणमान्य व्यक्ति इन क्लबों में आयोजनों में शामिल हो चुके हैं। यह दर्शाता है कि इनका सामाजिक महत्व काफी अधिक रहा है। लाखों रुपये की लागत से बने ये क्लब अब रखरखाव के अभाव में जर्जर हो रहे हैं।
स्थानीय लोगों और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने एकजुट होकर इन क्लबों को नया रूप देने और फिर से विकसित करने की मांग की है। उनका तर्क है कि इन क्लबों के पुराने ढांचे अभी भी मजबूत हैं। बस उन्हें उचित रखरखाव और मरम्मत की आवश्यकता है। मेंटेनेंस के नाम पर कोई काम नहीं हो रहा है, जिससे दरवाजे और खिड़कियां भी जर्जर होती जा रही हैं।
यह भी बताया गया कि इस क्लब में इतनी जगह है कि एक साथ 500 से अधिक लोगों को बिठाकर खाना खिलाया जा सकता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि इन क्लबों का उचित रखरखाव किया जाए तो वे आज भी 50 वर्ष से भी अधिक समय तक चल सकते हैं।
स्थानीय लोगों ने सवाल उठाया है कि जब 13,500 करोड़ रुपये की लागत से नई परियोजनाएँ तैयार की जा सकती हैं तो क्या कुछ लाख रुपये खर्च करके इन क्लबों का सौंदर्यीकरण नहीं किया जा सकता? सामाजिक और स्थानीय लोगों की यह प्रबल इच्छा है कि इन क्लबों को एक सुंदर और सुसज्जित मनोरंजन केंद्र के रूप में परियोजना में शामिल किया जाए।
उनका मानना है कि इनके सौंदर्यीकरण और विकास से ओबरा अपनी पुरानी चमक और सुविधाओं को फिर से हासिल कर सकेगा, जिससे स्थानीय निवासियों और आगंतुकों दोनों को लाभ होगा।

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