सोनभद्र,ओबरा ऊर्जा की राजधानी में जानलेवा सड़कें और बेलगाम प्रदूषण प्रशासन मौन
ओबरा की सड़कों पर लोगों का चलना हुआ दूभर, लोगों ने किया कार्रवाई की मांग
ओबरा चोपन मार्ग का हाल बदहाल
अजित सिंह (ब्यूरो रिपोर्ट)
ओबरा उत्तर प्रदेश की ऊर्जा राजधानी के रूप में विख्यात सोनभद्र जिले का ओबरा क्षेत्र, जो प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी नगर पंचायत का दर्जा रखता है, इन दिनों बदहाल सड़कों, उन पर बिखरे पत्थरों और गिट्टी-भस्सी के साथ-साथ जानलेवा प्रदूषण की गंभीर समस्या से त्रस्त है। बग्गानाला से शारदा मंदिर तक का मार्ग यहाँ के पैदल यात्रियों, साइकिल चालकों और मोटरसाइकिल सवारों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।

ओबरा या चोपन की ओर आने-जाने वाले हर व्यक्ति को सड़क के बीचो-बीच और किनारों पर बिखरे पत्थरों, गिट्टी और भस्सी (बारीक धूल) से बचकर चलना पड़ता है। स्थानीय निवासियों का कटु अनुभव है कि पत्थर से बचो तो गिट्टी से जूझो, और गिट्टी से बचो तो भस्सी चले जाओ। इन बिखरे हुए निर्माण सामग्री के कारण दुर्घटनाओं का खतरा चौबीसों घंटे मंडराता रहता है। सड़क पर उड़ने वाली धूल और प्रदूषण की स्थिति इतनी विकराल है कि आने-जाने वाले लोगों के शरीर पर सफेद पाउडर की परत जम जाती है, जिससे वे 'भूत' जैसे दिखने लगते हैं।वाहन जब सड़कों के किनारे बिखरी भस्सी से होकर गुजरते हैं, तो इतनी धूल उड़ती है कि पीछे चल रहे मोटरसाइकिल या साइकिल सवारों को धूल के अंबार के अलावा सड़क तक दिखाई नहीं देती।
जब सड़क ही न दिखे तो उस पर पड़े बोल्डर या गिट्टी कैसे दिखेंगे? इस बेलगाम प्रदूषण से निपटने के लिए सड़कों पर पानी का छिड़काव भी नहीं किया जाता, जिससे समस्या और भी गंभीर हो जाती है। स्थानीय निवासी सरकार से यह सवाल कर रहे हैं कि कहां गए जमींदार अधिकारी, कहां गए प्रदूषण अधिकारी? किस चीज का तनख्वाह लेते हैं ये।क्षेत्रीय निवासियों का आरोप है कि ओबरा तहसील के एसडीएम विवेक सिंह को इन समस्याओं से पहले ही विस्तृत जानकारी दी जा चुकी है, लेकिन उनके द्वारा केवल आश्वासन ही दिया जा रहा है।
लोगों का कहना है कि शायद "जब कोई बड़ी घटना हो जाएगी, तब ही इनकी आँखें खुलेंगी।" उनका सवाल है कि अगर जिम्मेदार अधिकारी ही इस गंभीर मुद्दे पर मौन बैठे हैं, तो अन्य अधिकारियों से क्या उम्मीद की जा सकती है? स्थानीय लोगों के बार-बार शिकायत करने के बावजूद, उन्हें केवल कोरा आश्वासन ही मिलता है। ज़मीनी हकीकत कब बदलेगी, यह 'भगवान' ही जानता है।स्थानीय निवासियों के अनुसार, खदानों से ओवरलोड पत्थर लेकर निकलने वाले भारी वाहन मुख्य सड़कों पर तेज़ रफ़्तार से दौड़ते हैं, जिससे कभी भी कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती है। इस मार्ग पर कुछ महीने पहले ही सीओ सिटी चारु द्विवेदी का वाहन भी दुर्घटनाग्रस्त हो चुका है, जिसमें वह बाल-बाल बची थीं।
इस गंभीर घटना के बावजूद, शासन-प्रशासन की नींद नहीं टूट रही है। स्थानीय लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर कितने बार ज्ञापन अधिकारियों को दिया गया है मगर कोई सुनवाई नहीं हो रहा है और इस जानलेवा स्थिति पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है।इस क्षेत्र में कई उप-जिलाधिकारी आए और कई गए, लेकिन सड़कों की हालत जस की तस बनी हुई है। ऐसा लगता है जैसे अधिकारियों ने 'नियमावली' को खिलौना समझ रखा है और खुद 'भौना' बन गए हैं। मौके पर भारी मात्रा में सड़कों पर बिखरे पत्थर, गिट्टी और बजरी लगातार प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं।
स्थानीय लोग जानना चाहते हैं कि इस प्रदूषण को कौन रोकेगा और किस अधिकारी से संपर्क किया जाए, जब सब तो एक जैसे ही लगते हैं। ओबरा क्षेत्र में सड़कों की यह बदहाली न केवल स्थानीय निवासियों के जीवन को हर पल खतरे में डाल रही है, बल्कि 'ऊर्जा की राजधानी' कहे जाने वाले इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की छवि पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। प्रशासन को इस गंभीर समस्या पर तत्काल ध्यान देना चाहिए और सड़कों की मरम्मत, ओवरलोडिंग पर प्रभावी रोक लगाने के साथ-साथ प्रदूषण नियंत्रण के लिए ठोस एवं स्थायी कदम उठाने चाहिए, ताकि एक बड़ी दुर्घटना होने से पहले ही इस विकट स्थिति को सुधारा जा सके और ओबरा के निवासियों को सुरक्षित एवं स्वच्छ वातावरण मिल सके।क्या आपको लगता है कि प्रशासन इन समस्याओं पर जल्द कोई ठोस कदम उठाएगा।

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