पाकिस्तान पोषित आतंकवाद विरुद्ध चाणक्य का युद्ध नीति दर्शन
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भारत पिछले कई दशकों से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का दंश झेल रहा है। सीमापार से होने वाली आतंकी घुसपैठ, आत्मघाती हमले और आतंकवादी संगठनों को मिलने वाला प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के सामने एक सतत चुनौती बना हुआ है। ऐसी स्थिति में भारतीयों के मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या इस समस्या का कोई ईलाज संभव नहीं?क्या केवल सैन्य कार्रवाई से ही इस समस्या का स्थायी समाधान संभव है? अथवा चाणक्य जैसे रणनीतिक आचार्य की युद्ध नीति का सहारा लेकर कर व्यापक, समाधान प्राप्त किया जा है?
भारत में चाणक्य को कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय इतिहास उन्हें राजनीति, कूटनीति और युद्धनीति का अद्वितीय मनीषी मानता है। उनके द्वारा रचित 'अर्थशास्त्र' में शत्रु को पराजित करने के लिए कूटनीति, आंतरिक विघटन, गुप्तचरी (जासूसी), आर्थिक नियंत्रण और सीमित युद्ध जैसे बहुआयामी उपायों का उल्लेख मिलता है।
कौटिल्य का सिद्धांत कहता है कि "शत्रु को परास्त करने के लिए सभी साधनों का चतुराई से और समयानुकूल प्रयोग करना चाहिए।"
विजय प्राप्त करने के लिए चाणक्य नीति शत्रु को अलग-थलग करने का सुझाव देती है। भारत इस दिशा में निरंतर प्रयास कर रहा है। हालिया पहलगाम आतंकी हमले के बाद वैश्विक समुदाय द्वारा एक स्वर में आतंकवाद की निंदा इसका प्रमाण है।किन्तु अभी भी पाकिस्तान पर व्यापक और प्रभावी अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना शेष है। भारत को चाहिए कि वह कूटनीतिक प्रयासों को और तेज करे, ताकि विश्व के अधिक से अधिक देश न सिर्फ पाकिस्तान की आलोचना करें, आतंकवादी राष्ट्र घोषित करें, अपितु कड़े से कड़े प्रतिबंध लगाएं तथा भारत का काउंटर अटैक का समर्थन करें।
हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान इस समय भीतरी विद्रोहों से जूझ रहा है। बलूच, सिंधी और पश्तून समुदायों के बीच स्वतंत्रता की आकांक्षाएं लगातार बढ़ रही हैं। चाणक्य नीति के अनुसार भारत को इन आंदोलनों को वैचारिक, राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन प्रदान करना चाहिए, जिससे पाकिस्तान की सैन्य और आर्थिक ऊर्जा आंतरिक समस्याओं में ही खपती रहे।
चाणक्य की युद्ध नीति आर्थिक युद्ध को भी उतना ही महत्वपूर्ण मानती जितना शस्त्रयुद्ध को। आज पाकिस्तान की चरमराई अर्थव्यवस्था उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसी वैश्विक संस्थाओं के माध्यम से उस पर आर्थिक प्रतिबंध बनाए रखना और नए आर्थिक प्रतिबंध लगवाने के प्रयास जारी रहना चाहिए।आर्थिक संकट आतंकवाद के वित्तपोषण को बाधित कर सकता है और पाकिस्तान को आंतरिक अस्थिरता की ओर धकेल सकता है।
चाणक्य नीति के अनुसार गुप्तचर व्यवस्था किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा का आधार है। भारत को अपने खुफिया तंत्र को और अधिक सुदृढ़ करना होगा।पुलवामा और पहलगाम जैसे हमले खुफिया तंत्र की विफलता का संकेत करते हैं। आतंकवादी नेटवर्क,लांचिंग पैड, घुस पैठ की समय रहते जानकारी, मित्र राष्ट्रों के मध्य खुफिया जानकारियों का आदान-प्रदान आदि भारत के गुप्त अभियानों की प्रभावशीलता में वृद्धि कर सकते हैं, घटना पूर्व आतंकियों को समाप्त कर सकते हैं।
चाणक्य शत्रु के मनोबल को तोड़ने को एक अत्यंत प्रभावी हथियार मानते थे। पाकिस्तान की जनता के बीच आतंकवाद के दुष्परिणामों का प्रचार, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए जागरूकता उत्पन्न करना, तथा कट्टरपंथी ताकतों के बीच आंतरिक विभाजन उत्पन्न करना भारत की रणनीति का अनिवार्य अंग होना चाहिए।जहां आवश्यक हो, वहां सटीक, सीमित और घातक सैन्य कार्रवाई चाणक्य नीति का अभिन्न तत्व रहा है। बड़े पैमाने के युद्ध से बचते हुए छोटे किंतु अत्यधिक प्रभावशाली अभियानों द्वारा आतंकवादी ढांचे को निरंतर क्षीण करना भारत के लिए श्रेयस्कर होगा।
अतः मेरा ऐसा मानना है कि पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के समूल उन्मूलन हेतु चाणक्य नीति के अनुसार बहुआयामी रणनीति यथा कूटनीति, आर्थिक दबाव, आंतरिक अस्थिरता को प्रोत्साहन, गुप्तचरी और सीमित सैन्य अभियानों का संयोजन तब तक जारी रखना चाहिए जब तक कि आतंकवाद पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि भारतीय ज्ञान परंपरा में चाणक्य जैसे विद्वानों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। यदि भारत धैर्यपूर्वक, चतुराई और दूरदर्शिता से अपनी शक्ति और सामर्थ्य का अपने मित्र देशों का सहयोग लेते हुए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के स्थायी समाधान के लिए आगे बढ़ता है तो विजय प्राप्त करना निस्संदेह संभव है।
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