अध्यात्मिक ज्ञान के संग आर्थिक विकास की जुगलबंदी।
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भारतवर्ष सदैव आध्यात्मिक और वैदिक भारत के रूप में संपूर्ण विश्व में जाना जाता रहा है। अध्यात्म से जुड़े हुए हमारे ऐतिहासिक महापुरुषों के कारण भारत सदैव आदर की दृष्टि से देखा जाता है। अध्यात्म और नैतिक शिक्षा भारत के लिए एक बहुत बड़ी पूंजी तथा संपत्ति है, जो हमें विरासत में प्राप्त हुई है। आध्यात्मिकता के दम पर ही भारत ने विश्व में वैदिक शास्त्र, अध्यात्म का परचम लहराया है। वैदिक दर्शन और अध्यात्म दर्शन भारतीयता का ऐतिहासिक परिचायक है।यदि इसके साथ आर्थिक विकास और विज्ञान के ज्ञान की जुगलबंदी हो तो देश एक मजबूत आर्थिक सनातनी राष्ट्र बन सकता है।
आध्यात्मिक शक्ति एवं वैदिक ऊर्जा के कारण भारत के महापुरुष सदैव सच्चरित्र और ब्रह्मचर्य का पालन करते आए हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने भी सत चरित्र को अपने जीवन का अंग बना कर अनेक वैदिक ग्रंथों की रचना भी की है जो प्रत्येक भारतीय जनमानस के लिए मार्गदर्शक ग्रंथ बन गए हैं। रामकृष्ण परमहंस, मां शारदा, विवेकानंद, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं अनेक ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने सत्चरित्र और अध्यात्म के दम पर भारत को विश्व में सर्वोच्च मुकाम भी दिलाया है।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा है की सच्चरित्र केवल एक व्यक्ति का ना होकर संपूर्ण राष्ट्र का होना चाहिए। अनेक यूरोपीय विद्वानों ने और भारतीय अध्यात्म के मनीषियों ने सत और चरित्र को अपने जीवन में आत्मसात करने के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए और दोनों को मिलाकर सत्चरित्र शब्द को बड़े विस्तार से समझाया है। अध्यात्म और योग शक्ति ही मनुष्य को सच्चरित्र बनाने में हमेशा मददगार रही है क्योंकि अध्यात्म से व्यक्ति की एकाग्रता तथा ज्ञान में वृद्धि होकर मन ईश्वर के प्रति श्रद्धानवत होता है और ईश्वर के प्रति जो व्यक्ति अगाध श्रद्धा रखता है वह सदैव अपने चरित्र के प्रति विशेष सावधान रहकर सच्चरित्र व्यक्तित्व ही बनाता है।
यह कहावत एकदम सत्य प्रतीत होती है की "सद्गुण है सच्ची संपत्ति दुर्गुण बड़ी विपत्ति" यह तो निश्चित है की सदाचारी परोपकारी संयमशील, इमानदार ,निष्ठावान नागरिक सच्चरित्र होकर एक महान राष्ट्र को जन्म देता है ।वहीं दुष्ट चरित्र व्यक्ति काम, क्रोध, कामना और लालच में पड़कर अपनी जिंदगी को नर्क बना कर दिया सदैव अशांत रहता है, अशांत नागरिक किसी भी कार्य में स्थिरता अथवा प्रगति प्रदान नहीं कर सकता है, वह अपने समाज तथा देश को कमजोर करने का ही कार्य करता है।
धन और संपत्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण चरित्र को बलवान बनाने वाली आध्यात्मिक शिक्षा ही है। धन-संपत्ति नष्ट होने पर किसी भी व्यक्ति का बड़ा नुकसान नहीं होता पर यदि चरित्र चला जाए तो उसका सम्मान यश तथा सामाजिक स्थिति एकदम निकृष्ट बन जाती है उसका समाज में अपमान होने लगता है, ऐसे में कोई भी व्यक्ति या नागरिक समाज में सिर उठाकर नहीं चल सकता ।ऐसा व्यक्ति समाज के उत्थान में कोई योगदान देने के काबिल नहीं रह जाता। इसलिए मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण आवश्यकता आध्यात्मिक शिक्षा एवं चरित्रवान जीवन है।
सुभाष चंद्र बोस,महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, सरोजनी नायडू और अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में सच्चरित्र जीवन और मानसिक आध्यात्मिक शक्ति एवं ऊर्जा के कारण ही स्वतंत्रता संग्राम में पराधीन भारत को स्वतंत्रता दिलवाई थी। किसी भी देश के नागरिक को एक दिन में सच्चरित्र नहीं बनाया जा सकता बल्कि बालकों को बाल्यकाल से ही नैतिक शिक्षा से शिक्षित किया जाकर सदाचार का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। यह सर्वविदित है कि मनुष्य के चरित्र और व्यक्तित्व पर देश परिस्थितियां शिक्षा और समाजिक व्यवहार का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है और नैतिकता सदाचार का पाठ किसी भी व्यक्ति को एक दिन में नहीं पढ़ाया जा सकता है।
दुष्ट चरित्र पुरुष समाज में कभी भी प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता सदैव अपनी बदनामी के कारण सिर झुका कर छुप कर घूमता है, इसीलिए भारतीय चिंतकों, मनीषियों ने लिखा और कहा है की चरित्र सदाचार की रक्षा मनुष्य को संपूर्ण प्रयास कर निरंतर करते रहना चाहिए। क्योंकि नागरिकों का नैतिक और सदाचारी स्वभाव और व्यवहार राष्ट्रीय संपत्ति होता है और यही संपत्ति राष्ट्र को एक सशक्त राष्ट्र और उत्कृष्ट देश बनाने में सदैव सहायक होता है।
आध्यात्मिक शिक्षा सदाचार सद्गुण और चरित्र यह मनुष्य के बहुत ही महत्वपूर्ण आंतरिक तत्व हैं और इसी से मनुष्य का सकारात्मक व्यक्तित्व निर्मित होकर महान राष्ट्र की पृष्ठभूमि को अवलंबित करता है। देश का सद्गुणी सदाचारी सच्चरित्र व्यक्ति है देश को विकास की ओर सदैव ले जा सकता है एवं एक सशक्त राष्ट्र भी बनाने में मदद करता है। इसलिए अध्यात्म चरित्र तथा नैतिक शिक्षा को किसी भी राष्ट्र में प्राथमिकता देकर पुष्पित और पल्लवित किया जाना चाहिए।
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