आधुनिकता के दौर में होली की पुरानी परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं अटेर गांव के ग्रामीण

अटेर गांव में होली की पुरानी परंपरा आज भी है जिंदा

आधुनिकता के दौर में होली की पुरानी परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं अटेर गांव के ग्रामीण

माल, लखनऊ। क्षेत्र का गांव अटेर के ग्रामीण अपनी परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं। गांव में होली आज भी परंपरागत तरीके से मनाई जाती है। होली पर ढोलक की थाप के साथ गाए जाने वाले गीतों और फाग की गूंज आस पास के गांवाें तक जाती है।ढोलक की थाप की आवाज कानों में आते ही पुराने दिनों की याद ताजा हो जाती है।आधुनिकता के दौर में जहां त्योहार मनाने का तरीका बदल गया है। लोग औपचारिकता ही निभा रहे हैं, वहीं ग्राम पंचायत सस्पन के अटेर गांव के ग्रामीणों ने अपनी परंपरा को सहेज कर रखा है।
 
आपको बता दें कि भारतीय परंपराओं में एक होली का त्योहार भी है। फागुन महीना की शुरुआत होते ही गांव से बाहर रह रहे पिया प्रदेशी भी गांव लौटने लगते हैं।  गौरतलब हो कि सरस्वती पूजा के साथ ही फगुनाहट शुरू हो जाती है। सरस्वती माता की प्रतिमा विसर्जन के बाद ढोलक व झाल के साथ परंपरागत होली गीत पर्व के आनंद को बढ़ा देते हैं। लेकिन अब डीजे की धुन पर फूहड़ गीतों के चलन से होली गीत लुप्त होने लगे हैं।
 
परंपरागत गीतों के बीच गांव के चौपाल में होने वाला हुड़दंग नहीं दिखाई देता। होली खेले रघुबीरा अवध में होली खेले रघुबीरा गीत में भगवान राम को साक्षी मानकर परंपरा को पावन बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन अब यह सुनाई नहीं देता। लेकिन अटेर गांव में आज भी होली गाने की परम्परा है। जहां शाम घिरते ही लोग चौपालों में बैठकर होली का गीत गाकर पर्व का आनंद लेते हैं।
 
 

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