अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं का सम्मान या उपेक्षा।

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं का सम्मान या उपेक्षा।

आठ मार्च को विश्व का हर देश एक विशेष दिवस मनायेगा जिसे अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस कहते हैं ।महिला सम्मान दिवस । उस दिन हर देश में नारा गुजेगा महिलाओं के बिना संसार अपूर्ण सामाज अपूर्ण है घर  विरान लगता महिला ही देवी है लक्ष्मी है । अगर महिलाएं समाज में घर में है तभी घर और समाज है।इनके बिना जीवन अधूरा है ।अगर महिला घरक्षमेक्षनही तो घर भूतों का डेरा आदमी आधा है पूर्ण तभी होगा जब साथ में नारी होगी  भगवान शिव का भी नाम आयेगा शिव ही शक्ति शक्ति ही शिव है बिना शक्ति के शिव नहीं बिना शिव के शक्ति नहीं है।
 
अर्धनारीश्वर कहे जायेंगे तमाम अतिश्योक्ति अलंकार केश्रशब्द गुजेगे महिला सम्मान में मंचों से अलंकार की इतने सुन्दर शब्द और भाषा बोला जायेगा कि हर कोई यही समझेगा कि विश्व में महिलाओं का बहुत ऊंचा स्थान है। और महिलाओं के बिना धरा की सुन्दरता सौम्यता सहनशीलता सब अधूरा है।।पर बस यह सब कुछ चन्द घन्टो का शब्द होता है।और फिर महिलाओं के साथ वहीं होता  है जो हर दिन की दूश्वारी घर की चहदिवारी में या चहदिवारी बाहर रहने वाली महिलाए जो सहन करती है वहीं उस सुख दूख को जानती है।आंखों में एक भय चेहरे पर उदासी लिए हर रोज जीती है सुबह से शाम पर रात कोमरती  है यही उनके जीवन की असली कहानी है। 
 
वर्ष १९७७मे संयुक्त राष्ट्र संघ ने आठ मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया कि विश्व की महिलाओं का सम्मान हो। महिलाओं के अधिकार समानता और हर क्षेत्र में उनके योगदान को सम्मान  दिया जाये।इस लिए हर देश हर साल आठ मार्च को महिला दिवस मनाता आ रहा है इस दिन महिलाओं के  योग दान और कार्यों पर विशेष बात होती है। गोष्ठियां होती है  बेनिवाल और महिला सम्मेलन आदि आयोजित किये जाते हैं । पर सिर्फ एक दिन ही है महिलाओं के लिए ।उसके बाद वही दूरदशा जो हर सुबह होते ही शुरू होता है।
 
परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर किसी देश की सरकार यह नहीं स्वीकार करती है कि महिलाओं के साथ  जो भी अत्याचार बलात्कार हिंसा होती है वह पूर्ण रुप से बन्द हो और विश्व की इस आधी  आवादी को संरक्षित सुरक्षित सम्मान व बराबरी का दर्जा दिया जाये वह  को ई भी  क्षेत्र राजनीति का हो, उघोग का हो ,नौकरी या फिर जुडिशियरी का हो पर आज तक किसी भी देश की राजनीति में पचास प्रतिशत महिलाओं की भागी दारी नहीं हो पाई है नहीं उघोगो में नौकरियों में ज्यूडिशियरी में सेना में कहीं नहीं बस एक दिखावे की भागीदारी है।यही महिला दिवस की सच्चा ई भी है।
 
भारत में भी आठ मार्च को हर जिले में यह दिवस मनाया जायेगा सरकारी विज्ञापन भी होगा मंच सजेगा कुछ विशेष विशिष्ट महिलाओं को मंच पर बैठा कर महिला गुणगान होगा तालियां भी बजेंगी पर कहीं भी महिलाओं पर भारत में यदि यूं कहें दुनिया में बढ रहे बलात्कार अत्याचार घरेलू हिंसा तथा तलाक पर बात नहीं होगी नहीं यह चर्चा होगी की किस कारण से दुनिया के संसद में पच्चास फीसदी  महिलाओं को आज तक स्थान नहीं दिया गया नहीं विधान सभाओं में।‌
 
बस यह कहा जायेगा महिला परिवार की धूरी है समाज  में वह सम्मान के योग्य है पर यह नही बताया जायेगा की हर रोज कितनी महिलाओं और लडकियो से बलातकार होता है सड़क पर  घर में कार्य स्थल में या कहीं भी।यही हर  मंच की विशेषता होती है शब्दों के अलंकरण से सम्मानित होती नारी । कोई नारी वाद पर बोलेगा कोई महिलाओं के सशक्तिकरण करण पर उल्टी ऐसा करेगा की महिलाएं मंच पर ही लज्ला से भर जायेंगी।भारत मे अभी तेरह फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस कुछ लोग मनाये  पर सच्चाई यही है कि अधिकांश भारत के  लोग यह नहीं जानते हैं कि सरोजिनी नायडू स्वर कोकिला का जन्म दिन राष्ट्रीय महिला दिवस के रुप मे मनाया जाता है।खैर चलिए मनाया जाता होगा।
 
वैसे तो महिलाओं की भागीदारी धीरे धीरे हर क्षेत्र में बढ़ रही पर अवसर उतना नहीं जितना मिलना चाहिए।अब हमारी बेटियां सेना में स्थल सेना से लेकर लड़ाकू विमान उड़ाने लगी है तो टैक्सी टैम्पो से लेकर बस ट्रक की स्टेयरिंग भी पकड़ ली तो अन्तरिक्ष में उड़ान भर रही भारतीय मूल की कल्पना चावला को कैसे दुनिया भूला देगी।अभी अन्तरिक्ष में सुनीता विलियम्स है वह शायद मार्च के आखिरी सप्ताह में धरती पर उतरेगी परन्तु यह नाम मात्र  के है भागीदारी अब भी कम हैपरन्तु जितनी है उसे सम्मान मिले यही महिला दिवस की सार्थकता होगी।
 
यहां पर इन्दिरा गांधी रोजापार्ल नस्लीय भेद भाव के विरोध में आन्दोलन का अमेरिका में प्रतीक बन गई थी।विज्ञान में मेरी क्यूरी का नाम है तो डी एन ए की खोज में रोजा लिंड का नाम याद किया जाता है। महादेवी वर्मा और टानी  मारिसन एक नोबेल पुरस्कार विजेता महिला है। इन लोगों को आठ मार्च को याद करना जरुरी है यही आज की युवा महिलाओं कि आदर्श बन सकती है पर कितनी महिलाएं इन महिलाओं को जानती है ।यह सवाल खड़ा होता है।विजेन्द्री पाल, उड़न परीaपी की ऊषा साईधानेहवाल  क्रिकेट की महिलाखिलाडियो के साथ कुश्ती में भारत को पहचान दिलानेवाली फोगाट बहने तो ओलम्पिक में पदक लाने वाली साक्षी मलिक को भी अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अवश्य याद करना चाहिए।   
 
भारत की इन्द्रानूई विश्व की महिलाओं में एक नाम है तो व्यापार में भी महिलाओं ने अपनी छाप छोड़ रखी है।घर की रसोई से लेकर आसमान सागर और जमीन तक महिलाओं ने परचम  फहराया है राजनीति में सरोजनी नायडू इन्दिरा गांधी  भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा पाटिल तो दिल्ली प्रदेश की लगातार तीन टर्म सफल मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित भी एक  बड़ा नाम है ।वैसे भारत ही नहीं दुनिया में महिलाएं अब कही पीछे नहीं है हर कार्य में आगे आरही है पर संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती है।  संगीत में सबसे बड़ा नाम आज स्वर कोकिला लता मंगेशकर को दुनिया कभी भूला नहीं सकती है।
 
महिला दिवस के बारे में क ई तरह के मिथक भी है कि आठ मार्च १८५७ को न्यूयार्क शहर की महिला परिधान  श्रमिको ने आन्दोलन किया था तभी से महिला दिवस मनाया जाता है। और यह भी कहा जाता है अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस सबसे पहले१९१०द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया इस समाजवादी महिला  सम्मेलन के नेता जर्मन कार्यकर्ता क्लारा जेट किन थे‌।  श्रमिकों के सम्मान  में एकदिन  मनाने की अवधारणा यूरोप में लोक प्रिय हुई । परन्तु संयुक्त राज्य अमेरिका ने छूट्टी कीज्ञ आठज्ञमार्च को। सत्तर के दशक मे अमेरिकी नारी वादी समूहों ने महिला दिवस को महिला इतिहास सप्ताह मनाने लगे। अमेरिका के राष्ट्रपति जिमीकार्टर ने १९८० में पहला राष्ट्रीय महिला इतिहास सप्ताह घोषित किया जिसमें आठ मार्च भी शामिल था । अब आठ मार्च ही अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में  पुरा विश्व मनाता है और कई तरह  के कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
 
भारत में भी बहुत जोर शोर से मनाया जायेगा और मनाना चाहिए भी परन्तु कुछ  सच्चाई भी देश के नागरिकों को जानना चाहिए  कि हम जब महिलाओं के अधिकार की सम्मान समानता  की बात करते हैं तो यह भी जानना चाहिए की इस संचार  के इस  युग में आज भी महिलाओं पर अत्याचार को रोक नहीं पा रहे  हैं और अत्याचार के ईज्ञतरह से कर रहे है ।पर अखाड़ों में ज्ञानी नही है वहीं आंकड़े दुनिया में आते हैं जो पुलिस में दर्ज है जो नहीं दर्ज है वह कभी कोई नहीं जान पाता है कि वास्तव में महिलाओं की सही स्थिति क्या है।भारत में २००५मेघरेलू हिंसा कानुन बना जिससे महिलाओं की सुरक्षा हो सके परन्तु यह कितना कारगर है आज भी भारत मे३३.३प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की बात करती है कि उनके साथ घर में हिंसा होती है।आई पी सी की घारा४९८ए कानुन के तहत विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा करता है
 
  पर क्या वास्तव में देश की हर महिला को इस कानुन की जानकारी है क्या वह थाने मे जाकर रिपोर्ट दर्ज कराती है आज भी पुलिस थाने में महिलाएं जाकर किसी भी तरह के अपराध में रिपोर्ट आसानी से दर्ज नहीं करा सकती है पुलिस टालमटोल करती है या धमकी देकर मार पीट कर भगा देती जिसके कारण भारत मे सही आंकड़ा कभी नहीं मिलता है कि महिलाओं के साथ हर रोज कितना और किस तरह का अपराध हो रहा है हिंसा घर से सड़क तक घर से कार्यस्थल तक होती है पर कहा पता चलता है।
 
भारत में हर  रोज तीन महिलाओं में एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार होती है । यह अनुसंधान और सर्वे से उजागर होता है जहां उनके नाम को छिपा दिया जाता है। आज भारत  में चौबीस लाख महिलाएं अपने पति से अलग रहती है इसमें शहरी महिलाओं की अपेक्षा ग्रामीण महिलाएं ज्यादा है।जो तलाक शूदा है भारत में हर रोज सौ तलाक  के मामले दर्ज होते हैं ।यह भी सोचनीय विषय है कि भारत जैसे धार्मिक आस्था वाले देश में तलाक बढ़ रहा है।
 
इस पर इस  अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विचार गोष्ठी का आयोजन हो चर्चा हो कि क्या कारण है अरेंज्ड मैरिज में तलाक का दर मात्र चार प्रतिशत है और लव मैरिज में तलाक का दर पचपन प्रतिशत है यह तो गम्भीर समस्या है पर इस समस्या पर नारी वादी समूह मौन रहता है दहेज उत्पीड़न हो दहेज हत्या हो रहा है । पुरूष समाज महिलाओं की संस्था सब मौन हो जाते हैं।लेकिन महिला दिवस पर बोलेंगे जरूर की महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है वह कम हो पर उसी क्षण कही  न कहीं कोई महिला हिंसा का बलात्कार  का लूट का शिकार होती है।
 
 अन्तर्राष्ट्रीय महिला  दिवस अब एक दिन का समारोह बन कर रह गया है दुनिया भर के देश बस एक दिन महिलाओं के लिए बहुत सम्मान कि बात करते है।  भारत मे मणीपुर में निर्वस्त्र घूमाती भीड़ के साथ महिलाओं को दुनिया के देशों ने देखा नारी वादी संगठनों ने देखा पर सब देखकर आंखें बन्द और मौन थे कहा थे वहमहिला समाजवादी   संगठन आजतक उस कृत्य करने वालों को सजा नहीं ।सेना के जवान की पत्नी थी उस निर्वस्त्र में पर शासन प्रशासन मौन क्यों क्या आठ मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मंच से आवाज आयेगी शायद नहीं।फिर मेरे मन में यह शब्द भ्रम पैदा करता की जहां नारी की पुजा होती है वहां देवता घूमते हैं ।
 
यह ग़लत शब्द लगता है नारी कि इज्जत लूटी जाती है देवता रुपी नेता देखकर अनदेखा करते हैं तब सवाल उठता फिर कैसा अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस किस महिला के सम्मान में आयोजन हो रहा है उसके लिए जो बलात्कार के वाद बिना घर के लोगों की सहमति के पुलिस जला देती है या  प्रेम में  पडकर छत्तीस टुकड़े में काटी गई श्रद्दा के सम्मान में या जो पत्रकार बेटी आफिस से अपनी गाड़ी से घर जा रही थी और आतातियों में मार डाला।  कितनी बेटियां छेड़खानी से परेशान होकर मौत को गले लगा लेती है।  उनके सम्मान में। आखिर कोई बताये इस आठ मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस कैसा दिवस।

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