संविधान खतरे में या सिर्फ राजनीति
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आज संसद भवन में विपक्ष का एक नया रुप देखने को मिला। इंडी गठबंधन और विपक्ष की अन्य पार्टियों के सांसदों ने जब पहले दिन संसद भवन में प्रवेश किया तो उनके हाथों में संविधान की किताब थी। और वह यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि विपक्ष भारत का संविधान बचाने के लिए लड़ रहा है। सोनिया गांधी हों या अखिलेश यादव सभी के हाथों में संविधान था। क्या वास्तव में विपक्ष को संविधान की इतनी चिंता है और क्या वास्तव में एनडीए सरकार संविधान बदलना चाहती है इस पर एक लबी बहस हो सकती है। एनडीए सरकार ने अपने दस वर्षों के कार्यकाल को पूरा कर लिया है और तीसरी बार वह संसद में पहुंची है। इन दस वर्षों के कार्यकाल की बात करें तो अभी तक संविधान में ऐसा कोई बदलाव नहीं हुआ है जो देश की जनता के लिए हानिकारक हो। हां इसके राजनैतिक कारण हो सकते हैं। वोटरों को लुभाने के लिए बहुत सी बातें कह दी जाती हैं लेकिन उनको पूरा करना इतना आसान नहीं होता है।
कुछ बदलाव यदि होते भी हैं तो उनको गहराई से देखना होगा क्या इससे वास्तव में भारतीय जनता का कोई अहित हो सकता है। अभी तक ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला है। एनडीए के पिछले दो कार्यकाल के बाद इस तीसरे कार्यकाल में विपक्ष मजबूत हुआ है। इधर लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को भी अकेले पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ है। एनडीए के घटक दलों में कुछ तकरार होती है तो सरकार भी अस्थिर हो सकती है। विपक्ष बस इसी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है। यह तो राजनीति में चलता रहता है। पिछले दो कार्यकाल में भारतीय जनता पार्टी को अकेले ही प्रचंड बहुमत मिला था और उसके सहयोगी दल केवल हां में हां मिलाते दिखाई देते थे या फिर शांत होकर देखते रहते थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जहां गैर जरूरी लगेगा वहां विपक्ष भी सरकार का विरोध करेगा और सरकार के घटक दल भी असहमति व्यक्त कर सकते हैं। इसलिए इस बार एनडीए को बहुत ही साधकर चलना होगा।
आज जब अचानक से विपक्ष को संसद में प्रवेश करते समय संविधान की किताबों के साथ देखा तो मानो ऐसा लगा कि यह एक सोची समझी रणनीति है। भारतीय जनता पार्टी पिछले दो कार्यकाल में संविधान में जिन नये कानूनों को लाने की बात करती थी आज विपक्ष शाय़द उसी के बल पर मजबूत हुआ है। जनता में शाय़द यह भ्रम हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी वास्तव में संविधान बदलना चाहती है। इसलिए विपक्षी खेमा एकमत हो गया। भारतीय जनता पार्टी की पिछली सरकार ने जिन नये कानूनों को लागू करने की बात कही थी शायद उसमें जनता का कुछ भी बुरा नहीं होना था हां यह अवश्य है कि विपक्ष को इससे नुकसान अवश्य हो सकता था।
भारतीय जनता पार्टी हिंदू हितों की बात करती है लेकिन अल्पसंख्यक भी देश में उतने ही सुरक्षित हैं जितने कि हिंदू हैं। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव में कुछ भी बोला हो लेकिन चुनाव के बाद अल्पसंख्यकों को भी पूरे वही अधिकार प्राप्त हैं जो पहले भी थे। लेकिन विपक्ष जनता को यह समझाने में कामयाब हो गया कि भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यकों के अधिकार छीनना चाहती है। विपक्ष अपनी हर जनसभा में लगातार इस बात को दोहराता रहा। विधानसभा की बात हो या लोकसभा सत्र की विपक्ष ने यही आरोप सरकार पर लगाया कि भाजपा अल्पसंख्यक विरोधी है। और भारतीय जनता पार्टी विपक्ष के इन सवालों पर केवल अपना बचाव करती नजर आई। और यही कारण रहा कि भारतीय जनता पार्टी की बातों को विरोधी मतों को एकजुट कर दिया जब कि यहां सिर्फ राजनीति का खेल खेला जा रहा था।
हिंदू हितों की रक्षा करने वाली एनडीए की सरकार ने कभी यह बात नहीं कही कि वह अल्पसंख्यकों के अधिकार छीन लेगी। भारतीय जनता पार्टी हमेशा कहती रही कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है और किसी भी धर्म के अधिकार छीनने का उसका कोई मकसद नहीं है हां लेकिन वह साथ में यह भी एजेंडा चलाती रही कि वह हिंदुत्व का अहित नहीं होने देगी और यह कहने में कोई बुराई भी नहीं है। जनता केवल राजनीति में गुमराह होती है। सदन में इस बार विपक्ष तगड़ा है। कांग्रेस पार्टी दहाई अंकों को पीछे छोड़ कर सैकड़ा पर पहुंची है। समाजवादी पार्टी जिसके पिछले सदन में सिर्फ पांच सांसद थे आज वह 37 की संख्या पर पहुंची है। इसलिए यह निश्चित है कि इस बार जितने भी सत्र होंगे हंगामे दार होंगे और आज विपक्ष ने यह जाहिर भी कर दिया जब वह संविधान की किताबों को लेकर संसद भवन पहुंचे।
आज भी देश की आधी आबादी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में आस्था है लेकिन भारतीय जनता पार्टी हिंदूत्ववादी पार्टी बनने के चक्कर में विपक्ष को एक करती चली गई और इसका खामियाजा उसे लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा। जबकि विपक्ष जो कुछ भी कर रहा है यह केवल एक राजनैतिक रणनीति है जो उसे कामयाब होती दिखाई दे रही है। सरकार के फैसले यदि अच्छे होते हैं तो कुछ फैसलों में कमियां भी नजर आती हैं और विपक्ष उन्हीं कमियों को निशाना बनाता है। भारतीय जनता पार्टी आज भी देश की सबसे बड़ी पार्टी है। और यह निश्चित है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व तक कोई उसको नंबर दो पर नहीं पहुंचा सकता। लेकिन इस तरह का दिखावा जो आज संसद भवन में दिखाई दिया यह केवल एक राजनैतिक स्टंट ही मालूम पड़ता है। संविधान न भाजपा के पिछले दो कार्यकाल में ख़तरे में था और न आगे ख़तरे में होगा। भारत का संविधान इतना कमजोर नहीं है जिसे आसानी से कोई बदल सके।
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