दीपावली: अज्ञान पर ज्ञान के प्रकाश की विजय का पर्व

दीपावली: अज्ञान पर ज्ञान के प्रकाश की विजय का पर्व

 

डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

    अन्तर्मन में व्याप्त अज्ञान के तम को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित किये बिना प्रकाश पर्व का कोई अर्थ नहीं है| ऐसी मान्यता है कि रावण को मारकर अयोध्या लौटे श्रीराम के आगमन पर नगरवासियों ने दीप श्रृंखलाएं प्रज्ज्वलित करके अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी| वह कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था| तभी से प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा| श्रीराम को ज्ञान का प्रतिरूप तथा जगत का प्रकाशक बताया गया है| वहीँ रावण अहंकार रुपी अन्धकार का प्रतीक माना जाता है| इस दृष्टि से रावण पर राम की विजय अन्धकार पर प्रकाश की विजय का द्योतक है| रावण महापण्डित होते हुए भी अज्ञान के वशीभूत होकर अंहकार से युक्त रहा|

जिसका परिणाम यह हुआ कि भौतिक प्रगति के उच्चतम शिखर पर पहुँच कर सोने की लंका का स्वामी बनने के बाद उसे पराभव के सबसे न्यूनतम बिन्दु पर आना पड़ा| वह भी एक वनवासी के हाथों| भौतिक प्रगति की प्रतिस्पर्धा जब अन्धी दौड़ बन जाती है तब ज्ञान का अलोक अज्ञान के तिमिर में कब बदल जाये इसका पता तक नहीं चलता| इसके साथ ही कर्तापन का अहंकार कब इस अन्धकार को घनघोर अन्धकार में परिवर्तित कर देगा, इसका भी भान व्यक्ति को नहीं हो पाता| घनघोर अन्धकार अर्थात जब आँख अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाने के बाद भी अपने ही शरीर के अंगों को नहीं देख पाती है, तब हम यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि हम किस दिशा में और कहाँ जा रहे हैं| कदाचित अज्ञान की भी यही स्थिति है|

जिसके वशीभूत होकर प्रायः व्यक्ति अनुचित मार्ग का अनुकरण कर बैठता है| जो अक्सर उसे पराभव के सबसे निचले स्तर पर ले जाकर खड़ा कर देता है| वहीँ जब कोई व्यक्ति ज्ञान के प्रकाश में प्रगति के सोपान चढ़ता है तो भले ही वह उच्चतम शिखर को न प्राप्त कर सके परन्तु पराभव की सम्भावना से सदैव मुक्त रहकर स्थाईत्व को अवश्य प्राप्त कर लेता है| प्रतिवर्ष दीपावली का पर्व यही सन्देश लेकर आता है| परन्तु कई बार प्रकाश के अतिरेक की चकाचौंध भी दिग्भ्रमित कर देती है| प्रकाश अन्धकार की समस्या का समाधान है| परन्तु यह भी सर्वविदित है कि प्रकाश की अधिकता से आखें चौंधिया जाती हैं| वह स्थिति भी अन्धकार से भिन्न नहीं होती, जिसमें कुछ भी देख पाना सम्भव नहीं है|

प्रतिस्पर्धा के चलते दीपावली की चकाचौंध साल दर साल बढ़ रही है| गाँव से लेकर महानगरों तक हर कोई प्रकाश की इस प्रतिस्पर्धा में आगे निकलना चाहता है| लेकिन घर-आंगन की सजावट से लेकर खान-पान तक, सब में मंहगाई का ग्रहण लगा हुआ है| जिसके कारण अब इसे अमीरों का त्यौहार कहा जाने लगा है| क्योंकि जिस गति से देश में मंहगाई बढ़ रही है उस गति से लोगों की आमदनी नहीं बढ़ रही है| अतएव आम आदमी के लिए रोजमर्रा के खर्चों को पूरा कर पाना मुश्किल हो रहा है| ऐसे में रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि बुनियादी जरूरतें पूरी करके दीपावली जैसे खर्चीले त्योहारों के लिए पैसा बचा पाना अत्यन्त कठिन दिखाई देता है| बीते 75 वर्षों से गरीबी हटाओ का नारा दिया जा रहा है| लेकिन गरीबी है कि हटने का नाम ही नहीं ले रही है| उलटे गरीबी का ग्राफ साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है|

गरीबी और बेरोजगारी के अभिशाप से अभिशप्त लोगों के लिए क्या दीवाली और क्या होली| कोई कितना भी बड़ा दावा क्यों न करे किन्तु देश की एक बड़ी आबादी ऐसी है जो अपनी बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने की स्थिति में नहीं है| लेकिन इस दिशा में कुछ भी ठोस होते हुए दिखाई नहीं दे रहा है| खोखली बातें, खोखले वादे, खोखले दावे और जुमलेबाजी आज की राजनीति का शगल बन गया है| दीवाली हो या होली, शायद ही कोई ऐसा त्यौहार हो, जब हमारे नीति नियन्ताओं की ओर से बधाई के बड़े-बड़े सन्देश वैनर-पोस्टर से लेकर पत्र-पत्रिकाओं तक में न दिये जाते हों| इससे आम जन के प्रति उनकी सहृदयता तथा निष्ठा का पता चलता है| परन्तु यह भी किसी से छुपा नहीं है कि आम जन की स्थिति को सुधारने के लिए धरातल पर किया क्या जा रहा है| गरीबी के आगोश में बढ़ती बेरोजगारी और उस पर मंहगाई का दंश, जिसने देश की एक बड़ी आबादी का भविष्य पूरी तरह से अन्धकारमय बना दिया है|

इस अन्धकार को मिटाने के लिए प्रकाश की जिस किरण की आवश्यकता है, उसकी पूर्ति दीपावली की जगमगाहट से नहीं हो सकती है| उलटे हर दीवाली इस अन्धकार को और भी अधिक गहरा कर जाती है| आज जब आरोप-प्रत्यारोप, छींटाकशी और जुमलेबाजी के बल पर सत्ता हांसिल करने की घुड़दौड़ चल रही हो तब गरीबी और बेरोजगार के लिए समुचित नीति बनाकर, उसे क्रियान्वित करने की जहमत भला कौन उठाएगा| अब तो आम आदमी को स्वयं ही इस दिशा में सोचना होगा| वह भी गम्भीरता पूर्वक| विशेष रूप से उन लोगों को, जिन्होंने ‘कोउ नृप होउ हमहि का हानी’ को जीवन का मूल मन्त्र बनाकर स्वयं को देश और समाज से विमुख कर लिया है| दीपावली तो प्रतिवर्ष आती है, आती रहेगी|

लेकिन देश में गरीबों की संख्या साल दर साल बढ़ते हुए एक दिन इतनी अधिक हो जायेगी कि दीवाली की रात अमीरों के घरो को छोड़कर पूरा देश अन्धकार के आगोश में डूबा हुआ दिखाई देगा| अमीरों के बच्चे पटाखे फोड़ेंगे और गरीबों के बच्चों के दिल टूटेंगे| कुछ घरों में तो पकवानों का ढेर लगा होगा| परन्तु अनगिनत परिवार रोटी तक को तरसेंगे| अतः हमें ज्ञान का ऐसा प्रकाश बिखेरने की महती आवश्यकता है जो गरीबी और बेरोजगारी का अन्धकार समाप्त कर सके| परन्तु समाज को भौतिक प्रगति की अन्धी दौड़ से मुक्त रखकर|  

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