फिर से रेल पटरी पर बैठता किसान: क्या हैं शर्तें

चुनावी मौसम को भुनाने में जुटे किसान नेता

फिर से रेल पटरी पर बैठता किसान: क्या हैं शर्तें

देश। का अन्नदाता किसान 28 सितंबर से तीन दिवसीय रेल रोको आंदोलन के तहत फिर से रेल पटरी पर बैठ गया। उनकी मांगे हैं कि दिल्ली में किसान आंदोलन के तहत जिन किसानों पर मुकदमें लगाए गए थे उन्हें पूरी तरह से वापस नहीं लिया गया है, मुकदमों को वापस लिया जाए।  दूसरा किसानों का मत है कि लखीमपुर खीरी कांड में उनको न्याय नहीं मिला है। उस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। किसानों की अन्य मांगों में बाढ़ में फसलों को हुए नुकसान की भरपाई करना और एम एस पी की गारंटी देना शामिल है चुनावी मौसम में किसानों के आंदोलन क्यों उड़ान भरने लगते हैं। या तो यह समय उनके लिए सबसे मुफीद होता है या फिर किसान नेता इसका चुनावी लाभ लेना चाहते हैं।

इस वर्ष दिसंबर तक पांच राज्यों में विधानसभा के और 24 की शुरुआत में देश में लोकसभा के चुनाव होने हैं। और किसान आंदोलन हमेशा ऐसे ही समय पर शुरू होते हैं। लेकिन आम जनता पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है यह कोई नहीं सोचता। इस तीन दिवसीय आंदोलन में तमाम ट्रेनों को या तो उनके गंतव्य से पहले ही रोक दिया गया या फिर निरस्त कर दिया गया। ऐसे में हजारों रेल यात्रियों को जो कठिनाई का सामना करना पड़ा इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। ऐसे आंदोलनों का विरोध होना चाहिए जो जनता के महत्वपूर्ण कार्यों को अवरुद्ध कर दें। तीन दिन पंजाब में लगभग रेल संचालन ठप रहा।

आंदोलन के और भी तरीके हो सकते हैं जरुरी नहीं कि हमें उसके लिए ट्रेन या यातायात के अन्य साधनों को ठप करना जरूरी हो। इन आंदोलनों में किसान नेताओं का बहुत बड़ा रोल रहता है और ये सब उन्हीं के इशारों पर होते हैं। नहीं तो इन भोले भाले किसानों की हिम्मत नहीं है कि वे रेल का संचालन ठप करादे। पिछली बार जब दिल्ली में ऐतिहासिक किसान आंदोलन हुआ था तो उसमें तमाम किसान संगठनों का मिलकर समर्थन था।वह आंदोलन महीनों चला क्यों कि किसान नेता अपनी ज़िद पर अड़े थे और सरकार उनको मना नहीं पा रही थी।

फिर यकायक यह आंदोलन समाप्त हो गया। जब कि सरकार की तरफ से स्थिति जस की तस थी और अंत में किसान नेताओं ने सरकार के साथ बैठ कर बात चीत कर ली और आंदोलन समाप्त करने की घोषणा कर दी। पंजाब का का यह रेल रोको आंदोलन एक छोटे रुप में था जिसकी समय सीमा तय थी। लेकिन इस आंदोलन ने यह आभास करा दिया है कि इस चुनावी मौसम में आगे की भी रणनीति तैयार हो रही है। किसान नेता ऐसे ही समय का इंतजार करते हैं। और ऐसे समय पर सरकार भी मांगे मानने पर तैयार हो जाती है।

आपको बता दें कि इस रेल रोको आंदोलन के कारण 150 से अधिक रेलगाड़ियां रद्द रहीं और 59 रेल गाड़ियों को अपने गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही रोकना पड़ा। जम्मू जाने वाली सात ट्रेनों को रद्द करना पड़ा जबकि 13 रेलगाड़ियों का रुट परिवर्तन करना पड़ा। जम्मू जाने वाले पर्यटकों का रास्ता पंजाब से होकर ही गुजरता है जहां लाखों लोग मां वैष्णो देवी के दर्शन को जाते हैं। उन पर क्या गुजरी होगी जो रास्ते में फंसे थे।
 
इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। पंजाब में 17 स्थानों पर यह आंदोलन चला। इन स्थानों में फरीदकोट, समराला, मोगा, होशियारपुर, गुरदासपुर, जालंधर, तरनतारन, सगरुर, पटियाला, फिरोजपुर, बठिंडा और अमृतसर शामिल है। लगभग सारे पंजाब की रेलगाड़ियों का संचालन ठप्प कर दिया गया। देश में पंजाब और हरियाणा की गिनती कृषि प्रधान प्रदेशों में आती है और यहां सबसे ज्यादा लोग कृषि कार्य से जुड़े सोते हैं। पंजाब पूरे देश में गेहूं की पूर्ति करता है। लेकिन यह किसके बहकावे में इस तरह का उग्र रूप धारण कर लेते हैं। और अंत में मान भी जाते हैं।
 
किसान यूनियन के नेता हमेशा मौक़े की तलाश में रहते हैं और वह मौका चुनाव के आस पास के समय से बेहतर हो ही नहीं सकता जब सरकार उनकी मांगों को मानने को मजबूर दिखाई पड़ती है। यह अभी एक शुरुआत है आगे और भी इस तरह के आंदोलन देखे जा सकते हैं। किसान आंदोलन ज्यादातर हरियाणा और पंजाब से शुरू होता है जिसमें बाद में उत्तर प्रदेश भी शामिल हो जाता है। किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत इस मुद्दे पर कड़ी निगाह रखे होंगे। क्यों कि उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की अगुवाई वो ही करते हैं।
 
सरकार को इस तरह के आंदोलन से सचेत रहने की आवश्यकता है क्योंकि जब भी देश में कोई आंदोलन होता है उससे सबसे ज्यादा कष्ट आम जनता को होता है। किसान केवल अपने नेता के एक इशारे पर हर तरह के आंदोलन के लिए तैयार हो जाता है। और ये किसान नेता केवल अपना उल्लू सीधा करते हैं। यह सच है कि किसान देश का अन्नदाता है और उनको परेशानी नहीं होनी चाहिए। पंजाब और हरियाणा का किसान देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा में धनाढ्य है। इसीलिए किसी भी आंदोलन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाती है।

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