छुट्टी की घोषणा या घोषणाओं से छुट्टी
मुझे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगता है इस बार विधानसभा चुनाव में अपने सभी प्रतिद्वंदियों की छुट्टी करके मानेंगे। उनकी झोली से इन दिनों छुट्टियां टपकती जा रही है।
मप्र में विधानसभा चुनाव नजदीक है इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दनादन छुट्टियां घोषित करने में लगे हैं। वे जिस समाज क सम्मेलन या कुंभ में भाषण देने जाते हैं वहां या तो उस समाज के महापुरुष की जयंती पर छुट्टी कर ऐलान करते हैं या फिर लोक बनाने की घोषणा।
पूरे प्रदेश में अचानक सामाजिक कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई है। कहीं ब्राह्मण समाज, कहीं क्षत्रिय समाज तो कहीं किरार धाकड़ समाज के कुंभ आयोजित हो रहे हैं ।इन कार्यक्रमों का आयोजन खुद पर्दे के पीछे से भाजपा करती है मुख्यमंत्री शिवराज इन कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि होते हैं ।इन समाजों को खुश करने के लिए मुख्यमंत्री महाकाल लोक जैसे लोक बनाने अथवा जयंती पर छुट्टी की घोषणा कर देते हैं ।
मप्र की आंगनबाडियों और स्कूलों में शौचालय नहीं है लेकिन उनके निर्माण की कोई घोषणा मुख्यमंत्री की ओर से नहीं की जाती, क्योंकि आंगनबाडियों से वोट नहीं निकलते। आपको बता दें कि भले ही उज्जैन में महाकाल लोक पहली ही आंधी में टूट गया लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शिवराज ने छतरपुर में छत्रसाल लोक, भोपाल में महाराणा प्रताप लोक, महेश्वर में अहिल्या देवी लोक, जानापाव में भगवान परशुराम लोक, ओरछा में राम राजा लोक तो सलकनपुर में देवी लोक बनाने की घोषणा कर दी है।
स्वभाव से मजाकिया पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कहते हैं कि 'अपने समाज के महापुरुषों के नाम पर बनने वाले लोकों तथा छुट्टियों की घोषणा से जनता खुश हो जाती है , शाय़द इसलिए कर देते हैं सितंबर 22 से अब तक नौ महीने में सरकार पांच छुट्टियों की घोषणा कर चुकी है ।
वोटरों को लुभाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसी भी हद तक जा रहे हैं। 'समाज के वोटरों को खुश करने के लिए शिवराज सिहं चौहान किसी भी हद तक जा रहे हैं।वे इससे पहले अनेक समाज कल्याण बोर्डों के गठन की घोषणाएं कर चुके हैं। प्रदेश में पहले एक समाज कल्याण बोर्ड होता था,अब कोल समाज कल्याण बोर्ड, ब्राह्मण कल्याण बोर्ड, मछुआरा समाज कल्याण बोर्ड और गठित किए जाएंगे। गनीमत है कि फिलहाल इन बोर्डों में कोई भर्तियां अब तक नहीं हुई हैं।
वोट कबाड़ने के लिए छुट्टी और बोर्ड बनाने का फार्मूला कांग्रेस का है। तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने इसकी शुरुआत की थी। कांग्रेस को इसका लाभ भी हुआ। प्रदेश में 2003 तक कांग्रेस क सरकार रही।अब इसी फार्मूले पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आगे बढ़ रहे हैं। चौहान के लिए 2023 के विधानसभा' ' चुनाव करो या मरो ' वाला है क्योंकि 2018 में मप्र की जनता उन्हें नकार चुकी है।वे 2020 में धनादेश से सत्ता में वापस आए थे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने चौथे कार्यकाल के 3 साल में अब तक करीब 2400 घोषणाएं की हैं। यानी एक दिन में औसतन 2 घोषणाएं । जबकि उनमें से आधी घोषणाएं भी पूरी नहीं हुई हैं। यानी करीब 1200 घोषणाएं ही अब तक पूरी हो पाई हैं।
आपको याद होगा कि अतीत में भाजपा के ही प्रतिष्ठित नेता रघुनंदन शर्मा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घोषणावीर कह चुके हैं। चौहान पर यह उपमा खूब फबती है।वे घोषणा करते समय जाति पांत नहीं सिर्फ वोट देखते हैं। ग्वालियर में उन्होंने पत्रकारों तक को लीजरेंट माफी की मिथ्या घोषणा करने में कंजूसी नहीं की।हाल ही में लाड़ली बहन योजना, के अलावा आधा दर्जन नयी घोषणाएं चौहान कर चुके हैं। ये घोषणाएं भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र से अलग हैं।
भारतीय संविधान नेताओं को घोषणाएं और वादे करने से नहीं रोकता। घोषणा के कागजी साबित होने पर आप अदालत में चुनौती नहीं दे सकते। घोषणा करने वाले को सजा नहीं दिला सकते, उसकी विधायकी या सांसदी नहीं छीन सकते। घोषणा करने के मामले में कांग्रेस नहले पर दहला मारती है। कमलनाथ ने मप्र में सरकार की हर घोषणा के जबाब में एक नयी घोषणा की है।
नेताओं के लिए घोषणा करना उतना ही आसान है जितना कि सुबह सुबह सूरज का उगना। नेता घोषणा करने से नहीं डरता। चुनावों में पराजय से डरता है। नेता जेल जाने से नहीं डरता। भ्रष्टाचार से नहीं डरता। दरअसल नेता किसी से भी नहीं डरता। भगवान से भी नहीं।
निडर नेता ही देश का गौरव है।वो ही देश को विश्व गुरु बनाता है, भले ही देश किसी भी ऱेंकिग में सबसे नीचे खड़ा हो। नीचे खड़ा होना ही महानता की निशानी है। इनसे सावधान रहने की जरूरत है।
राकेश अचल
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