भाभियों ने देवरों के फाड़े कपड़े, बरसाए कोड़े, 40 दिवसीय ब्रज की होली खत्म, देखें अनदेखी तस्वीरें

भाभियों ने देवरों के फाड़े कपड़े, बरसाए कोड़े, 40 दिवसीय ब्रज की होली खत्म, देखें अनदेखी तस्वीरें

Holi 2023: ब्रज में आज से होली का हुड़दंग थम गया है। 40 दिवसीय होली उत्सव का दाऊ जी के हुरंगे के बाद समापन हो गया है। मान्यता है कि हुरंगे में भाभियां देवरों के कपड़े फाड़ती हैं और उसी कपड़े का कोड़ा बनाकर देवरों की पीठ पर वार करती हैं।

ब्रज में चलने वाले 40 दिवसीय होली महोत्सव का आज दाऊ दादा की नगरी से समापन हो गया। मंदिर में चले हुरेंगे उत्सव में देवर पर भाभियों ने अपना प्यार जताते हुए पहले उनके कपड़े फाड़े और फिर फाड़े हुए कपड़ों से कोड़ा बनाकर हुरंगे का आनंद उठाया। पीठों पर कोड़े खाते हुए दाऊ जी महाराज के जयकारों से पूरा वातावरण भक्ति में सराबोर और रंगमय नजर आया।

ब्रज में होली की धूम धुल होली के बाद भी गूंज रही है। भले ही राधा-कृष्ण होली का समापन धुलंडी के साथ हो गया हो, लेकिन श्री कृष्ण के बड़े भाई और ब्रज के राजा बलराम जी की नगरी में आज भी होली खेली गई। अनोखे तरीके से खेली गई इस होली में ग्वालों के कपडे फाड़ कर कोड़ा बनाकर हुरियारिनों ने उन्हीं पर बरसाए।

हाथों में बाल्टी लेकर मंदिर परिसर में नाचते हुरियारे दोपहर बारह बजे बाद से यहां एकत्रित होना शुरू हुए। इसके बाद जैसे ही मंदिर के अन्दर से बलराम जी की छड़ी रुपी झंडा आया और यहां मौजूद हुरियारिनों ने इनके कपड़े फाड़ना शुरू कर दिया। फिर उनको रंग में भिगोकर कोड़ा बनाया। हुरियारिनों ने कोड़े को हुरियारों पर ही बरसाना शुरू कर दिया। हुरियारे दाउजी महाराज के जयकारे लगाते हुए मंदिर की परिक्रमा करते रहे।

दाऊजी मंदिर के रिसीवर ने हुरंगे की जानकारी देते हुए बताया कि हुरंगे के दौरान हुरियारे इतने उत्साहित हो गए कि वह कभी अपने साथियों को कंधे पर बिठा ले रहे थे तो कभी उन्हें गिरा दे रहे थे। इस दौरान लगातार कपड़े के बनाए हुए कोड़े से हुरियारिन इन ग्वालों पर वार कर रही थीं। यह सब देखकर यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक भाव विभोर हो गए।

बरसाना और नन्द गांव की ही तरह यहां के हुरंगे में भी हुरियारिन हुरियारों पर हावी रहती हैं, लेकिन यहां लाठियों से नहीं, बल्कि हुरियारों के कपड़े फाड़ कर बनाए गए कोड़े से उन्हीं की पिटाई कर होली का समापन करती हैं।

दाऊजी महाराज मंदिर के रिसीवर राम कटोर पांडेय ने जानकारी देते हुए बताया कि 5 हजार वर्ष से यह परंपरा चली आ रही है। यहां देवर भाभी के बीच एक अनोखी होली होती है।

मंदिर प्रांगण में देवरों के पहले कपड़े फाड़े जाते हैं और उन्हीं कपड़ों से कोड़ा बनाकर भाभियां देवरों के ऊपर बरसाती हैं। अबीर गुलाल और टेसू के फूलों से तैयार किए गए प्राकृतिक रंग पूरे मंदिर के वातावरण को सतरंगी कर देता है।

उन्होंने बताया कि 21 क्विंटल टेसू के फूलों से रंग तैयार किया गया था। 50 क्विंटल कई प्रकार के फूलों की पत्तियां मंगाई गईं, जोकि लगातार श्रद्धालुओं पर हुरंगे के आयोजन के द्वारा मशीनों से बरसाई गईं।

 

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