संतों की एक दिन की संगत से भी होती है मोक्ष की प्राप्ति- बाल भरत
स्वतंत्र प्रभात
मिल्कीपुर।किसी के विनाश के लिए तप करना तपस्या नहीं है। दुष्ट एवं दुराचारी होने के बावजूद संतों की एक दिन संगत से भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो अपने भाइयों का हिस्सा अकेले खा जाय वही राक्षस है। आस्था अटल हो तो कहीं भी किसी भी रूप में भगवान के दर्शन हो सकते है। उपरोक्त बातें मंगलवार को कथा व्यास बालभरत जी महाराज ने क्षेत्र के पूरे रजऊ मिश्र मे चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस अजामिल के मोक्ष, प्रहलाद चरित्र व भगवान कृष्ण के जन्म की कथा सुनाते हुए कही।
कथा व्यास ने बताया कि अजामिल ब्राह्माण कुल में जन्मे थे और कर्मकाण्डी थे। किन्तु वेश्या के साथ रहता थे। एक दिन संतों का एक काफिला अजामिल के घर के सामने डेरा जमा दिया। रात में जब अजामिल आया तो उसने साधुओं को अपने घर के सामने देखकर बौखला गया और साधुओं को भला बुरा कहने लगा। इस आवाज को सुन कर अजामिल की वेश्या पत्नी ने डांट कर शांत कराया। अगले दिन साधुओं ने अजामिल से दक्षिणा मांगी। इस पर वह फिर बौखला गया और साधुओं को मारने के लिए दौड़ पड़ा। तभी पत्नी ने उसे रोक दिया। साधुओं ने कहा कि हमें रुपया पैसा नहीं चाहिए। इस पर अजामिल ने हां कह दिया। साधुओं ने कहा कि वह अपने होने वाले पुत्र का नाम तुम नारायण रख ले। बस यही हमारी दक्षिणा है। अजामिल की पत्नी को पुत्र पैदा हुआ तो अजामिल ने उसका नाम नारायण रख लिया और नारायण से प्रेम करने लगा। इसके बाद जब अजामिल का अंत समय आया तो यमदूतों को भगवान के दूतों के सामने अजामिल को छोड़ कर जाना पड़ गया। इस तरह अजामिल को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसलिए कहा गया है कि भगवान का भगवान का नाम लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
इस अवसर पर मुख्य यजमान शिव कुमार मिश्र, ब्लाक प्रमुख प्रतिनिधि पवन सिंह, वंशीधर द्विवेदी, महेश ओझा, विजय पाण्डेय, राधिका प्रसाद पाण्डेय सहित भारी संख्या में श्रोताओं ने कथा का रसपान किया।
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