वर्तमान राजनीति से काफी छुब्ध है वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता संध्या सक्सेना

वर्तमान राजनीति से काफी छुब्ध है वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता संध्या सक्सेना

कांग्रेस पार्टी की सफलता के उच्चतम शिखर से अपनी राजनैतिक जीवन की शुरुआत करने वाली गोरखपुर की संध्या सक्सेना वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य और व्यवहार

स्वतंत्र प्रभात 
 

कांग्रेस पार्टी की सफलता के उच्चतम शिखर से अपनी राजनैतिक जीवन की शुरुआत करने वाली गोरखपुर की संध्या सक्सेना वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य और व्यवहार से बहुत क्षुब्ध हैं। अपने जीवन के उतर्रार्ध में उम्र के लगभग  80 वें  पड़ाव पर पहुंच रही गोरखपुर महानगर की अपने समय मे कद्दावर और जुझारू शख्सियत तथा आधी आबादी में खासी पैठ रखने वाली कांग्रेस नेत्री संध्या सक्सेना वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम एवं नेताओं की उठापटक और व्यवहार से बेहद व्यथित होती हैं।

आयरन लेडी इंदिरा गांधी के समय से अपनी राजनीतिक यात्रा का प्रारंभ लड़ने वाली संध्या सक्सेना उस समय और भी महत्वपूर्ण हो गईं जब पूर्वांचल में विकास पुरुष के नाम से  पहचाने जाने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता वीरबहादुर सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने।उस समय को याद करते हुए उनकी बूढ़ी आंखों में एकबारगी चमक से कौंध उठती है।विचारों के सागर में यादों की नाव को पीछे चलाते हुए वो उस दौर में पहुंच जाती है जब कांग्रेस ने  देश में पूर्वांचल को और प्रदेश में गोरखपुर के महत्व को समझाया।टूटी सड़कों बाढ़ बीमारी अपराध और अंधेरों की पर्याय बन चुका गोरखपुर विकास गाथा लिखने में अग्रणी हो चुका था।पूर्वांचल की राजनीति में जब आमूलचूल परिवर्तनों की नई इबारतों से विकास के सफे पलटते हुए गोरखपुर अपनी खास पहचान बना रहा था।उसी समय महानगर की आधी आबादी यानी नारी शक्ति से राजनीति को परिचित कराती संध्या सक्सेना अपनी नेतृत्वक्षमता से ये साबित करने पर आमादा थी कि आखिर नारी को शक्तिस्वरूपा क्यों कहा जाता है।

वीरबहादुर सिंह के बाद पूर्वांचल ने इक्कीसवीं सदी में कदम रखने के साथ  ही कंप्यूटर युग मे शान से कदम रखा।उस समय देश की बागडोर कांग्रेस की युवा सनसनी एवं आयरन लेडी श्रीमती इंदिरा गांधी के बड़े पुत्र राजीव गांधी के हाथ मे थी।विकास के तात्कालिक स्वरूप और आधुनिकता एवं सशक्तिकरण के पर्याय बन राजीवगांधी ने भी समय समय पर संध्या सक्सेना से पूर्वांचल की आधी आबादी की नब्ज टटोलने हेतु परामर्श लिया है।कांग्रेस के लिए कार्य करते हुए संध्या सक्सेना आंदोलन करते हुए कई बार जेल भी गई हैं।उनके राजनीतिक कद और श्रम को तत्कालीन वरिष्ठ नेताओं में कई बार सराहा और महसूस किया। अपने जीवन के आठवें दशक में पहुंच चुकी संध्या सक्सेना आजकल की राजनीति से बहुत क्षुब्ध और व्यथित हैं।वो भारी मन से बताती हैं कि आज कल की राजनीति एवं राजनेताओ में नैतिकता एवं  ईमानदारी का बहुत तेज़ी से क्षरण होता जा रहा है।

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