
नूपुर से आकाश तक आग ही आग
नूपुर से आकाश तक आग ही आग
भावनाएं आखिर भावनाएं न हुईं ,छूमंदे की नाक हो गयीं ,जो जरा सी बात में आहत हो जातीं हैं. पहले भारत में हुईं और अब बांग्लादेश में हो गयीं .बांग्लादेश में आकाश नाम के एक युवक की पैगंबर के विरुद्ध कथित टिप्पणी को लेकर वहां के अल्पसंख्यक हिन्दुओं के घर जला दिए गए और पुलिस मूकदर्शक बनी देखती रही .यानि जो आग नूपुर के बयान से भारत में सुलगी ,वो ही आग आकाश की टिप्पणी से बँगला देश में भड़क गयी .नफरत और असहिष्णुता की आग धीरे-धीरे पूरे ब्रम्हांड को अपनी चपेट में लेती दिखाई दे रही है.
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा पर न लिखता तो मुमकिन है कि मित्र मुझे निश्चाने पर ले लेते ,इसलिए उनके सक्रिय होने से पहले मै इस अमानवीय हिंसा की खिलाफत करता हूँ .मुमकिन है कि अभी भारत में भक्तगणों को नफरत की आग की तपिश महसूस न हो रही हो,क्योंकि भक्त देर से जागते हैं ,तथापि मुझे ये आग फैलती दिखाई दे रही है .किस्सा यूं है कि बांग्लादेश के नरैल जिले में लोहागारा उपजिला में कट्टरपंथियों की भीड़ ने फेसबुक पर कथित रूप से पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ टिप्पणी करने पर हिंदुओं के 70 घरों और दुकानों को पहले जमकर लूटा और फिर उन्हें जला दिया। उन्मादियों की यह भीड़ यहीं पर नहीं रुकी और उसने एक मंदिर को भी तोड़फोड़ करके बर्बाद कर दिया।
इनका आरोप था कि आकाश नाम के शख्स ने पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी की है जिससे उनकी भावनाएं आहत हुई हैं। हिंसाग्रस्त इस इलाके में सक्रिय इस्कॉन समूह का कहना है कि सैकड़ों हिन्दुओं को बुरी तरह से पीटा गया है। घरों को इस तरह से जलाया गया कि वे दो दिन तक जलते रहे। इस हिंसा की शिकार दिपाली रानी साहा के मुताबिक वे उस क्षण को नहीं भूल सकती हैं जब शुक्रवार की रात को उन्होंने अपने ही घर को जलते हुए देखा। दीपाली बताती हैं,कि 'कट्टरपंथियों के एक गुट के उनका घर लूटने के बाद दूसरा गुट आया और उसने पाया कि दरवाजा खुला हुआ है। चूंकि वहां पर लूटने के लिए कुछ नहीं बचा था, उन्होंने हमारे घर को ही आग लगा दी।'
बताया जा रहा है कि कट्टरपंथी जुमा की अजान के बाद आरोपी छात्र के घर पहुंचे और उसकी गिरफ्तारी की मांग करने लगे। आकाश घर में नहीं था। इसके बाद भीड़ ने पड़ोस के हिंदुओं के घरों पर हमले करना शुरू कर दिया। इन लोगों का पैगंबर पर फेसबुक पोस्ट से कोई लेना देना नहीं था।शाम को पुलिस ने आकाश के पिता अशोक साहा को हिरासत में ले लिया ताकि 'हालात को काबू में लाया जा सके।' बांग्लादेशी मीडिया के मुताबिक अभी तक पुलिस ने इन घरों को जलाने वाले किसी भी कट्टरपंथी को गिरफ्तार नहीं किया है।
इस हमले का शिकार दिपाली कहती हैं, 'केवल इसलिए कि छात्र हिंदू था और मैं भी हिंदू हूं, मेरे घर को जला दिया गया। मैं नहीं जानती हूं कि हिंसा का यह खतरा कब तक बना रहेगा और हमारा पीछा करता रहेगा। हमें कौन न्याय देगा ? हमें कौन सुरक्षा देगा ? जैसे सवाल बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय की और से उठाये जा रहे हैं वैसे ही सवाल भारत में उठाये जा चुके हैं .भारत में नूपुर की टिप्पणी के बाद दुनिया के तमाम मुस्लिम देशों ने टिप्पणी की थी लेकिन भारत इस मामले में मौन है .कोलकाता में इस्कॉन के प्रवक्ता राधारमन दास कहते हैं कि हिंदुओं के 70 घरों को जला दिया गया
दुनिया ने चुप्पी साध रखी है।
दास ने कहा कि बांग्लादेश के हिंदू अपना धर्म परिवर्तन नहीं करेंगे और न ही वहां से भागेंगे। वे पहले भी इस तरह के कट्टरपंथियों के हमले के आगे डटे रहे हैं। दास ने बताया कि जब यह हमला हुआ उस समय घटनास्थल पर पुलिस मौजूद थी लेकिन वह मूकदर्शक बनी रही। पुलिस पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संयुक्त राष्ट्र से मदद की गुहार लगाई है।पर सवाल ये है कि मोदी जी किस मुंह से पड़ौस की हिंसा के बारे में बोलें.वे तो अपने घर में हो रही दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं पर नहीं बोलते .उनके रहते नूपुर शर्मा आज भी गिरफ्तार नहीं होती .
दरअसल ये सवाल अब नूपुर और आकाश का नहीं बल्कि कट्टरता बनाम कट्टरता है .एक तरफ अल्पसंख्यक मुस्लिम कट्टरता है तो दूसरी तरफ बहुसंख्यक हिन्दू कट्टरता है .कट्टरता से कट्टरता का मुकाबल कैसे होगा ? क्या मल से मल को धोया जा सकता है ?शायद नहीं .भारत और भारत के पड़ौसी देशों को अपने-अपने देश में तेजी से बढ़ रही कट्टरता और नफरत को बढ़ने से रोकना होगा ,अन्यथा पूरे महाद्वीप के लिए समस्या पैदा हो जाएगी .हिन्दुओं और मुसलमानों के पास क्या कोई ऐसा विद्वान हो जिसकी ईश्वर या पैगंबर से सीधी बात होती हो ,जो अपने-अपने आका से ये पूछ सके कि क्या वाकई किसी आदमी या औरत की टिप्पणी से उनका अपमान होता है या वे मान-अपमान से ऊपर की चीज हैं ?
दुर्भाग्य ये है कि कट्टरता के मामले में हर सत्ता का चरित्र एक समान है ,फिर चाहे सत्ता भारत की हो या बांग्लादेश की .जैसे बांग्लादेश के हिन्दू न धर्म परिवर्तन कस सकते हैं और न उन्हें देश से निकाला जा सकता है वैसे ही भारत में मुसलमानों का न धर्म परिवर्तन कराया जा सकता है और न उन्हें देश से बाहर निकाला जा सकता है .बेहतर हो कि भारत एशिया का सबसे बड़ा राष्ट्र होने के नाते एक और जहाँ अल्पसंख्यक मुस्लिमों के हितों की रक्षा अपने यहां करे वहीं दुसरे देशों में अल्पसंख्यक हो चुके हिन्दुओं की रक्षा के लिए भी प्रयास करे .मामला मनुष्यता का भी है और अल्पसंख्यकों का भी. जो अल्पसंख्यक है वो ही बहुसंख्यकों के निशाने पर है. केवल स्थान या देश बदलते हैं .
बांग्लादेश में हुई इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को लेकर भारत की जनता के मन में स्वाभाविक है कि क्लेश होगा इसलिए सरकार को अपनी भूमिका से पीछे हटने के बजाय बांग्लादेश से बात करना चाहिए .भारत ने अतीत में इसी सरकार ने हिन्दुओं के प्रश्न पर अनेक कानून भी गढ़े और पहल भी की .ये सही मौक़ा है जब भारत घर के भीतर और घर के बाहर भी एक नई भूमिका का वरण कर सकता है .बोलिये ,सर कुछ तो बोलिये .
@ राकेश अचल
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