कांग्रेस के नजरिये में धर्मनिरपेक्षता

कांग्रेस के नजरिये में धर्मनिरपेक्षता

डॉ रामेश्वर मिश्र विगत कुछ वर्षों से संविधान की उद्देशिका मे वर्णित धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवाद जैसे शब्दों को लेकर अनेक वैचारिक मतभेद सामने आए हैं। पिछले कुछ माह से देश में अनेक हिंसात्मक घटनाएं हो रही हैं और देश का एक समुदाय विशेष अपने को शोषित एवं उत्पीड़ित बता रहा है जिसके फलस्वरूप उसने पूरे

डॉ रामेश्वर मिश्र

विगत कुछ वर्षों से संविधान की उद्देशिका मे वर्णित धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवाद जैसे शब्दों को लेकर अनेक वैचारिक मतभेद सामने आए हैं। पिछले कुछ माह से देश में अनेक हिंसात्मक घटनाएं हो रही हैं और देश का एक समुदाय विशेष अपने को शोषित एवं उत्पीड़ित बता रहा है जिसके फलस्वरूप उसने पूरे देश में सरकार के फैसले  के विरूद्ध आन्दोलन किया जिसे कांग्रेस पार्टी द्वारा जोरदार समर्थन मिला। कांग्रेस प्रबुद्ध वर्ग के द्वारा जो विरोध सत्ता पक्ष  का किया जा रहा है उसके मूल में निहित तथ्य यह है कि संविधान के मूल स्वरूप का सरकार द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है, इसी वैचारिक मान्यता के फलस्वरूप दिसम्बर 2019 को राजघाट पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं प्रबुद्ध वर्ग के द्वारा शान्तिपूर्ण धरना दिया गया जिसमें संविधान की उद्देशिका को बार-बार अलग अलग लोगों द्वारा पढ़ा गया, उस दिन से लेकर आज तक देश भर में संविधान बचाओं देश बचाओं का नारा चलन में आ गया।

मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने स्कूली शिक्षा के अन्तर्गत रोज कक्षाए प्रारम्भ  होने से पहले संविधान की उद्देशिका को पढ़ाए जाने पर बल दिया। 25 जनवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी के संसदीय क्षेत्र  वाराणसी में कांग्रेसियों द्वारा एक बड़ा संविधान मार्च शान्तिपूर्ण ढंग से निकाला गया। इन सब कार्यो के पीछे ध्यान से देखा जाय तो कांग्रेस पार्टी द्वारा देश की एकता एवं अखण्डता को अक्षुण रखने के विचारधारा कार्य कर रही है। सन् 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ तो संविधान सभा द्वारा  धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक  ढांचा अपनाया गया। यद्यपि संविधान की उद्देशिका में धर्मनिरपेक्ष एवं अखण्डता शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अपनाया गया लेकिन  धर्मनिरपेक्षता शब्द के सिद्धान्त प्रारंभिक  स्वरूप में ही प्रभावी हो चुके थे। अनुच्छेद 25, 26, 30 (1) (2) के अन्तर्गत व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्वतंत्रता की सुरक्षा, अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत राज्य द्वारा धर्म के आधार पर किसी नागरिक से भेदभाव न करना और अनुच्छेद 16 के अन्तर्गत अवसर की समानता का अधिकार धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों पर ही आधारित है यद्यपि धर्मनिरपेक्षता शब्द को  संविधान की उद्देशिका  में 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा लाया गया।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी एवं कांग्रेस पार्टी पर हमेसा से वोट की राजनीति करने का आरोप विरोधी पार्टियो द्वारा लगाया जाता रहा है। सत्ता पक्ष द्वारा समाज में एक नैराश्यपूर्ण वातावरण को तैयार करके इसका आरोप कांग्रेस पार्टी पर लगाया जाता रहा है। धर्मनिरेपक्षता शब्द को संविधान की उद्देशिका  में जोड़ने के उद्देश्य के पीछे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा  गाँधी के समय में हुए महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय  राजनैतिक बदलाव को नकारा नहीं जा सकता है। 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के फलस्वरूप भारत के पूर्व तथा पश्चिम में दो मुस्लिम देशों का निर्माण हो गया एवं स्वतः इंदिरा  जी की राष्ट्रीय स्तर पर छवि एक हिन्दू शासिका की थी। बीस  सालों तक इंदिरा  गाँधी के डाक्टर रहे के.पी. माथुर ने अपनी किताब ‘द अनसीन इंदिरा गाँधी’ में लिखा है कि इंदिरा जी ने प्रधानमंत्री निवास में एक छोटा सा कमरा पूजा के लिए बनवा रखा था इसमें राम, कृष्ण, क्राइस्ट, बुद्ध, रामकृष्ण परमहंश, अरविन्द आश्रम की माँ की तस्वीरे शामिल थी तथा इंदिरा जी हमेसा अपने गले में रूद्राक्ष की माला पहनती थी।

इन सब परिस्थितियों में देश के अन्दर जिस ताने बाने ने समाज को घेर रखा था उससे समाज में विभाजनकारी नैराश्यपूर्ण विचारों का जन्म होने लगा जिससे इंदिरा जी ने एक प्रबुद्ध शासिका की भाँति महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरेपक्षता एवं अखण्डता शब्द को जोड़ दिया परिणामस्वरूप देश की विभाजनकारी  शक्तियों का पतन किया जा सका। कांग्रेस के पूर्व के लोगों का विचार भी इस निर्णय के लिए जिम्मेदार रहा है, स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी धर्मनिरपेक्ष राज्य के पक्के हिमायती थे, धर्म को व्यक्ति का निजी मामला मानते थे, सभी धर्मो का और उनके मानने वालो का आदर करते थे।

इसी  प्रकार के विचार पंडित जवाहरलाल नेहरू के भी थे, नेहरू ने कहा है की धर्मनिरपेक्ष राज्य के अतिरिक्त कोई भी राज्य सभ्य नहीं हो सकता, यदि कोई व्यक्ति धर्म के नाम पर किसी अन्य व्यक्ति पर प्रहार करने के लिये हाँथ उठाने की कोशिश करेगा तो मै उससे अपने जिंदगी की आखिरी साँस तक सरकार के प्रमुख व उससे बाहर दोनों हैसियत से लडूंगा। पंडित नेहरू की बातों का समर्थन सरदार पटेल ने भी किया था। सरदार पटेल का मत था कि हमारा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, यहाँ हर एक मुसलमान को यह महसूस होना  चाहिए कि वह भारत  का नागरिक है और भारतीय होने के नाते उसका समान अधिकार है, यदि उसे ऐसा महसूस नहीं करा सके तो हम अपनी विरासत और देश के लायक नहीं हैं।सन 1948 में कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन में सरदार पटेल ने यह घोषणा की कि कांग्रेस और सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि भारत एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष देश होगा।

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का कहना था कि धर्म के लिए मै अपनी जान दे दूंगा, लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत मामला है राज्य का इससे कुछ लेना देना नहीं है, राज्य का काम सामाजिक कल्याण, संचार, विदेश सम्बन्ध, मुद्रा इत्यादि देखना है न कि आपका और हमारा धर्म, वह हर किसी का व्यक्तिगत मामला है। कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता  संकीर्ण धार्मिक विचारों को खत्म करने का प्रयास मात्र है। इसी  धार्मिक संकीर्णता की भर्त्सना स्वामी विवेकानन्द जी ने भी की है,  संकीर्णतावाद, कट्टरतावाद और उसके विभत्स उत्तराधिकारियों के धर्मोन्माद ने इस सुन्दर धरती पर बहुत दिनों तक राज किया है, उसने इस धरती को हिंसा से भर दिया है उसे बार-बार मानव रक्त से नहलाया, सभ्यता को नष्ट कर दिया तथा पूरे देश को निराशा के गर्त में ढ़केल दिया, यदि ये भयावह दानव नहीं होते तो मानव समाज ने जितनी प्रगति की उससे अधिक प्रगति की होती।

इन्हीं विभत्स धर्मोन्माद एवं संकीर्ण धार्मिक विचारों से राष्ट्र की सुरक्षा एवं अखण्डता  को अक्षुण रखने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा  गाँधी ने 42वें संविधान संशोधन के द्वारा उद्देशिका में धर्मनिरपेक्ष एवं अखण्डता शब्द को जोड़ा जो आज भी हमारे देश की एकता एवं सामजस्यपूर्ण राट्रवाद के लिए प्रासंगिक विचारों का स्रोत है।  पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के जन्मदिन के अवसर पर सोनिया गाँधी जी ने 30 अक्टूबर 2017 को कहा था कि प्रधानमंत्री के तौर पर उनका एक ही धर्म था वह भारतीयता थी,  उनके लिए सभी धर्म एवं उनके लोग बराबर थे, इन्ही विचारों में कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के मायने निहित है।

अपने पूर्व के प्रबुद्ध विचारों के पदचिन्हों पर कांग्रेस पार्टी आगे बढ़ रही है। धर्मनिरपेक्षता पर अपने विचार रखते हुए सोनिया गाँधी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता के बिना कोई भारतीयता और  कोई भारत नहीं हो सकता। धर्मनिरपेक्षता आदर्श से भी बढ़कर है और रहेगी, भारत जैसे विविधता वाले देश के लिये धर्मनिरपेक्षता एक अकाट्य जरुरत है। इन्हीं सम्पूर्ण विचारों को एकता के सूत्र में पिरोकर रखना, देश में सामंजस्यपूर्ण माहौल तैयार करना एवं किसी भी समाज या व्यक्ति से समानता का व्यवहार करना ही कांग्रेस के नजरिये में धर्मनिरपेक्षता है।

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