
निरंतर प्रयास और अपने लक्ष्य को पाने की चाह ने यहां तक पहुंचाया ।
हौसलों ने भरी है उड़ान, एक दिन सपने छूएंगे आसमान — दिलीप आर्य ब्यूरो खबर । मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसले से उड़ान होती है। आशय स्पष्ट है कि भले ही कितनी मुश्किलें क्यों न आएं पर इरादे मजबूत हों तो बड़ी से
हौसलों ने भरी है उड़ान, एक दिन सपने छूएंगे आसमान — दिलीप आर्य
ब्यूरो खबर ।
मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसले से उड़ान होती है। आशय स्पष्ट है कि भले ही कितनी मुश्किलें क्यों न आएं पर इरादे मजबूत हों तो बड़ी से बड़ी परेशानी का सामना किया जा सकता है। ऐसी ही कुछ कहनी दिलीप आर्या की है जो की उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के एक छोटे से गाँव अमौली से आकर मुंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई है।
यह एक गरीब परिवार से थे जहाँ उनके पिताजी फतेहपुर के अमौली गांव में रहकर राजमिस्त्री का काम करते थे। जब दिलीप आर्या 11 साल के थे तो इनके पिता की मृत्यु हो गई। “11 वर्ष की आयु में पिताजी के निधन हो जाने के बाद, इन्होने अपनी माँ के साथ खेतो के कामो मे हाथ बटाना शुरू किया ।
कुछ दिन बाद खेतो मे कर्यो के दौरान दिलीप छोटा – मोटा भी काम करना शुरू कर दिया था। बाद में, एक बेहतर जीवन यापन करने के लिए वह एक सिलाई की दुकान में भी काम करने लगे और साथ ही साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।” इसके बाद, कानपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ के पूर्व छात्र, दिलीप का सपना राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) में शामिल होना था,

जिससे वह दिल्ली चले गए। दिलीप आर्य कहते है की दिल्ली पहुंचने के बाद वह दिल्ली में एक स्थानीय समूह के साथ थिएटर मे काम करना शुरू कर दिये और कुछ समय के लिए वह एन •के • शर्मा समूह के साथ भी काम किये । बाद में, वह एनएसडी के लिए आवेदन किये और अंतिम दौर में चला गया जो कार्यशाला है।
जाने-माने अभिनेता पंकज त्रिपाठी और इनामुल हक कार्यशाला में उस समय मेरे समूह में ही थे” दिलीप साझा करता है। उन्होंने कहा कि”बीएनए वह जगह थी जिसने मुझे ऊंची उड़ान भरने के लिए पंख दिए। मैंने वहाँ के शिक्षकों से अभिनय की बारीकियों को सीखा । और फिर फिल्मों में आने का उनका सपना उन्हें मुंबई ले गया।
जो एमएक्स प्लेयर ने आश्रम 2 की सफलता के बाद अपनी अगली वेब-श्रृंखला जारी की है। ’बीहड़ का बागी’ नामक नई श्रृंखला में नवोदित अभिनेता दिलीप आर्य हैं, जो बुंदेलखंड के खूंखार डकैत शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ के प्रमुख चरित्र पर आधारित हैं। कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध यह वेब श्रृंखला बहुत सारे दर्शकों को आकर्षित करने में सक्षम रही है
और लोग न केवल कथा, बल्कि दिलीप के प्रदर्शन की सराहना भी कर रहे हैं। इस वेब सीरीज़ में नायक के रूप में उन्हें पहला ब्रेक मिला और अब दर्शकों द्वारा उनकी भूमिका को बहुत सराहा जा रहा है। ददुआ की भूमिका की अपनी तैयारियों के बारे में बात करते हुए, दिलीप आर्या कहते हैं,
की “तैयारी करने में मुझे लगभग चार साल लगे और मैंने चरित्र को और करीब से समझने के लिए बुंदेलखंड के आसपास भी काफी समय बिताया। मैंने बीहड में डाकुओं के साथ भी समय बिताया। क्योंकि भूमिका की बारीकियों को समझना था। इसके पहले भी शोले, पान सिंह तोमर, मेरा गाँव मेरा देश, सोनचिरैया और बैंडिट क्वीन जैसी डकैत पर आधारित फ़िल्में हिट रही हैं,
उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि यह सीरीज़ भी डिजिटल स्पेस में एक मानदंड बनेगी। ” बताते चलें कि यूपी में जन्मे इस अभिनेता के हाथों में अब और भी काम है लेकिन चल रहे कोविड -19 महामारी के कारण परियोजनाओं में देरी हो रही है। उन्होने कहाँ की “मुझे इतना प्यार और प्रशंसा देने के लिए मैं वास्तव में सभी का शुक्रगुजार हूं।
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