ज्वार की खेती हो रही विलुप्त, किसान भी कर रहे इससे किनारा /

कृषि विभाग नही मँगाता बीज, नही मिल पाता किसानों को लाभ । सरस राजपूत (रिपोर्टर ) भदोही । एक समय भदोही क्षेत्र में बड़े पैमाने पर ज्वार की खेती होती थी, लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों से किसान साल दर साल ज्वार की खेती से दूर होते जा रहे हैं | फसल तैयार होने में

कृषि विभाग नही मँगाता बीज, नही मिल पाता किसानों को लाभ ।

सरस राजपूत (रिपोर्टर )

भदोही ।

एक समय भदोही क्षेत्र में बड़े पैमाने पर ज्वार की खेती होती थी, लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों से किसान साल दर साल ज्वार की खेती से दूर होते जा रहे हैं | फसल तैयार होने में अधिक समय लगने की वजह से अब बहुत कम किसान इसकी खेती करते हैं |

रया के किसान राहुल सिंह की माने तो ज्वार की फसल पकने में एक लम्बा वक्त लगने के चलते रखवाली में आने वाली परेशानियों के कारण अब किसान ज्वार की खेती नही करते |

किसान हृदय नारायण पांडे ने बताया कि क्षेत्र में नीलगाय बहुतायत मात्रा में हैं जो ज्वार की फसलों को एकदम चट कर डालती थी , जिससे इस खेती से मन विचलित हो गया है |

उनका यह भी कहना है कि कृषि विभाग के अधिकारी ज्वार का बीज मंगाने में दिलचस्पी नहीं लेते, जिस कारण किसानों को इसका लाभ नही मिल पाता | लगभग डेढ़ दशक पूर्व तक कस्बाई इलाकों में ज्वार की खेती खूब होती थी |

खास तौर पर गंगा के सेमराध, गोपालपुर, बेरासपुर, केदारपुर, बिहरोजपुर, गुलौरी, नगरदह, इब्राहिमपुर, पुरवां, बारीपुर, सीतामढी, कलिकमवैया मे इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी | साथ ही अन्य ब्लाकों में किसान खरीफ के सीजन में फसल बोते थे |

इसका आटा बेहद पौष्टिक माना जाता है | वहीं ज्वार का तना व पत्ते अच्छा पशु आहार भी हैं | इन सबके बावजूद साल दर साल किसान ज्वार से दूर होते जा रहे हैं | ज्वार की फसल ढलानदार खेतों में बोयी जाती है या फिर जिन खेतों में अच्छी जल निकासी हो, वहां इसकी पैदावार खूब होती है |

कृषि विभाग के अधिकारी कहते हैं कि ज्वार के लिए बलुई दोमट व भारी मिट्टी बेहद उपयोगी होती है | आमतौर पर खरीफ सीजन से जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के दूसरे सप्ताह तक ज्वार की बुआई की जाती है |

एक हेक्टेयर खेत में 10 से 12 किलो ज्वार बोयी जाती है | इसके बाद फसल की रखवाली करना बेहद आवश्यक हो जाता है | ज्वार के भुट्टा निकलते वक्त तथा दाना भरते समय यदि खेत में नमी कम हो तो पानी की आवश्यकता रहती है |

यदि पानी न बरसे तो किसानों को फसल में सिचाई करनी चाहिए | चूंकि खरीफ सीजन की मुख्य फसल उर्द व मूंग को पकने में 100 से 110 दिनों का समय लगता है | ऐसे में किसान उर्द, मूंग अधिक बोते हैं |

उर्द, मूंग की कटाई होने के बाद ज्वार की फसल की रखवाली करना किसी बड़ी चुनौती से कम नही रहता | होता यह है कि यदि एक किसान ने ज्वार की फसल बोयी है तो आसपास के किसान उर्द, मूंग की फसल बोते हैं और समय से फसल काट लेते हैं |

ऐसे में जिस किसान ने ज्वार बोयी है, उसे कई दिनों तक अकेले ही अन्ना मवेशियों व नीलगायों से फसल की निगरानी करनी होती है | ऐसे में यह बेहद मुश्किल काम होता है | इसलिए किसान ज्वार की खेती से दूर होते जा रहे हैं , जो बेहद चिंता का विषय है |

ज्वार की खेती हो रही विलुप्त, किसान भी कर रहे इससे किनारा /
  • विलुप्त होती जा रही ज्वार

एक समय में भदोही के हर क्षेत्रों में ज्वार की फसल खूब होती थी, लेकिन अब साल दर साल किसान इससे दूर भाग रहे हैं | जिससे अब एक या दो प्रतिशत किसान ही यह फसल बोते हैं | स्पष्ट है कि ज्वार की फसल अब विलुप्त होती जा रही है |

  • ज्वार के आटे के व्यंजन

ज्वार के आटे के कई व्यंजन प्रसिद्ध हैं | खासतौर पर किसानों को चने व पालक की भाजी के साथ ज्वार की रोटियां खूब भाती हैं | इसके अलावा विभिन्न पर्वों पर ज्वार के आटे के पकवान पूड़ी, पुआ आदि बनाए जाते हैं | ज्वार का आटा बेहद पौष्टिक माना जाता है |

  • रोग और उपचार

ज्वार में मूलतः तना छेदक कीट और दीमक रोग लगता है | तना छेदक और दीमक के प्रकोप से नष्ट हो जाता है | दीमक भुट्टे को प्रभावित करता है | साथ ही तनों की जड़ों को भी कमजोर कर देता है |

इसकी रोकथाम के लिए कारबोराइल 50 प्रतिशत, घुलनशील चूर्ण को 1.25 ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500-700 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए |

  • विभागीय अधिकारियों की जुबानी

ज्वार की फसल की बुआई से किसानों के द्वारा दूरी बनाए जाने को लेकर कृषि विभाग से संबंधित प्रभारी सरकारी बीज भंडार के अधिकारीयों ने बताया कि लगभग पांच वर्षों से विभाग से ज्वार का बीज नही मिल पा रहा है| अब इसके बीज के लिए किसान भी नही आते हैं |

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