ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा में कितनी बड़ी तादाद में गरीब तबकों के बच्चे शिक्षा-व्यवस्था से हो रहें बाहर..!

कैसे और किस तरह से शिक्षा दे रहे हैं इससे किसी को किसी तरह का सरोकार नहीं..! अपनी असमर्थता में मुंह छिपाए हुए..! प्रदीप दुबे (रिपोर्टर ) कभी किसी ने सोचा भी नही था कि यह दौर भी देखने को मिलेगा तो वही इस दौर की बहुत बड़ी समस्या यह भी है जिससे सरकार, संस्था

कैसे और किस तरह से शिक्षा दे रहे हैं इससे किसी को किसी तरह का सरोकार नहीं..!

अपनी असमर्थता में मुंह छिपाए हुए..!

प्रदीप दुबे (रिपोर्टर )

कभी किसी ने सोचा भी नही था कि यह दौर भी देखने को मिलेगा तो वही इस दौर की बहुत बड़ी समस्या यह भी है जिससे सरकार, संस्था और समाज तीनों ही जुड़े हुए हैं और तीनों ही असहाय लगते हैं या अपनी असमर्थता में मुंह छिपाए हुए हैं! स्कूल, कॉलेज शिक्षा निदेशालय लगातार ई-शिक्षा पर जोर देते हुए इसे दुरुस्त करने का प्रयास कर रहा है!

पर परिणाम वही ‘ढाक के तीन पात’ निकल कर आ रहा है! एकाएक इतनी अधुनातन माध्यम से शिक्षा कैसे दी जा सकती है, जब हमारे स्कूल और कॉलेज बहुत पुरानी व्यवस्था के तहत ही चल रहे हैं।अधिकतर स्कूल और कॉलेज संसाधनहीन स्थिति में किसी तरह से परीक्षा व्यवस्था को पूरा कर लेते हैं और मान लिया जाता है कि स्कूल-कॉलेज चल रहे हैं।

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समय-समय पर सवालों का जवाब देकर कागजी कार्यवाही कर ली जाती है! व कैसे और किस तरह से शिक्षा दे रहे हैं, इससे किसी को किसी तरह का सरोकार नहीं है! तीनों ही जिम्मेदार आधारभूत कारणों तक की बात नहीं करना चाहते हैं! सरकार निजीकरण में विश्वास करती है!

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यों तो सब कुछ सामने है, लेकिन अध्ययनों में भी लगातार यह बताया जा रहा है कि ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा में कितनी बड़ी तादाद में गरीब तबकों के बच्चे शिक्षा-व्यवस्था से ही बाहर हो जाएंगे, लेकिन इन आंकड़ों से किसी को कोई मतलब नहीं है।

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सरकारी अधिकारी लीपापोती में माहिर हैं!और समाज का वह वर्ग जो स्कूल-कॉलेजों में जा रहा है, वह निम्न वर्ग से है, जिसकी चिंता सरकार को न कल थी, न आज है और न शायद कल होने वाली हैं। ऐसे में क्या शिक्षा!

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