आती नहीं है,बुलाई जाती है मौत

आती नहीं है,बुलाई जाती है मौत

रात को अच्छे-खासे थे लेकिन सुबह सोकर ही नहीं उठे 


स्वतंत्र प्रभात-


रात को अच्छे-खासे थे लेकिन सुबह सोकर ही नहीं उठे यानि सोते हुए ही चिरनिंद्रा में लीन हो गए .या गाते-गाते इतने तक   गए कि  अचानक दिल ने धड़कना बंद कर दिया और डाक्टर कुछ भी न कर सके.जैसे मशहूर गायक केके  के साथ हुआ .यानि मौत दबे पांव आयी और किसी को आहट तक नहीं हुई .लेकिन डाक्टर कहते हैं कि  ये मौतें आती नहीं हैं बल्कि उन्हें बुलाया जाता है .हर मौत अपने पीछे रहस्य छोड़ जाती है.


सत्ता संघर्ष में उलझा देश समाज की इस सबसे भयानक समस्या के प्रति न गंभीर है और न सोचने की उसे फुरसत है. इस मामले में न कोई राष्ट्रीय नीति है और न अभियान जबकि आज की सबसे बड़ी जरूरत ही यही है की हम देश की नौजवान पीढ़ी को कैसे अकाल मौत से बचाएं ? ऐसा क्या करें की मौत अयाचित तरीके से युवाओं को अपना शिकार न बनाये ?
गायक केके की आकस्मिक मौत भी उतना ही सन्न करती है जितनी कि ग्वालियर कि मनोज जेठवानी की .ऐसी मौतों कि बारे में देश कि हृदय रोग विशेषज्ञ कहते हैं  कि 50 साल से कम उम्र के करीब 75 फीसदी आबादी को दिल का दौरा पड़ने का खतरा है, ऐसे में दिल की जटिलताएं एक बड़ी बीमारी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। देश भर में  किए जा रहे विभिन्न  अध्ययनों से संकेत मिलता है कि 40 वर्ष से कम आयु के कम से कम 25 प्रतिशत भारतीयों को दिल का दौरा पड़ने या दिल से संबंधित किसी अन्य गंभीर जटिलता से पीड़ित होने का खतरा है; और यह जोखिम 40 से 50 वर्ष की आयु के बीच 50 प्रतिशत आबादी तक बढ़ सकता है।


भारत में युवा आबादी 35  फीसदी कि आसपास है. दुनिया कहती है कि  भारत कि पास सबसे बड़ी युवा आबादी है किन्तु दुर्भाग्य ये है कि  हम अपनी इस विपुल सम्पदा को न दिशा दे पा रहे हैं और न दशा  सुधार पा रहे हैं .हमारी युवा पीढ़ी आज बेरोजगारी,तनाव और नशे की शिकार है और यही सब विकार हैं जो उनकी जान की दुश्मन बने हुए हैं .नशे कि साथ ही अराजक जीवन शैली ने भी हमारी युवा पीढ़ी की उम्र को कम कर दिया है जबकि यदि इस पर सही ढंग से ध्यान दिया जाये तो भारत विश्वगुरु जब बनेगा तब बनेगा लेकिन विषय का युवा राष्ट्र पहले बन सकता है .


दुनिया जानती है कि  हम भारतीय ट्रांस फैट के अभ्यस्त उपभोक्ता हैं, और यह खराब जीवनशैली, अनियमित कामकाजी समय, शराब, धूम्रपान तंबाकू के साथ-साथ हृदय रोग का खतरा बढ़ाता है और ऐसे व्यक्ति अत्यधिक कमजोर होते है।बढ़ती उम्र को बाँधने की कोशिश और बुढ़ापे से बचने कि साथ ही हमेशा जवान दिखने की ललक भी जानलेवा साबित हो रही है .शरीर को प्राकर्तिक रूप से विकसित होने कि बजाय उसके ऊपर मशीनी तरीके से इतना जोर डाला जा रहा है की बेचारा चलते-चलते अचानक कभी भी जबाब दे देता है.


पिछले कुछ वर्षों में भारत में युवा पीढ़ी को फिट रहने का भूत सवार हुआ है और इसी भूत ने देश में जिम और प्रोटीन सप्लीमेंट का एक बड़ा कारोबार खड़ा कर दिया है .हमारे युवा रातों-रात अपनी देह को सुदर्शन और सुडौल  बनाने कि फेर में बजाय भोजन कि सप्लीमेंट पर निर्भर हो रहे हैं जो शरीर की मांसपेशियों   को जबरन तैयार कर रहा है .सप्लीमेंट अपना काम करता है लेकिन शरीर कि भीतर बनाया गया दिल काम बाढ़ की चपेट में आ जाता है और अक्सर हार मान लेता है .हमारे युवा मैदान में पसीना बहाने कि बजाय जिम में पसीना बहाते हैं .पहले मांसपेशियां बनाते हैं और फिर उनका दुरूपयोग करने कि लिए नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं .


फ़िल्मी दुनिया से लेकर कलाकारों की दुनिया तक ही नहीं बल्कि अब आम दुनिया में नौजवान पीढ़ी कि ऊपर जान का खतरा मंडरा रहा है. प्राकृतिक रूप से जीने कि बजाय काल्पनिक रूप से जीने की होड़ में कभी सुशांत राजपूत अचानक चला जाता है तो कभी कोई और .कितनों कि नाम गिनाये जाएँ ? अब बहुत कम हैं जो अपनी पूरी उम्र सहजता से जी पा रहे हैं .
 इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, अवेयर ग्लेनीगल्स ग्लोबल हॉस्पिटल कि वरिष्ठ परामर्शदाता राजीव गर्ग का मानना है कि कुछ सरल लेकिन अत्यधिक प्रभावी कदम संभवत: युवा भारतीयों में दिल के दौरे के जोखिम को कम कर सकते हैं। भोजन की आदतों में नियमित रूप और संयम सबसे सरल लेकिन शक्तिशाली आदतें हैं, जिन्हें लोग अपने दिल के जोखिम को कम करने के लिए कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का शरीर अलग होता है और तनाव को कम करने की एक अलग क्षमता होती है लेकिन उचित जीवन शैली को बनाए रखना और शारीरिक रूप से सक्रिय रहना है। इस जोखिम को कम करने के लिए सबसे अच्छा हो सकता है।


दुर्भाग्य की बात ये है कि हम दिल द्वारा दी जाने वाली चेतावनियों   और संकेतों को अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं . सांस फूलना, सीने में दर्द, अत्यधिक पसीना, चक्कर आना दिल कि बीमार होने कि प्रारंभिक लक्षण हैं लेकिन हम इन्हें गंभीरता से नहीं लेते , समय पर चिकित्सा शुरू कर नहीं करते .पहले जो बीमारियां अनुवांशिक थीं उन्हें अब हम खुद पैदा कर रहे हैं .कुछ मानसिक तनाव हर रोज सरकार देती है तो कुछ हम खुद न्यौत लेते हैं .न पूरा खाते हैं और न पूरा सोते हैं.क्षमता से ज्यादा काम कर ज्यादा से ज्यादा कमा लेने की मजबूरी भी दिल कि साथ खिलवाड़ करती है .लेकिन इसे रोके कौन ?


विश्व स्वास्थ्य संगठन  के मुताबिक, कार्डिवैस्क्युलर डिसीज यानि दिल से जुड़ी बीमारियां दुनियाभर में मौतों के बड़े कारणों में से एक हैं. आंकड़े बताते हैं कि  5 में से 4 मौतें हार्ट अटैक और स्ट्रोक्स की वजह से होती हैं.दिल कि रोगों की एक वजह प्रदूषण भी है ,साल में कोई 24  लाख लोग प्रदूषण की वजह से अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं ,लेकिन हम इसे राम की लीला  कहकर खामोश हो जाते हैं .हमारे यहां दिल को बचाने का इंतजाम न घरों में हैं और न अस्पतालों में और जहाँ है भी वहां तक आम मरीज समय पर पहुंच नहीं पाता और मान लीजिये की पहुँच भी जाये तो इलाज कि लिए उसके पास पैसे नहीं होते .


केके हों या सिद्धार्थ शुक्ला इन्हें और इनकी पीढ़ी को बचाना बहुत जरूरी है .ये जानना जरूरी है कि अराजक जीवन युवा पीढ़ी को पौरुषहीन बना रहा है .नशा इस पौरुषहीनता की बैशाखी बनता जरूर है लेकिन अक्सर इसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है ..हमारे यहां केवल पंजाब ही नहीं उड़ा बल्कि ज्यादातर प्रदेश नशे से उड़ रहे हैं .इसलिए जागो ! युवा पीढ़ी को बजरंगी या जिहादी बनाने से रोको .
@ राकेश अचल 

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