थारू जनजाति के बच्चों के भविष्य से खुला खिलवाड़
गुरु जी नदारद, रसोई गैस घोटाला उजागर, जंगल की लकड़ी पर पक रहा मध्यान्ह भोजन
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पचपेड़वा (बलरामपुर)। सरकार भले ही मध्यान्ह भोजन योजना को बच्चों के पोषण और शिक्षा से जोड़कर उनकी सेहत व भविष्य संवारने का दावा करती हो, लेकिन शिक्षा क्षेत्र पचपेड़वा अंतर्गत भगवानपुर कोड़र के मजरे स्थित प्राथमिक विद्यालय सोनपुर में यह योजना कागजों तक ही सीमित नजर आ रही है। यहां की जमीनी हकीकत सरकारी दावों की पोल खोलने के लिए काफी है।
विद्यालय में तैनात गुरु जी अक्सर गायब रहते हैं। शिक्षण कार्य पूरी तरह प्रभावित है और बच्चों को पढ़ाने वाला कोई जिम्मेदार व्यक्ति नियमित रूप से मौजूद नहीं रहता। वहीं दूसरी ओर मध्यान्ह भोजन योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। स्थिति यह है कि विद्यालय में खाना बनाने वाली रसोईयां रसोई गैस के अभाव में अपने घरों से या जंगल से लकड़ी लाकर बच्चों का भोजन बनाने को मजबूर हैं।

रसोई गैस का पैसा कहां गया?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब सरकार द्वारा मध्यान्ह भोजन के लिए रसोई गैस का अलग से भुगतान किया जाता है, तो फिर गैस सिलेंडर क्यों नहीं है? स्थानीय सूत्रों के अनुसार गैस के नाम पर मिलने वाली धनराशि का बंदरबांट कर लिया जाता है। इसका खामियाजा थारू जनजाति के मासूम बच्चे भुगत रहे हैं, जिन्हें धुएं में बना भोजन खाने को मजबूर किया जा रहा है।
स्वास्थ्य और सुरक्षा दोनों से खिलवाड़
लकड़ी पर खाना बनाना न सिर्फ सरकारी नियमों का उल्लंघन है, बल्कि इससे बच्चों और रसोईयों के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। धुएं से आंखों और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा बना रहता है। सवाल यह भी है कि यदि जंगल से लकड़ी लाने के दौरान कोई हादसा हो जाए, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?

थारू जनजाति के बच्चों के साथ दोहरा अन्याय
पहले ही सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े थारू जनजाति के बच्चे शिक्षा के सहारे आगे बढ़ने की उम्मीद करते हैं, लेकिन इस तरह की लापरवाही और भ्रष्टाचार उनके सपनों को कुचल रहा है।
विद्यालय में न तो नियमित पढ़ाई हो रही है और न ही गुणवत्तापूर्ण, पौष्टिक भोजन मिल पा रहा है।
प्रशासनिक चुप्पी पर सवाल
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस संबंध में कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन अब तक न तो कोई ठोस जांच हुई और न ही जिम्मेदारों पर कार्रवाई। यह सवाल खड़ा होता है कि खंड शिक्षा अधिकारी, बेसिक शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन आखिर किस दबाव में चुप्पी साधे हुए हैं?
जांच नहीं हुई तो आंदोलन की चेतावनी
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि इस पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कर दोषी शिक्षकों और कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो वे धरना-प्रदर्शन और आंदोलन के लिए मजबूर होंगे। अब निगाहें जिला प्रशासन पर टिकी हैं कि वह इस गंभीर मामले में कब संज्ञान लेता है। क्योंकि यह सिर्फ एक विद्यालय की बदहाली की कहानी नहीं, बल्कि थारू जनजाति के बच्चों के भविष्य पर लग रहा सीधा प्रश्नचिन्ह है। मध्यान्ह भोजन योजना में भ्रष्टाचार, शिक्षा व्यवस्था पर करारा तमाचा
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