मिर्ज़ा ट्रेनर्स बंथर में संचालित केलको,पेप्सिको तथा प्राइम केमिकल,दीपाली केमिकल,अभिषेक मल्होत्रा,हाजी नसीम खाद फैला रही भयंकर वायु प्रदूषण
स्वतंत्र प्रभात नसीर ख़ान उन्नाव।
नगर के तीन छोरो पर बसी चमड़ा तथा केमिकल इकाईयांे द्वारा फैलाये जा रहे जल तथा वायु प्रदूषण से नगर का वातावरण इतना दूषित हो चुका है कि लोगों का खाना, पानी तथा सांस लेना भी दूभर हो गया है। सबसे अधिक दुष्प्रभाव इन औद्योगिक इकाईयों के आस-पास बसे गांवो के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस ओर से पूरी तरह बेखबर केवल अवैध वसूली में मस्त है।
ज्ञात हो कि नगर के तीन छोरो दहीचैकी, बंथर तथा अकरमपुर में स्थापित चमड़ा तथा केमिकल इकाईयां नगर के पर्यावरण को दिन-प्रतिदिन क्षति पहुंचा रही हैं। वर्तमान में औद्योगिक क्षेत्र बंथर जहां अब तक हरी-भरी फसलें, विशालकाय फलदार पेड़ पर्यावरण संतुलन बनाये थे, इन औद्योगिक इकाईयो द्वारा फैलाये जा रहे प्रदूषण से नष्ट होते जा रहे हैं। हालांकिन इन फैक्ट्रियों के लिए मानक निर्धारित किये गये हैं जो पर्यावरण को संरक्षित रखने में सहायक हैं परन्तु यह फैक्ट्रियां कभी भी इन मानको का पालन नहीं करती हैं। सूत्रो की माने तो लखनऊ-कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग के औद्योगिक क्षेत्र बंथर स्थित केलको ट्रेनरी, पेप्सिको टेनरी तथा मिर्ज़ा ट्रेनर्स,अभिषेक मल्होत्रा,जैसी नामी कंपनियां आदेशों को दर-किनार कर मनमानी की जा रही है।
भोरपहर तथा देरशाम इन फैक्ट्रियो की चिमनियो से निकलने वाला जहरीला धुंआ वातावरण में भयंकर वायु प्रदूषण फैला रहा है। इस प्रदूषित धुंवे से उड़ने वाले कण तथा राख आसपास क्षेत्र के हरे-भरे पेड़ो तथा फसलो पर पड़कर उन्हें नष्ट कर रही है तो दूसरी ओर इन्हीं फैक्ट्रियों द्वारा अपना प्रदूषित केमिकल युक्त जहरीला पानी यूपीएसआईडीसी के नालो के माध्यम से सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। हालांकि इस जल के शोधन के लिए ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट भी बना है लेकिन वहां पानी फिल्टर करने के बदले अच्छी-खासी रकम देनी पड़ती है जिसके चलते यह फैक्ट्रियां बिना शोधित किये ही जल को सीधे नाले के माध्यम से लोन नदी और गंगा में बहा देती हैं।
जिसके चलते केन्द्र सरकार की नमामि गंगे योजना पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। आलम यह है कि यह जहरीला पानी जिन-जिन रास्तो से होकर गुजरता है वहां आसपास खेतो की कृषि योग्य भूमि उसरीली हो गयी है तथा यह पानी पीने वाले जानवर भयंकर बीमारियांे की चपेट में आकर असमय मौत के मुंह में समा रहे हैं लेकिन अत्याधिक धन कमाने के लालच में यह फैक्ट्री स्वामी इतने अंधे हो चुके हैं कि उन्हें आम जनमानस पर पड़ रहे इस दुष्प्रभाव से कोई मतलब नहीं है। वहीं क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस ओर से पूरी तरह बेखबर है या यूं कहें कि सबकुछ जानकर भी मौन है। सूत्रो की माने तो अपनी इस मनमानी के बदले यह फैक्ट्री मालिकान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में मोटी रकम हर माह पहुंचाते हैं। जिसके चलते इनपर कोई कार्यवाही नहीं होती लेकिन यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यह चमड़ा तथा केमिकल इकाईयां शहर को रेगिस्तान में तब्दील कर देंगी।
तीन दशको में बदली भूगर्भ जल की तस्वीर
उन्नाव। करीब तीन दशक पूर्व नगर व आसपास क्षेत्र का पर्यावरण तथा जल इतना स्वच्छ था कि लोग नहरो का पानी भी पी लेते थे लेकिन जैसे-जैसे औद्योगिक इकाईयो ने नगर के छोरो पर कब्जा कर अपनी मनमानी शुरू की, जिले का भूगर्भ जल प्रदूषित होता गया और आज यह आलम है कि प्रथम व द्वितीय स्टेटा तक भूगर्भ जल इतना प्रदूषित हो चुका है कि पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं बचा है।
भूगर्भ जल संरक्षण के लिए अधिकांश फैक्ट्रियों में पाइप पड़े हैं ताकि वर्षा का जल इनके माध्यम से भूगर्भ में पहुंच सके लेकिन इन पाइपो से वर्षा का नहीं प्रदूषित जल तथा बूचड़खानो से जानवरो का खून भूगर्भ में पहुंचाया जा रहा है इसी का दुष्परिणाम है कि आज नगर के हर घर में आर0ओ0 अनिवार्य हो गया है। निजी हैण्डपम्प तो दूर इण्डिया मार्का तथा समर्सिबल का जल भी पीने योग्य नहीं बचा है।