सरकारी मानकों को ताख पर रखकर मनमानी तरीके से अनियमितता से भरपूर शौचालयों का निर्माण कर रहे हैं ठेकेदार

सरकारी मानकों को ताख पर रखकर मनमानी तरीके से अनियमितता से भरपूर शौचालयों का निर्माण कर रहे हैं ठेकेदार

स्वतन्त्र प्रभात, अम्बेडकरनगर नहीं रह गया है कोई अंकुश, शिकायतों के बावजूद उसी ठेकेदार को पुनः दे दिया जाता है ठेका सरकारी अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण सबसे बड़ी दुर्गति तो उन बच्चों की है जो प्राथमिक विद्यालयों के भरोसे भारत के कर्णधार बनने की कोशिश में लगे हुए हैं। भारत के आजाद

 

स्वतन्त्र प्रभात, अम्बेडकरनगर

नहीं रह गया है कोई अंकुश, शिकायतों के बावजूद उसी ठेकेदार को पुनः दे दिया जाता है ठेका

 

सरकारी अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण सबसे बड़ी दुर्गति तो उन बच्चों की है जो प्राथमिक विद्यालयों के भरोसे भारत के कर्णधार बनने की कोशिश में लगे हुए हैं। भारत के आजाद होने के बाद भी ऐसी दुर्गति कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा। देश के भविष्य बच्चे व विकलांग बच्चों के लिए बनाये जाने वाले शौचालय में भी भारी अनियमितता बरती गई है। यह स्थिति विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में है। तमाम शिकायतों के बाद भी कुछ निस्तारण नहीं होता है। यदि कोई हिम्मत करके ऊपर तक शिकायत करता है तो अधिकारी उल्टी-सीधी रिपोर्ट देकर सरकार को गुमराह करने का कार्य बखूबी निभाते हैं।

इस संबंध में कटेहरी व अकबरपुर के विकास खंड अधिकारी अनुराग सिंह ने बातचीत में बताया कि जो भी शिकायतें मेरी संज्ञान में आई हैं उन समस्याओं को दूर करने का भरपूर प्रयास किया गया है और कुछ जगह पर अनियमितता से बन रहे शौचालय को गिरवा कर पुनः नए सिरे से बनवाने का कार्य कराया गया है। जिसकी शिकायत नहीं पहुंची वहीं पर भले ही कुछ गड़बड़ी हो।

इस बाबत जानकारी प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र प्रभात की टीम ने कई प्राथमिक विद्यालयों का दौरा किया तो वहां निर्माण कार्यों में हो रही अनियमितता का पता चला। जिस स्थान पर खंड विकास अधिकारी ने शिकायत पाई वहां उनके द्वारा सुधार करने का प्रयास किया गया है परन्तु बाकी जगहों पर भारी अनियमितता की गई है और जल्दीबाजी में बनाये जा रहे शौचालय का रंगरोगन करके चमका दिया गया है। जिसमें सेक्रेटरी और प्रधान की अहम भूमिका है। यह दोनों ही शासन और प्रशासन को गुमराह करने का कार्य किया है। इसमें प्रशासन भी कम दोषी नहीं है अधिकारीगण अपने चेंबर से निकलने में अपनी बेइज्जती महसूस करते हैं। वे स्वयं जांच न कर उसी व्यक्ति से जांच करवा देते हैं जो उसमें दोषी है। अधिकारी गण भी स्वयं बाहर न निकल कर सरकार की महत्वपूर्ण परियोजना को धूल धूसरित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

तमाम शौचालयों के दरवाजे नहीं खुल रहे हैं और न ही तमाम जगहों पर सीटें ही बैठी हैं जहां सब कुछ ठीक-ठाक भी बना है वहां मैटेरियल में भारी अनियमितता बरती गई है। कमीशन खोरी के चक्कर में जैसे बिना जांच परख के ही भुगतान भी कर दिया जाता है। ऐसे में सरकार को चाहिए की स्वच्छ वातावरण में ईमानदार अधिकारियों से जांच कराकर वास्तविक रूप से सरकारी योजना कहां तक सफल हुई यह जानना चाहिए। नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। जिससे कोई भी योजना पूर्ण रूप से धरातल पर टिक नहीं पाती है। गांव क्षेत्र में यहां तक देखने को मिलता है कि तमाम शौचालयौ में उपली कंडा व लकड़ी रखी गई है। दीवार खड़ी करके पेमेंट करवा लिया गया और शौचालय नदारद है। इस तरह स्वच्छ भारत निर्मल भारत की यह परियोजना पूर्ण रूप से परिलक्षित नहीं हो पा रही है। लगता है कि देश की चिंता किसी को नहीं है बस केवल अपनी जेब की चिंता है।

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