
हिंदी का रुप अनेक है लेकिन राज काज की भाषा सरल होनी चाहिए तभी हिंदी और देश का विकास होगा। हरिश्चंद्र
हिंदी का रुप अनेक है लेकिन राज काज की भाषा सरल होनी चाहिए तभी हिंदी और देश का विकास होगा। हरिश्चंद्र
विश्व के अनेक विकसित देशों में उनकी अपनी ही भाषा में कामकाज होता है।
इफको में हिंदी सप्ताह का समापन।
स्वतंत्र प्रभात प्रयागराज ब्यूरो।
इफको में हिंदी सप्ताह के समापन समारोह में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश महालेखाकार केपूर्व वरिष्ठ लेखा अधिकारी हरिश्चंद् पांडेय ने कहा कि हिंदी भाषा का रूप अनेक जरूर है लेकिन राज काज की भाषा सरल होनी चाहिए जो सरल और सब की समझने योग्य होना चाहिए जिससे उन्हें जवाब देने में सहूलियत हो सके ।तभी देश और और हिंदी का विकास संभव है।
श्री पांडे ने कहा आज हिंदी जिस मुकाम तक पहुंची है उसका संघर्ष का लंबा इतिहास हैं। वैसे तो हिंदी हमारी दूध बो ली भाषा है ।इसमें लिखना पढ़ना ओढ़ना बिछाना सब है कुछ सीखना नहीं होता है। लेकिन यदि तुलसी की भाषा देखेंगे तो अवधी थी मीरा की राजस्थानी बुंदेल की बुंदेल खंडी तथा अन्य प्रदेशों मेंहिंदी भाषा अलग रूप में दिखाई देगी। इससे हिंदी की एक निश्चित पहचान नहीं थी ।
अशोक सम्राटकलिंग युद्ध के बाद बड़े-बड़े शिलालेख लिखवाया वह पाली भाषा में थी 600 वर्ष बाद समुद्र गुप्त संस्कृत भाषा में राजपाट शुरू करवाया मुगल काल में जहांगीर ने अकबर के किले में अशोका स्तंभ को कौशांबी से ले आकर स्थापित कर दिया। और वहां पर राज काज कैसे हो ना चाहिए जनता से व्यवहार कैसे करना चाहिए अरबी भाषा में करा दी। अंग्रेज अपना सारा कार्य अंग्रेजी में।लेकिन कचहरी में फारसी में होते थे। पहली बार 1998 में मदनमोहन मालवीय 60 हजार लोगो का हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन बंगाल के गवर्नर को दिय और भाषा बदलने की मांग की ।जिसे गांव का आम आदमी भी वकील की भाषा समझ सकेउस समय के गवर्नर ने 18 99 वे कचहरी का कामकाज हिंदी भाषा में करने के लिए निर्देश दिया। कांग्रेस की स्थापना के बाद गांधीजी बिनो वा भावे मालवीय जी तिलक अथवा सुभाष बोस सभी लोगों ने पूरे देश में आजादी की लडाई के लिए एक भाषा अपनाने के लिए जोर दिया जिससे आजादी की लडाई का स्लोगन आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है तुम मुझे खून दो हम तुम्हे आजादी देगे आदि नारे और स्लोगन हिंदी में लिखे गए। इस प्रकार प्रकार हिंदी को एक राजनीतिक भाषा मिली।
श्री पांडे ने कहा कि आजादी की लडाई मैं हिंदी भाषा का बहुत योगदान है इसके प्रचार प्रसार में हिंदी सिनेमा टीवी हिंदी साहित्य सम्मेलन काफी अच्छा प्रयास किया। औरविश्व में फैलाया। इन सभी का परिणाम रहा की 1949 में 14 सितंबर को इसे राजभाषा की रूप में मानयता दी गई ।
श्री पांडे ने कहा कुराज भाषा राज काज की भाषा है। सभी दफ्तर के कामकाज अधिक से अधिक हिंदी भाषा में होनी चाहिए ।जिससे कि जिसके ऊपर या नीचे वाले उसे समझने में आसानी हो और उसका वह जवाब दे सके। तभी राजभाषा का विकाश पूरी देश विश्व में हो सकता है।
इकाई प्रमुख और वरिष्ठ कार्यकारी निदेशक संजय कुदेशिया ने कहा कि अमेरिका जैसे विकसित देश में उनकी अपनी भाषा में कामकाज होता है ।और उसको समझने के लिए ट्रांसलेट करने की जरुरत पड़ती है। अनेक अन्य देशो में भी उनकी निश्चित भाषा है जो सरकारी कामकाज में प्रयोग की जाती हैं। हमे भी हिंदी में ही कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए। यह कार्यक्रम हिंदी में काम करने की प्रेरणा और जागरूक करेगा। उन्होंने इस अवसर पर छोटी-छोटी बच्चों के द्वारा हिंदी में गाए गीत पर प्रसन्नता व्यक्त की।
वरिष्ठ महाप्रबंधक गिरधर मिस्र नेकहा कि दुनिया का विकसित देश जर्मनी जर्मन भाषा मे व्यापार करता है और सारा काम काज जर्मनी जैसी क्लिस्ट भाषा में किया जाता है। चीन और रूस जैसे देश सारा व्यापार और काम-काज अपनी भाषा में करते हैं लेकिन हमारा देश अभी इस मामले में काफी पीछे हैं। हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए और अपनाने में कतई शर्म नहीं करनी चाहिए ।तभी देश का विकाश हो सकता हैं।
सयुक्त महाप्रबंधक संजय वैश्य ने इस अवसर पर आगंतुओं का स्वागत किया और ऐसे कार्यक्रमों को करते रहने की सलाह दी।
कार्यक्रम का संचालन बहुत ही सारगर्भित तरीके से हिंदी समिति के अध्यक्ष एसके सिंह ने करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य के विकास और साहित्यकारों को सम्मान देने की परंपरा की सोच प्रबन्ध निदेशक डॉक्टर उदय शंकर अवस्थी की प्रेरणा से इफको में होता है। उनकी ही सोच का परिणाम है हिंदी की सेवा करने वाले साहित्यकारों के लिए महान साहित्यकार श्री लाल शुक्ल के स्मृति में हर साल समारोह का आयोजन करते हैं ।
इस अवसर घीया नगर की महिलाएं बच्चे तथा बड़ी संख्या में कर्मचारी उपस्थित थे ।अधिकारीसंघ के अध्यक्ष संजय मिश्र कर्मचारी संघ के शालिग्राम संपदा अधिकारी पदमाकर त्रिपाठी तथा अनेक सयुक्त महाप्रबंधक समारोह में मौजूद थे।
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