सरकारी खजाने पर बोझ सांसद विधायकों के वेतन में भारी वृद्धि
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एक समय था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री अपनी पत्नी लालता शास्त्री से अपनी धोती को पुरानी हो जाने पर तुरपाई करवा कर पहन लेते थे लेकिन देश के नागरिकों के टैक्स से आए धन का एक पैसा भी अपने फिजूलखर्ची के लिए लेना पाप समझते थे। इतना ही नहीं वह अपने कपड़े धोने प्रेस करने जैसे घरेलू कार्य के लिए भी पत्नी की मदद लेते थे और सरकारी स्टाफ का निजी घरेलू काम काज मे इस्तेमाल नहीं करते थे लेकिन आज हालात बदल चुके हैं हमारे जन प्रतिनिधि अपना अधिकार और हक मान कर सरकारी धन को खसोटने में लगे हुए हैं अधिकाधिक वेतन वृद्धि यात्रा व दूसरे भत्ते और विदेश यात्रा पर फिजूलखर्ची कर कर्ज में डूबते देश को आर्थिक नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं । पहले सेवा के लिए लोग राजनीति में आते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है समय बीतने के साथ-साथ आज हमारे जनप्रतिनिधि कथित सेवा की पूरी कीमत वसूली करने की कोशिश कर रहे हैं, इसका सबसे ताजा उदाहरण ओडिशा विधानसभा द्वारा पारित विधेयक है।
ओडिशा विधानसभा ने मंगलवार को अपने सदस्यों का मासिक वेतन तीन गुना से अधिक बढ़ाकर 1.11 लाख रुपये से 3.45 लाख रुपये कर दिया है, जो देश में जनप्रतिनिधियों को मिलने वाले सबसे अधिक सैलरी स्ट्रक्चर में से एक होगा. संसदीय कार्य मंत्री मुकेश महालिंग ने बताया कि 17वीं विधानसभा के गठन (जून 2024) से यह संशोधित वेतन प्रभावी होगा. इन संशोधनों के लिए सदन ने सर्वसम्मति से चार विधेयक पारित किए।
मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और पूर्व विधायकों की पेंशन में भी लगभग तीन गुना वृद्धि की गई है. विधेयकों में यह भी प्रावधान है कि किसी भी वर्तमान विधायक की मृत्यु पर उसके परिवार को 25 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाएगी. साथ ही हर पांच वर्ष में वेतन, भत्ते और पेंशन में वृद्धि का प्रावधान भी शामिल है. एक विधेयक यह भी अनुमति देता है कि भविष्य में ऐसी बढ़ोतरी अध्यादेश के माध्यम से भी की जा सकेगी। इससे ओडिशा के विधायक देश में सबसे अधिक वेतन पाने वाले बन जाएंगे। उन्हें मिलने वाली रकम केरल, पंजाब, सिक्किम और गोवा के विधायकों के संयुक्त मासिक वेतन के बराबर और एक दर्जन राज्यों की प्रति व्यक्ति आय के दोगुना से अधिक हो जाएगी।
उनका मूल मासिक वेतन 35,000 रुपये से बढ़कर लगभग 90,000 रुपये हो जाएगा। पूर्व विधायकों को पेंशन के रूप में 1.20 लाख रुपये मिलने वाले हैं। 10 दिसंबर को राज्य विधान सभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन यह विधेयक सर्वसम्मति से पारित हो गया। संसदीय कार्य मंत्री मुकेश महालिंग ने कहा कि आठ साल के अंतराल के बाद हुई वेतन वृद्धि में मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा गया है।
मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी को लिखे एक पत्र में विपक्ष के नेता नवीन पटनायक ने कहा कि वह अपने वेतन एवं भत्तों में हई वृद्धि 'राज्य के गरीब लोगों के कल्याण के लिए' छोड़ देंगे। गौरतलब है कि असम, हिमाचल प्रदेश, गोवा, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान और दिल्ली सहित कई राज्यों ने या तो समितियों का गठन किया है या विधायकों के वेतन बढ़ाने के प्रस्ताव पेश किए हैं। गोवा जैसे कुछ राज्यों ने वेतन बढ़ाने से परहेज किया है मगर भत्तों में जरूर इजाफा किया है। विशेषज्ञों ने कहा कि ओडिशा का फैसला इन राज्यों के लिए भी विधायकों का वेतन बढ़ाने का रास्ता साफ कर सकता है।
अब आपको जानकारी देते हैं ओडिशा के बाद तेलंगाना (लगभग 2.7 लाख रुपये), महाराष्ट्र (2.6 लाख रुपये), मणिपुर (2.5 लाख रुपये) और उत्तर प्रदेश (2.4 लाख रुपये) इसमें आगे हैं। नौ राज्यों की विधान सभाओं में विधायक 2 लाख रुपये प्रति माह से अधिक वेतन लेते हैं जबकि 17 राज्यों में वेतन 1 से 2 लाख रुपये के बीच है। केरल के विधायकों का वेतन लगभग 70,000 रुपये प्रति माह है जो देश में सबसे कम है। इसके बाद पंजाब (84,000 रुपये) और सिक्किम, गोवा और दिल्ली आते हैं जहां वेतन 1 लाख रुपये से थोड़े कम हैं। प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से वेतन में यह बढ़ोतरी मेल नहीं खाती है।
मसलन ओडिशा की प्रति व्यक्ति आय लगभग 1.6 लाख रुपये है जो राष्ट्रीय औसत से थोड़ा ऊपर है मगर राज्य रैंकिंग में निचले पायदान पर है। सिक्किम देश का सबसे अमीर राज्य है जहां प्रति व्यक्ति आय लगभग 5.8 लाख रुपये है। वहां विधायकों को लगभग 90,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है। इस रैंकिंग में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले गोवा और दिल्ली भी विधायकों को अधिक वेतन देने वालों में शुमार नहीं हैं वहीं, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गरीब राज्य विधायकों को अपेक्षाकृत अधिक वेतन देते हैं।
मध्यप्रदेश में विधायकों और अन्य माननीय पदाधिकारियों की सैलरी बढ़ाने की तैयारी पूरी हो चुकी है. सरकार ने उनके वेतन और भत्तों में बदलाव करने का फैसला लिया है, जिससे राज्य के सभी चुने हुए प्रतिनिधियों की आय में बड़ा इजाफा होगामध्यप्रदेश के विधायकों के वेतन में अब 60 हजार रुपए की बढ़ोतरी की जा रही है. पहले उन्हें जो वेतन मिल रहा था, उसमें बढ़ोतरी के बाद उनकी नई सैलरी 1 लाख 70 हजार रुपए प्रति माह हो जाएगी. यह बढ़ोतरी विधायकों को मिलने वाले वेतन, भत्तों और सुविधाओं को ध्यान में रखकर की गई है।
सरकार ने न केवल विधायकों की सैलरी बढ़ाई है, बल्कि पूर्व विधायकों के पेंशन भत्ते में भी वृद्धि की गई है. पहले उन्हें जो राशि मिलती थी, अब उसे बढ़ाकर 58 हजार रुपए प्रति माह करने पर सहमति बन चुकी है.
गौरतलब है कि विधायक उन विधेयकों पर मतदान करते हैं जो उनके वेतन-भत्तों में इजाफा करते हैं। यह कवायद अमूमन एक समिति की सिफारिशों के बाद शुरू हो जाती है। मूल वेतन के अलावा उन्हें कार्यालय और निर्वाचन क्षेत्र के खर्चों के लिए भत्ते, निःशुल्क आवास सुविधा, यात्रा रियायतें और बैठकों में भाग लेने के लिए दैनिक भत्ते भी मिलते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर सांसदों के वेतन में मार्च में 24 प्रतिशत वृद्धि की गई जिससे 1 अप्रैल 2023 से उनका मासिक वेतन लगभग 1.24 लाख रुपये हो गया है। यह बढ़ोतरी वित्त अधिनियम, 2018 में पेश किए गए संशोधनों बाद हुआ जिनके तहत सांसदों के वेतन को लागत मुद्रास्फीति सूचकांक के माध्यम से मुद्रास्फीति से जोड़ा गया और प्रत्येक पांच वर्षों में इसमें संशोधन अनिवार्य किया गया।
लोकसभा के पूर्व सचिव पी डी टी आचार्य अनुसार विधायकों के वेतन के लिए कोई एक समान या अनिवार्य मानदंड नहीं है। उन्होंने कहा कि संसद की तरह प्रत्येक विधान सभा के पास अपने सदस्यों के वेतन तय करने का अधिकार है। आम तौर पर थोड़ा बहुत विरोध होता है मगर ऐसे संशोधन सर्वसम्मति से पारित हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय आर्थिक स्थितियों और व्यापक वेतन संरचनाओं पर विचार किया जाना चाहिए।
संसद हो या विधानसभाएं वहां मुद्दों को लेकर जब बहस या चर्चा शुरू होती है तो उस दौरान पक्ष और विपक्ष जिस तरह का व्यवहार करते हैं उसको देखकर कई बार तो जनसाधारण भी शर्मसार हो जाता है। लेकिन जब अपने वेतन और भत्ता को बढ़ाने का प्रस्ताव आये तो वह सर्वसम्मति से पारित होता है। यह बदलाव की बयार है जिसमें सेवा की कम और सुविधा व वेतन वसूली की भावना शीर्ष पर है अब देश के जनता से चुने नुमाइंदे घर फूंक तमाशा देखने का जोखिम नहीं उठाते बल्कि सरकारी सुविधाओं का भरपूर दोहन कर अधिकाधिक सुविधा व विलासिता पूर्ण जीवन जीने की अपेक्षा रखते हैं वही येन-केन प्रकरेण सात पीढ़ियों के लिए इंतजाम करने की जुगुप्सा में नैतिकता को तिलांजलि देने से भी नहीं चूक रहे हैं।
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