श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: भक्ति, ज्ञान और विज्ञान का संगम

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: भक्ति, ज्ञान और विज्ञान का संगम

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य दिवस के रूप में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। मान्यता है कि उनका जन्म अर्धरात्रि में हुआ था, जब मथुरा भय, अत्याचार और अंधकार के वातावरण में डूबी थी। इसीलिए इस पर्व को रात्रि में मनाना केवल परंपरा नहीं, बल्कि अंधकार से प्रकाश की, अन्याय से न्याय की और निराशा से आशा की ओर यात्रा का प्रतीक है।
 
श्रीकृष्ण का अवतरण केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि धर्म की पुनःस्थापना और अधर्म के विनाश का शाश्वत संदेश है। श्रीमद्भगवद्गीता में वे स्वयं कहते हैं “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि र्भवति भारत। अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥” अर्थात जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उदय होता है, तब-तब मैं अवतार लेता हूं। उनका जीवन इस सत्य का प्रमाण है कि साहस, नीति और सत्य के बल पर ही अन्याय और अत्याचार का अंत संभव है।
 
कृष्ण केवल धर्म के रक्षक नहीं, बल्कि मधुर भक्ति और निःस्वार्थ प्रेम के प्रतीक हैं। उनकी रासलीला ‘भक्ति योग’ का सर्वोच्च आदर्श है, जिसमें प्रेम निष्कलंक, अहंकार-रहित और पूर्ण समर्पण से युक्त होता है। यह हमें सिखाती है कि ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम किसी स्वार्थ या प्रतिफल की अपेक्षा से नहीं, बल्कि आत्मा के पूर्ण समर्पण से उत्पन्न होता है।
 
कृष्ण का व्यक्तित्व भक्ति, ज्ञान और कर्म का अद्वितीय संगम है। वे रणभूमि के कुशल सारथी, राजनीति के चतुर मार्गदर्शक, ज्ञान के गहन दार्शनिक और प्रेम के करुणामय देवता—सभी रूपों में पूर्ण पुरुषोत्तम हैं। भगवद्गीता का उनका उपदेश आज भी मानवता को कर्तव्य पालन, आत्मा की अमरता और निष्काम कर्म का मार्ग दिखाता है।
 
जन्माष्टमी के धार्मिक उत्सव में गहरा वैज्ञानिक पक्ष भी निहित है। रात्रि जागरण ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाने का अभ्यास है, क्योंकि रात का शांत वातावरण मानसिक ऊर्जा संचित करने के लिए अनुकूल होता है। उपवास शरीर को डिटॉक्स करने का प्राकृतिक तरीका है, जो पाचन तंत्र को विश्राम देता है और ऊर्जा संतुलन बनाए रखता है। भजन, कीर्तन, योग और ध्यान से मस्तिष्क में ‘हैप्पी हार्मोन्स’ का स्तर बढ़ता है, जिससे मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
 
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। उस समय ग्रहों की विशेष स्थिति ऊर्जा के अद्भुत संतुलन का संकेत देती थी, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। उनकी बाल लीलाएं बच्चों में नैतिकता, साहस, चतुराई और रचनात्मकता का विकास करती हैं, साथ ही यह सिखाती हैं कि जीवन के कठिन समय में भी संतुलन और विवेक बनाए रखना आवश्यक है।
 
इस प्रकार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भक्ति, ज्ञान और विज्ञान का अद्भुत संगम है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा के उत्थान, जीवन के शुद्धिकरण और मानवता के कल्याण का अवसर है। श्रीकृष्ण का जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि हम धर्म और विज्ञान दोनों को साथ लेकर चलें, ताकि जीवन में अंधकार चाहे जितना गहरा हो, हम प्रकाश की ओर बढ़ते रहें।

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