चलो इस बार रक्षाबंधन को राष्ट्र बंधन के रूप में मनाते हैं

चलो इस बार रक्षाबंधन को राष्ट्र बंधन के रूप में मनाते हैं

रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय पर्व है, जहाँ केवल रेशमी धागा नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और उत्तरदायित्व की अटूट गांठ बाँधी जाती है। यह पर्व केवल बहन-भाई के संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से एक आदर्श सामाजिक संरचना के दर्शन भी होते हैं। लेकिन क्या यह भावना मात्र पारिवारिक दायरे में सिमटी रहनी चाहिए? क्यों न इस बार रक्षाबंधन को राष्ट्र के प्रति समर्पित कर ‘राष्ट्र बंधन’ के रूप में मनाया जाए?
 
जब बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं, तो वे सिर्फ उनकी शारीरिक रक्षा का संकल्प नहीं लेतीं, बल्कि उनके जीवन में नैतिकता, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की भी रक्षा का दायित्व सौंपती हैं। यदि हम इस पर्व को राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों की पुनःस्मृति का माध्यम बनाएं, तो यह उत्सव निजी भावना से ऊपर उठकर राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बन सकता है। कल्पना कीजिए, यदि हम सब नागरिक भारत माता की कलाई पर एक संकल्प-सूत्र बाँधें, तो यह राखी मातृभूमि की सेवा, सुरक्षा और समर्पण का महापर्व बन जाएगी।
 
रक्षा-सूत्र को हम केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संकल्प बना सकते हैं - एक वर्ष, राखी पर्यावरण को समर्पित कर नदियों, वनों, पर्वतों, वायु और जैव विविधता की रक्षा का व्रत ले सकते हैं; तो दूसरे वर्ष, राखी संविधान को समर्पित करें के स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व की भावना को जीवंत रख सकते हैं; तीसरे वर्ष, एक राखी भारतीय सेना को समर्पित कर के सैनिकों के अदम्य साहस और बलिदान को प्रणाम कर सकते हैं;अगले साल एक राखी किसानों के नाम कर के अन्नदाताओं की कठिन तपस्या को सम्मान दे सकते हैं; तो कभी एक राखी सामाजिक समरसता के लिए बाँध कर जाति, धर्म, भाषा और प्रांत के भेदभाव से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता का संकल्प ले सकते हैं। अतः सरकार को चाहिए कि हर वर्ष इस पर्व को एक विशिष्ट राष्ट्रीय विषय से जोड़े, जैसे इस वर्ष सैनिकों के सम्मान में, अगले वर्ष स्वच्छता कर्मियों के नाम, फिर श्रमिकों के नाम, फिर वन रक्षकों, शिक्षकों, चिकित्सको ,वैज्ञानिकों या तकनीकी नवाचार के क्षेत्र में योगदान देने वालों के नाम।
 
 भारत एक विविधताओं से भरा देश है, पर इन विविधताओं के बीच समरसता ही हमारी पहचान है। यदि रक्षाबंधन को "राष्ट्र बंधन" के रूप में मनाया जाए, तो यह पर्व केवल एक पारिवारिक रिवाज न होकर राष्ट्रीय एकता और उत्तरदायित्व का महोत्सव बन सकता है।
 
आवश्यक है कि हम रक्षा सूत्र को नया अर्थ दें।आज जब राष्ट्र बाहरी खतरों से अधिक आंतरिक विघटन, वैचारिक भ्रम और सांस्कृतिक संकटों से जूझ रहा है, तब "रक्षा" का अर्थ केवल बाहरी आक्रमण से नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा,संवेदनाओं, संस्कारों और आदर्शों की रक्षा से भी जुड़ता है।ऐसे समय में रक्षा सूत्र को बहन-भाई तक सीमित न रखें। पति-पत्नी, गुरु-शिष्य, मित्र-सखी - सभी एक-दूसरे को और स्वयं को राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों की याद दिलाते हुए यह रक्षा-सूत्र बाँधें। बहनें भाइयों की कलाई पर बाँधने के साथ अपनी कलाई पर भी भारत माता की सेवा का संकल्प सूत्र बाँधें।
 
 समाज में यह चेतना जागे कि राष्ट्र ही हमारा सबसे बड़ा परिवार है। भारत माता हम सबकी शक्ति, प्रेरणा और संरक्षण की केंद्रबिंदु है। जब यह भाव प्रत्येक नागरिक के हृदय में बस जाएगा, तब हर पर्व राष्ट्रीय पर्व बन जाएगा और हर संबंध राष्ट्र धर्म से जुड़ जाएगा। तो आइए, इस बार हम रक्षाबंधन को ‘राष्ट्र बंधन’ के रूप में मनाएं - जहाँ प्रेम का धागा केवल भाइयों की कलाई ही नहीं, बल्कि भारत माता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी बाँधे। यही पर्व की सच्ची सार्थकता होगी।

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