सोनभद्र में सरकारी लापरवाही का पुलिया पनारी चौना टोला में 5 साल में ही ढहती उम्मीदें और जनता का विश्वास

पनारी चौना टोला में 5 साल में ही जर्जर हुई पुलिया, सरकारी निर्माण पर गंभीर सवाल, बोलती तस्वीरें

सोनभद्र में सरकारी लापरवाही का पुलिया पनारी चौना टोला में 5 साल में ही ढहती उम्मीदें और जनता का विश्वास

सरकारी लापरवाही का पुलिया पनारी चौना टोला में 5 साल में ही ढहती उम्मीदें

अजित सिंह ( ब्यूरो रिपोर्ट) 

सोनभद्र/उत्तर प्रदेश-

सोनभद्र जिले के पनारी ग्राम पंचायत के चौना टोला में बसहिया नाला पर बनी एक पुलिया ने सरकारी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। पूर्वांचल विकास निधि जिला योजना के तहत वर्ष 2018-2019 में निर्मित यह पुलिया, जिसका कार्य ग्रामीण अभियंत्रण प्रखंड, सोनभद्र द्वारा संपन्न हुआ था और जिसका उद्घाटन माननीय विधायक क्षेत्र ओबरा विधानसभा 402 के कर कमलों द्वारा हुआ था, अपने निर्माण के पांच साल भी पूरे नहीं कर पाई और अब जानलेवा स्थिति में पहुँच चुकी है।

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यह केवल एक ढांचागत विफलता मात्र नहीं, बल्कि जनता के भरोसे और सरकारी धन के घोर दुरुपयोग का जीता-जागता और अक्षम्य उदाहरण बन गई है। स्थानीय निवासियों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, बसहिया नाला पर बनी यह पुलिया दोनों तरफ से बुरी तरह से दरारग्रस्त हो चुकी है और इसकी हालत अत्यंत जर्जर हो गई है। जिस पुलिया को जनता के गाढ़े टैक्स के पैसे से बनाया गया था, आज उसकी दयनीय स्थिति चीख-चीख कर सरकारी तंत्र की उदासीनता और भ्रष्टाचार की कहानी बयां कर रही है।

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पुलिया में पड़ी बड़ी-बड़ी दरारें किसी भी वक्त एक बड़े और भीषण हादसे को निमंत्रण दे सकती हैं। यह न केवल इस महत्वपूर्ण मार्ग से गुजरने वाले सैकड़ों राहगीरों के लिए सीधा खतरा है, बल्कि सरकारी खजाने के खुलेआम दुरुपयोग का भी एक पुख्ता प्रमाण है। इस जर्जर पुलिया की बदहाली को देखकर कई गंभीर और मूलभूत सवाल उठ रहे हैं, जिनके जवाब मिलना अत्यंत आवश्यक है और जिन पर सरकार को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए।

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क्या निर्माण से पहले इस स्थान की वैज्ञानिक भू-जांच (जमीन का सर्वे) और मिट्टी की परख ठीक से की गई थी? क्या इसकी कोई विस्तृत तकनीकी रिपोर्ट मौजूद है जो निर्माण की व्यवहार्यता और दीर्घायु को प्रमाणित करती हो, इस पुलिया के निर्माण में कितना पैसा स्वीकृत हुआ था और वास्तव में कितना खर्च किया गया? क्या लागत और निर्माण की गुणवत्ता के बीच कोई सीधा संबंध था, या फिर गुणवत्ता मानकों से जानबूझकर और योजनाबद्ध तरीके से समझौता किया गया।

क्या इस पुलिया के निर्माण में घटिया सीमेंट और गिट्टी का इस्तेमाल किया गया? यदि ऐसी गंभीर अनियमितता हुई है, तो इसका सीधा और मुख्य जिम्मेदार कौन है। ठेकेदार, परियोजना का इंजीनियर, या निर्माण की निगरानी करने वाले सरकारी अधिकारी। क्या यह सीधे तौर पर जनता और सरकार के साथ किया गया गंभीर विश्वासघात नहीं है, जब उनके खून-पसीने की कमाई से बनी बुनियादी संरचनाएं इतनी जल्दी अपनी मियाद पूरी कर जर्जर हो जाती हैं।

ऐसे लोगों पर तुरंत और कड़ी कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए जो सरकारी धन का खुलेआम दुरुपयोग करते हैं और सार्वजनिक सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने से भी बाज नहीं आते। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जनता का विश्वास सरकारी निर्माणों की गुणवत्ता और ईमानदारी से बुरी तरह हिल चुका है। जब जनता के पैसों से बनी बुनियादी संरचनाएँ इतनी जल्दी अपनी मियाद पूरी कर जाती हैं, तो यह सीधे तौर पर सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली, भ्रष्टाचार और जवाबदेही के अभाव पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

सवाल यह भी है कि इस परियोजना का प्रारंभिक सर्वे किसने किया था, किसने इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी, और इसका मूल नक्शा एवं तकनीकी विवरण कहाँ हैं। क्या इसी तरह सरकारी ढांचे बनते और टूटते रहेंगे, और सरकारी खजाने का दुरुपयोग बदस्तूर जारी रहेगा। आज सख्त जवाबदेही की नितांत आवश्यकता है। यदि हम इन बुनियादी मुद्दों पर सवाल नहीं उठाएंगे, तो भ्रष्टाचार का यह दुष्चक्र बदस्तूर जारी रहेगा, घटिया निर्माण कार्य होते रहेंगे, और जनता के पैसे का दुरुपयोग जारी रहेगा। यह समय की मांग है कि उत्तर प्रदेश सरकार ऐसे मामलों का अविलंब संज्ञान ले, एक निष्पक्ष और त्वरित जांच करवाए, और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाई करे।

ऐसा करने से ही सरकारी धन का दुरुपयोग बंद होगा और जनता के पैसे से बनने वाले निर्माण कार्य वास्तव में टिकाऊ, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण बन पाएंगे। यह सिर्फ पनारी चौना टोला की एक पुलिया का अकेला मामला नहीं है, बल्कि यह देश भर में फैले उन हजारों छोटे-बड़े निर्माण कार्यों का प्रतिबिंब है, जो गुणवत्ता के अभाव में समय से पहले ही दम तोड़ देते हैं, और करोड़ों-अरबों रुपए पानी में बह जाते हैं। यह घटना एक बार फिर सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं में अत्यधिक पारदर्शिता और कठोर जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

जब कोई निर्माण कार्य जनता के पैसे से होता है, तो उसकी गुणवत्ता और उपयोगिता सुनिश्चित करना संबंधित अधिकारियों और ठेकेदारों का परम और अनिवार्य दायित्व होता है। नागरिकों को यह जानने का पूरा अधिकार है कि उनके टैक्स का पैसा कैसे खर्च किया जा रहा है और क्या वह सही तरीके से इस्तेमाल हो रहा है। संबंधित अधिकारियों को इस मामले का तुरंत संज्ञान लेकर पुलिया की स्थिति की जांच करनी चाहिए। यदि निर्माण में किसी भी प्रकार की अनियमितता पाई जाती है, तो दोषियों के खिलाफ बिना किसी देरी के उचित कार्रवाई होनी चाहिए।

यह सिर्फ एक पुलिया का मामला नहीं, बल्कि भविष्य में होने वाले अन्य सार्वजनिक निर्माण कार्यों के लिए एक महत्वपूर्ण नज़ीर स्थापित करने का सवाल है। जनहित में ऐसे सवालों का उठाया जाना एक सशक्त और जिम्मेदार लोकतंत्र के लिए बेहद आवश्यक है।

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