सोनभद्र में अवैध खनन को लेकर सच दिखाने वाले पत्रकारों को माफियाओं द्वारा रची जा रही फंसाने की साजिश

जिले में अबैध खननकर्ताओं के हौसलें बुलंद, लोगों ने खनन विभाग सहित स्थानीय प्रशासन पर चुप्पी साधने का आरोप, करोड़ों रुपये राजस्व का नुकसान होने का अनुमान

सोनभद्र में अवैध खनन को लेकर  सच दिखाने वाले पत्रकारों को  माफियाओं द्वारा  रची जा रही फंसाने की साजिश

पर्यायवरणविदों ने जताई चिंता, लोगों ने किया कार्रवाई की मांग

अजित सिंह ( ब्यूरो रिपोर्ट) 

सोनभद्र/ उत्तर प्रदेश-

सोनभद्र जिले में अवैध खनन का बेलगाम खेल लगातार जारी है, और इस पूरे गोरखधंधे में खनन विभाग तथा प्रशासन की कथित मिलीभगत पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में जब कुछ निष्पक्ष पत्रकारों ने इस अवैध कारोबार का पर्दाफाश करने का साहस दिखाया, तो उन्हें न सिर्फ माफिया तत्वों से धमकियों का सामना करना पड़ा, बल्कि अब वे झूठे आरोपों और सुनियोजित साजिशों के जाल में भी फंसाते दिख रहे हैं।

सोनभद्र में अवैध खनन को लेकर  सच दिखाने वाले पत्रकारों को  माफियाओं द्वारा  रची जा रही फंसाने की साजिश

एक वायरल वीडियो में जिसमें कथित तौर पर एक पत्रकार को दारोगा हूं कहते हुए दिखाया जा रहा है जो कि पूरे मामले को और भी उलझा दिया है। हालांकि वीडियो की गहन पड़ताल से सच्चाई कुछ और ही सामने आ रही है और यह पत्रकारों पर लगे आरोपों की गंभीरता पर बड़े प्रश्नचिह्न लगाती है। यह घटना पत्रकारिता की नैतिकता, एकजुटता और सच को सामने लाने की चुनौतियों पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।

इन पत्रकारों ने अपनी रिपोर्टिंग के जरिए खनन माफिया और उनके कथित संरक्षकों के बीच के 'खेल' का पर्दाफाश करने का दावा किया। हालांकि सच्चाई सामने आने के बाद इन पत्रकारों को कड़े विरोध और सीधी धमकियों का सामना करना पड़ा।

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सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उन पर आधारहीन और झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं, और उन्हें अपने काम से रोकने तथा फंसाने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है।जबकि इस वीडियो की बारीकी से पड़ताल की गई, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए, जो आरोपों की पोल खोलते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वीडियो में कहीं भी कोई पत्रकार अपने मुंह से यह कहते हुए नहीं दिख रहा है कि मैं दारोगा हूं या मैं वन रेंजर हूं। यह बिंदु सीधे तौर पर आरोपों की सत्यता पर सवाल उठाता है। यह कैसे संभव है कि बिना सुने ही आरोप लगा दिए जाएं।

वीडियो में जो व्यक्ति आरोप लगा रहा है जो खुद वीडियो बना रहा है, वह खुद अपने मुंह से यह गलत आरोप लगा रहा है कि कोई पत्रकार दारोगा बन रहा है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आरोप एकतरफा, आधारहीन और दुर्भावनापूर्ण हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य पत्रकारों को बदनाम करना और उनके द्वारा उजागर किए गए सच से ध्यान भटकाना हो रहा है।

ताजा मामला कुछ दिन पहले जुगैल क्षेत्र में भी पत्रकारों के साथ इसी तरह की घटना हुई है, जहाँ उन्हें फर्जी तरीके से फंसाने की कोशिश की जा रही है। यह पैटर्न बताता है कि अवैध खनन में शामिल लोग और उनके समर्थक सच सामने लाने वाले पत्रकारों को बदनाम करने और उन्हें अपने काम से रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह दर्शाता है कि यह महज एक इत्तफ़ाक नहीं, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है।

यह स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि जो लोग खुद गलत काम में लिप्त हैं, वे दूसरों को फंसाने और बदनाम करने के लिए ऐसे झूठे आरोप गढ़ते हैं ताकि सच्चाई सामने न आ सके और उनका अवैध धंधा बेरोकटोक चलता रहे।

 

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इस घटना ने सोनभद्र में पत्रकारिता की नैतिकता और पत्रकार एकता के दावों पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।जब वीडियो में पत्रकार खुद यह बयान नहीं दे रहा है कि वह दारोगा है, तो कैसे किसी भी व्यक्ति, खासकर किसी अन्य पत्रकार द्वारा, बिना किसी पुष्टि के ऐसे गंभीर आरोप लगाए जा सकते हैं और वीडियो को वायरल किया जा सकता है।

पत्रकारिता का मूलभूत सिद्धांत है कि किसी भी आरोप या खबर को प्रकाशित करने से पहले संबंधित व्यक्ति का पक्ष जानना अनिवार्य है। इस मामले में, आरोप लगाने से पहले संबंधित पत्रकार से फोन करके या मिलकर सच्चाई जानने की कोशिश क्यों नहीं की गई।

यह घटना पत्रकार संगठनों की एकजुटता और उनके आंतरिक अनुशासन पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है। यदि पत्रकार ही एक-दूसरे पर झूठे आरोप लगाएंगे और बिना पुष्टि के वीडियो वायरल करेंगे तो सच्चाई कौन उजागर कर पाएगा और पत्रकारिता की साख कैसे बचेगी? यह पत्रकार एकता के दावों को कमजोर करता है।

सोनभद्र में पत्रकारों पर हो रहे ये हमले और झूठे आरोप बेहद चिंताजनक हैं। यह न केवल पत्रकारों की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि यह सच्चाई को सामने लाने के उनके प्रयासों को दबाने की एक सोची-समझी साजिश भी है।ऐसे में सोनभद्र के सभी पत्रकारों को व्यक्तिगत मतभेदों को भुलाकर एकजुट होने की सख्त जरूरत है।

उन्हें इन फर्जी आरोपों के खिलाफ मिलकर आवाज उठानी चाहिए और उन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए जो अवैध खनन कर रहे हैं और साथ ही पत्रकारों को झूठे मुकदमों में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि भविष्य में कोई भी पत्रकार को इस तरह से निशाना बनाने की हिम्मत न कर सके।

पत्रकार संगठनों को भी इस मामले में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करनी चाहिए।यह पूरा प्रकरण जिला प्रशासन और खनन विभाग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। यदि जिलाधिकारी और अन्य उच्चाधिकारी वास्तव में अवैध खनन को रोकने के लिए गंभीर हैं, तो उन्हें न केवल अवैध खनन करने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, बल्कि उन पत्रकारों को भी सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए जो इस अवैध धंधे का पर्दाफाश कर रहे हैं।

पत्रकारों पर लगाए जा रहे झूठे आरोपों की निष्पक्ष और त्वरित जांच होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। सोनभद्र में पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सच सामने लाने के उनके प्रयास कब तक इन चुनौतियों का सामना करते रहेंगे यह देखना बाकी है।

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