सोनभद्र के प्राचीन जय मां बंन्सरा देवी धाम पर सरकारी उपेक्षा, स्थानीय लोग कर रहे जीर्णोद्धार
सोनभद्र जय मां बंन्सरा देवी धाम सरकारी उपेक्षा का शिकार, प्रधान पर भी अनदेखी का आरोप
विकास खण्ड चोपन के अन्तर्गत जय माँ बंन्सरा देवी धाम उपेक्षा का शिकार
अजित सिंह ( ब्यूरो रिपोर्ट)
सोनभद्र/ उत्तर प्रदेश -
सोनभद्र जिले के चोपन ब्लॉक स्थित थाना जुगैल के अंतर्गत आने वाला प्राचीन जय मां बंन्सरा देवी धाम सरकारी अनदेखी और उपेक्षा का शिकार है। सदियों पुराने इस मंदिर को सरकार की ओर से किसी भी तरह का विकास सहयोग नहीं मिला है, जिससे स्थानीय भक्तों में निराशा है।भक्तों का कहना है कि मां के इस पावन दरबार में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
मंदिर परिसर के आसपास खुला स्थान होने के कारण, दर्शनार्थियों को धूप और बरसात जैसी मौसमी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, सरकार की उदासीनता के बावजूद, स्थानीय निवासियों ने अपनी आस्था और सामूहिक प्रयासों से मंदिर के विकास का जिम्मा उठाया है। वे चंदा इकट्ठा कर मंदिर प्रांगण में निर्माण कार्य करवा रहे हैं। मंदिर के पुजारी छोटेलाल गिरी ने बताया कि गांव के लोग एक-एक रुपया जोड़कर मंदिर के विकास के लिए योगदान दे रहे हैं।स्थानीय लोगों ने अपनी समस्याओं के लिए ग्राम प्रधान पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं।
उनका कहना है कि प्रधान चुनाव जीतने से पहले हिंदू धर्म के मंदिरों और क्षेत्र के विकास के बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन जीतने के बाद वे हिमालय के कांगड़ा में जाकर खो जाते हैं। विकास के नाम पर प्रधान द्वारा की गई अनदेखी से ग्रामीणों में भारी रोष है।स्थिति की गंभीरता को बढ़ाते हुए, स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि मंदिर की जमीन पर भी कुछ लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है, जिससे मंदिर के विस्तार और विकास में और भी बाधा आ रही है।
स्थानीय निवासियों की प्रमुख मांग है कि सरकार और प्रशासन इस प्राचीन मंदिर के विकास पर तुरंत ध्यान दें। उनका कहना है कि यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हिंदू धर्म की आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जिसे संरक्षित और विकसित किया जाना चाहिए। वे सरकार से आग्रह करते हैं कि हिंदू धर्म के मंदिरों को उचित सुरक्षा और संरक्षण प्रदान किया जाए और मंदिर की भूमि पर हुए अवैध कब्जों को भी हटाया जाए।यह स्थिति इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे धार्मिक स्थलों के प्रति सरकारी उपेक्षा और स्थानीय नेताओं की अनदेखी समुदायों को स्वयं उनके संरक्षण और विकास का बोझ उठाने पर मजबूर कर देती है।
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