क्रेशर यूनियन के स्वास्थ्य शिविर पर उठे सवाल प्रदूषण और सड़क सुरक्षा की अनदेखी का आरोप
समाजसेवियों ने खड़ा किया सवाल,क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण और सड़को की दयनीय स्थिति पर जिम्मेदार मौन
शिविर मात्र छलावा, जिम्मेदार मौन
अजित सिंह ( ब्यूरो रिपोर्ट)
सोनभद्र जिले के ओबरा क्रेशर यूनियन कार्यालय द्वारा हाल ही में आयोजित निःशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर, जिसमें सैकड़ों मरीजों के उपचार का दावा किया गया था,अब स्थानीय निवासियों और विश्लेषकों के निशाने पर आ गया है। इस शिविर को महज़ एक दिखावा करार दिया जा रहा है, क्योंकि क्रेशर उद्योग से जुड़ी गंभीर और मूलभूत समस्याएँ, जैसे प्रदूषण नियंत्रण और सड़क सुरक्षा,अभी भी अनसुलझी बनी हुई हैं।

क्रेशर यूनियन ने इस स्वास्थ्य शिविर का आयोजन अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से किया है। हालांकि, जनता सवाल उठा रही है कि जब क्षेत्र में क्रेशरों से भारी प्रदूषण फैल रहा है और सड़क सुरक्षा गंभीर रूप से प्रभावित है,तो ऐसे अस्थायी शिविरों का क्या औचित्य है।
नाम न छापने की शर्त पर एक स्थानीय निवासी ने बताया, हमें हर दिन धूल और प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। गजराज नगर, शारदा मंदिर से बग्गा नाला तक सांस लेना मुश्किल हो गया है। शारदा मंदिर से ओबरा जाने वाली मार्ग पर आगे दो छोटे बच्चों का विद्यालय भी है बच्चों को अक्सर खांसी-जुकाम और सांस लेने में दिक्कत होती है।
ऐसे में यह स्वास्थ्य शिविर किस काम का,पहले हमें स्वच्छ हवा तो दें। यह टिप्पणी स्पष्ट करती है कि जनता के लिए तात्कालिक आवश्यकता स्वच्छ पर्यावरण और सुरक्षित सड़कें हैं, न कि क्षणिक स्वास्थ्य सेवाएँ। ओबरा, सोनभद्र में क्रेशरों से होने वाला प्रदूषण एक विकराल समस्या का रूप ले चुका है। सड़कों के किनारे बोल्डर पत्थर, गिट्टी और भस्सी का अंबार लगा रहता है, जिससे धूल का घना गुबार उठता है। नियमों के अनुसार, धूल को नियंत्रित करने के लिए पानी का नियमित छिड़काव आवश्यक है, लेकिन इसका अभाव साफ दिखाई देता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे लगातार धूल और धुएं के संपर्क में रहते हैं, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। प्रदूषण के साथ-साथ, क्रेशर से निकली गिट्टी और भस्सी का सड़कों पर बिखरा रहना गंभीर सड़क सुरक्षा का खतरा पैदा करता है।
ये सामग्री अक्सर सड़कों पर बिखरी पड़ी रहती हैं, जिससे दोपहिया वाहन चालकों के लिए संतुलन बनाना मुश्किल हो जाता है और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, ओवरलोडेड डंपर और ट्रकों का सड़कों पर अनियंत्रित और तेज गति से आवागमन स्थिति को और बदतर बनाता है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने टिप्पणी की, क्रेशर मालिक सड़क पर गिट्टी और भस्सी बोल्डर फैलाकर दुर्घटनाओं को न्योता दे रहे हैं।
प्रशासन भी इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। स्थानीय निवासियों द्वारा उपजिलाधिकारी को संज्ञान में दिए जाने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है। उनके द्वारा सिर्फ आश्वासन दिया गया है कि जल्द ही क्रेशर यूनियन से बैठकर इस पर विचार करेंगे, मगर दो महीने से ज्यादा हो चुका है और अभी तक कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। सड़कों के बीचो-बीच पत्थर गिरने से आने-जाने वाले लोगों को चोटिल होने की घटनाएँ भी सामने आई हैं। स्थानीय लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है, जबकि यही क्रेशर उद्योग के कारण होने वाली सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या है।
सड़कों पर पानी का छिड़काव क्यों नहीं हो रहा है? सभी क्रेशरों में बाउंड्री वॉल क्यों नहीं है और बाउंड्री वॉल पर चारों तरफ पाइप लगाकर धूल नियंत्रण के प्राथमिक उपाय क्यों नहीं अपनाए जा रहे हैं। सड़कों पर बिखरी गिट्टी और भस्सी पत्थर को क्यों नहीं हटाया जा रहा है, जो दुर्घटनाओं का सीधा कारण बन रही है। घनी आबादी में तेज गति से पत्थर ढोने वाले वाहन क्यों चल रहे हैं। नियमों का उल्लंघन करने वाले क्रेशरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है।
इन सवालों के साथ स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर प्रश्न खड़े हो रहे हैं। यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे नियमों का पालन सुनिश्चित करें और जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा करें। यदि क्रेशर यूनियन द्वारा खुलेआम नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है और प्रदूषण तथा सुरक्षा संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं, तो प्रशासन की निष्क्रियता चिंताजनक है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि केवल स्वास्थ्य शिविर आयोजित करने से बेहतर होता कि क्रेशर मालिक प्रदूषण नियंत्रण के लिए आवश्यक कदम उठाते और सड़कों की सुरक्षा सुनिश्चित करते। यह केवल दिखावा है जब तक कि मूल समस्याओं का समाधान नहीं होता। यह आवश्यक है कि संबंधित अधिकारी इस मामले का संज्ञान लें।
केवल स्वास्थ्य शिविरों के आयोजन से सोशल इमेज नहीं सुधरती, बल्कि वास्तविक समस्याओं को हल करने से ही जनता का विश्वास जीता जा सकता है। क्रेशर यूनियन और प्रशासन को मिलकर प्रदूषण नियंत्रण, सड़क सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण पर गंभीरता से काम करना होगा, तभी उनके प्रयासों को सार्थक माना जाएगा और सोनभद्र के नागरिकों को एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण मिल पाएगा।

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