शिक्षा का संकट: नींव को बचाने की जंग

जब शिक्षक गायब, तो ज्ञान का दीपक कौन जलाएगा?

शिक्षा का संकट: नींव को बचाने की जंग

कल्पना करें—एक बच्चा सुबह-सुबह स्कूल की ओर चल पड़ता हैकंधे पर बस्तामन में सपने और आँखों में चमक। लेकिन स्कूल पहुँचते ही उसका दिल टूट जाता है—दरवाजे पर तालाशिक्षक गायबऔर चारों ओर सन्नाटा। यह कोई कहानी नहींबल्कि मध्यप्रदेश के उमरिया जिले की हकीकत हैजो हाल ही में कलेक्टर के औचक निरीक्षण में सामने आई। शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती हैलेकिन जब यह रीढ़ लापरवाही की मार से कमजोर पड़ने लगेतो क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंउमरिया की यह घटना सिर्फ एक जिले का दर्द नहींबल्कि पूरे शिक्षा तंत्र के लिए एक जोरदार चेतावनी है।

जब उमरिया के कलेक्टर ने सरकारी स्कूलों का औचक दौरा कियातो जो देखावह दिल दहला देने वाला था। कहीं शिक्षक बिना बताए गायब थेतो कहीं स्कूलों के दरवाजे बच्चों के लिए बंद मिले। यह सिर्फ ड्यूटी से चूक नहींबल्कि उन मासूम सपनों के साथ विश्वासघात थाजो हर बच्चा स्कूल लेकर आता है। कलेक्टर ने तुरंत कड़ा रुख अपनाया—दो शिक्षकों को निलंबित कर दिया गया और 29 की वेतन वृद्धि पर रोक लगा दी गई। यह सख्ती जरूरी थीलेकिन क्या यह समस्या सिर्फ उमरिया की हैमध्यप्रदेश के हर कोने में अगर झाँकेंतो यह लापरवाही एक गहरे संकट की ओर इशारा करती है।

मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों को चमकाने के लिए सरकार ने ढेरों योजनाएँ शुरू कीं—नई इमारतेंमुफ्त किताबेंमिड-डे मील। लेकिन जब जमीनी हकीकत सामने आती हैतो सारा ढाँचा खोखला नजर आता है। शिक्षक समय पर नहीं आतेस्कूल प्रबंधन सोया रहता हैऔर शिक्षा विभाग की निगरानी बस कागजों तक सीमित है। प्रवेश उत्सव जैसे आयोजनजो बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए होते हैंमहज औपचारिकता बनकर रह जाते हैं। नतीजा सामने है—बच्चों की उपस्थिति गिर रही हैड्रॉपआउट की दर बढ़ रही हैऔर शिक्षा की गुणवत्ता धूल चाट रही है। योजनाएँ तो हैंपर जब तक शिक्षकों और प्रशासन की जवाबदेही तय नहीं होगीये सब बेकार हैं।

एक पल को रुकें और सोचें—वह बच्चा जो स्कूल के लिए मीलों पैदल चलता हैधूप-धूल में अपने सपनों को सींचता हैउसे क्या मिलता हैएक खाली कक्षाएक अनुपस्थित शिक्षक और टूटती उम्मीदें। मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों पर ज्यादातर गरीब परिवारों के बच्चे निर्भर हैं। उनके लिए स्कूल सिर्फ पढ़ाई की जगह नहींबल्कि जिंदगी बदलने का एकमात्र रास्ता है। लेकिन जब शिक्षक ही अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लेंतो ये बच्चे कहाँ जाएँयह सिर्फ शिक्षा का संकट नहींबल्कि लाखों मासूमों के भविष्य पर लगा ग्रहण है। हर गायब शिक्षक के साथ एक बच्चे का सपना मरता है—क्या हम इसे यूँ ही देखते रहेंगे?

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अगर मध्यप्रदेश की शिक्षा को बचाना हैतो अब नरमी नहींसख्ती चाहिए। उमरिया में हुई कार्रवाई इसकी मिसाल है—जब कड़ा कदम उठाया गयातो संदेश साफ गया कि लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं होगी। लेकिन यह काफी नहीं है। हर जिले में नियमित औचक निरीक्षण होने चाहिए। डिजिटल मॉनिटरिंग जैसे बायोमेट्रिक सिस्टम से शिक्षकों की उपस्थिति पर नजर रखी जा सकती है। स्कूलों में बुनियादी सुविधाएँ—साफ पानीशौचालयबिजली—को अनिवार्य करना होगा। साथ हीशिक्षकों को न सिर्फ सजाबल्कि बेहतर प्रशिक्षण और प्रोत्साहन भी देना होगाताकि वे ड्यूटी को बोझ नहींबल्कि जुनून समझें। यह सिर्फ नियम लागू करने की बात नहींबल्कि बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता देने का वादा है।

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उमरिया की यह कार्रवाई एक चिंगारी हैजो पूरे प्रदेश में बदलाव की आग जला सकती है। अगर हर जिले में ऐसी सख्ती और पारदर्शिता आएतो सरकारी स्कूल फिर से ज्ञान के मंदिर बन सकते हैं। यह सिर्फ प्रशासन का काम नहींबल्कि समाज की साझा जिम्मेदारी है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बच्चा स्कूल से खाली हाथ न लौटे। उमरिया ने एक मॉडल पेश किया है—अब इसे पूरे मध्यप्रदेश में लागू करने का वक्त है। जब हर स्कूल में शिक्षक मौजूद होंहर कक्षा में ज्ञान की रोशनी होतभी हम कह सकेंगे कि हमने अपनी नींव बचा ली।

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शिक्षा महज किताबों के पन्ने पलटना नहींबल्कि हर बच्चे के मन में छिपे सपनों को पंख देना है—उन सपनों कोजो आसमान छूने की हिम्मत रखते हैं। उमरिया की घटना ने हमें नींद से झटका देकर जगाया है—अब आँखें मूँदे रहने का वक्त नहींबल्कि उठ खड़े होने का समय है। सख्त अनुशासन की डोरनिगरानी का मजबूत जाल और बच्चों को दिल से प्राथमिकता देकर उठाया गया हर कदम ही इस डूबते तंत्र को बचा सकता है। आइएआज एक पक्का इरादा करें—हर बच्चे को वह शिक्षा देंजो उसका जन्मसिद्ध अधिकार हैजो उसके सपनों को हकीकत में बदल सके। क्योंकि जब शिक्षा का किला अडिग होगातभी मध्यप्रदेश का भविष्य सुनहरे सूरज सा दमकेगा। यह एक जुनून भरी पुकार है—शिक्षा को जिंदा रखेंबच्चों के सपनों को उड़ने दें।

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